सद्‌गुरुवाराणसी की महिमा अपरंपार है। अनेक विशेषताओं के अलावा इस शहर को मृत्यु की नगरी भी कहा जाता है। प्रसून जोशी के सवालों के जवाब देते हुए, जीवन और मृत्यु के साथ वाराणसी या काशी के संबंध को विस्तार से समझाया सद्‌गुरु ने:

प्रसून जोशी : सद्‌गुरु, काशी को मृत्यु की नगरी भी कहा जाता है। हर हिंदू परिवार में ऐसी मान्यता है कि चाहे मरने की बात हो या मृत्यु के बाद के संस्कार की, हमें काशी जाना चाहिए। जीवन और मृत्यु के मामले में काशी का क्या महत्व है?

सद्गुरु : ज्यादातर लोग शानदार तरीके से जी नहीं पाते। ऐसे में उनकी एक इच्छा होती है कि कम से कम उनकी मौत शानदार तरीके से हो। शानदार तरीके से मरने का मतलब है कि मौत के बाद सिर्फ  शरीर का ही नाश न हो, बल्कि इंसान को परम मुक्ति मिल जाए। बस यही इच्छा लाखों लोगों को काशी खींच लाती है। इसी वजह से यह मृत्यु का शहर बन गया। लोग यहीं मरना चाहते हैं।

हम सभी जानते हैं कि हर इंसान जन्म लेता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि आपका जन्म अचानक हो गया। ऐसा नहीं है कि आप अचानक एक बच्चे के रूप में दुनिया में आ गए। मां के गर्भ में आपका धीरे-धीरे विकास होता है। जीवन धीरे-धीरे शरीर में प्रवेश करता है और माता के शरीर से धीरे-धीरे आपका शरीर तैयार होता है - आपने उसके एक हिस्से पर दखल कर लिया और वह हिस्सा आप बन गए। ऐसा नहीं है कि कोई इंजेक्शन दिया गया और आप अचानक प्रकट हो गए। यह पूरी प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है। इसी तरह अगर किसी इंसान की मौत हो जाए और कुछ समय तक उसके मृत शरीर को रोककर रखा जाए तो आप देखेंगे कि उसके नाखून, उसके चेहरे और सिर के बाल 11 से 14 दिनों तक बढ़ते रहेंगे। आपको पता है यह सब? कहने का मतलब यह है कि प्राण शरीर को एकदम से पूरी तरह नहीं छोड़ पाता। व्यावहारिक रूप से इंसान की मौत हो जाती है। दुनिया के लिए तो इंसान अब नहीं रहा, लेकिन खुद अपने लिए वह अभी पूरी तरह मरा नहीं होता। मृत होने में उसे 11 से 14 दिन का समय लग जाता है। मरने के बाद तमाम तरह के कर्मकांड और क्रियाएं जिस तरीके से की जाती हैं, उसके पीछे यही वजह है। जब आप शरीर का दाह संस्कार कर देते हैं तो सब कुछ तुरंत समाप्त हो जाता है।

 प्राण शरीर को एकदम से पूरी तरह नहीं छोड़ पाता ... दुनिया के लिए तो इंसान अब नहीं रहा, लेकिन खुद अपने लिए वह अभी पूरी तरह मरा नहीं होता।

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काशी के मणिकर्णिका घाट पर जाकर देखिए। वहां रोजाना औसतन 40 से 50 मृतकों का दाह संस्कार होता है। अगर आप वहां बैठ कर तीन दिन भी साधना कर लें तो आपको उस स्थान का असर समझ आ जाएगा। इसकी सीधी सी वजह यह है कि वहां बड़ी मात्रा में और बहुत वेग के साथ शरीरों से उर्जा बाहर निकल रही है। यह एक तरह से मानव-बलि की तरह है, क्योंकि ऊर्जा जबरदस्ती बाहर आ रही है। इसी के चलते वहां जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा की मौजूदगी होती है।

क्यों करते हैं मणिकर्णिका घाट पर साधना?

यही वजह है कि शिव समेत कुछ खास किस्म के योगी हमेशा श्मशान घाट में साधना करते हैं, क्योंकि बिना किसी की जिंदगी को नुकसान पहुंचाए आप जीवन ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं। ऐसी जगहों पर खासकर तब जबर्दस्त ऊर्जा होती है, जब वहां आग जल रही हो। अग्नि की खासियत है कि यह अपने चारों ओर एक खास किस्म का प्रभामंडल पैदा कर देती है या आकाश तत्व की मौजूदगी का एहसास कराने लगती है। मानव के बोध के लिए आकाश तत्व बेहद महत्वपूर्ण है। जहां आकाश तत्व की अधिकता होती है, वहीं इंसान के भीतर बोध की क्षमता का विकास होता है।

यहां दो चीजें हो रही हैं। पहली चीज यह कि बहुत सारी ऊर्जा बाहर निकल रही है। प्राण का बचा हुआ हिस्सा बाहर निकल रहा है, क्योंकि शरीर, जो आधार है, उसी का नाश हो रहा है। और दूसरी यह कि वहां अग्नि की मौजूदगी भी है। जो लोग ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, जो लोग अपनी ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाना चाहते हैं, उनके लिए ये दोनों स्थितियां मिलकर एक बेहतरीन वातावरण पैदा कर देती हैं। श्मशान घाटों की यही खासियत रही है।

Bhairava_Kathmandu_1972मणिकर्णिका घाट के बराबर में ही कालभैरव मंदिर है। भैरव वह है जो आपको भय से दूर ले जाता है। काल मतलब समय यानि कालभैरव समय का भय है। यह मौत का भय नहीं है। भय का आधार समय है। अगर आपके पास असीमित समय होता तो कोई बात नहीं थी। लेकिन समय तो तेजी से भाग रहा है। अगर कुछ करना है, तो वक्त एक समस्या है, कुछ नहीं होता तो भी समस्या वक्त की ही है। बस इसीलिए है कालभैरव। अगर आप समय के भय से मुक्त हैं, तो आप भय से भी पूरी तरह से मुक्त हैं।

इस बात की पूरी गारंटी होती थी कि अगर आप काशी आते हैं तो आपको मुक्ति मिल जाएगी, भले ही पूरी जिंदगी आप एक बेहद घटिया इंसान ही क्यों न रहे हों। यह देखते हुए ऐसे तमाम घटिया लोगों ने काशी आना शुरू कर दिया, जिनकी पूरी जिंदगी गलत और बेकार के कामों को करते बीती। जिंदगी तो बिताई बुरे तरीके से, लेकिन वे मरना शानदार तरीके से चाहते थे। तब यह जरूरी समझा गया कि ऐसे मामलों में कुछ तो रोक होनी चाहिए और इसीलिए ईश्वर ने कालभैरव का रूप ले लिया, जो शिव का प्राणनाशक रूप है जिसे भैरवी यातना भी कहते हैं। इसका मतलब है कि जब भी मौत का पल आता है, तो आप अपने कई जन्मों को एक पल में ही पूरी तीव्रता के साथ जी लेते है। जो भी परेशानी, कष्ट या आनंद आपके साथ घटित  होना है, वो बस एक पल में ही घटित हो जाएगा। हो सकता है, वे सब बातें कई जन्मों में घटित होने वाली हों, लेकिन वह सब मरने वाले के साथ माइक्रोसेकेंड में घटित हो जाएंगी, लेकिन इसकी तीव्रता इतनी जबरदस्त होगी कि उसे संभाला नहीं जा सकता। इसे ही भैरवी यातना कहा जाता है। यातना का अर्थ है जबरदस्त कष्ट, यानी जो कुछ आपके साथ नरक में होना है, वह सब आपके साथ यहीं हो जाएगा।

आपको जिस तरह का काम करना होता है, उसी तरह की आपकी वेशभूषा भी होनी चाहिए। तो शिव ने इस काम के हिसाब से वेशभूषा धारण की और इंसानों को भैरवी यातना देने के लिए कालभैरव बन गए। वह इतना जबरदस्त कष्ट देते हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, लेकिन वह होता बस एक पल के लिए ही है ताकि उसके बाद अतीत का कुछ भी आपके भीतर बचा न रहे।

 

स्रोत - काशी द ईटर्नल सीटी (डीविडी)

वाराणसी या काशी शहर का आध्यात्मिक महत्व किसी से छिपा नहीं है। हर इंसान की इच्छा होती है कि जीवन में कम से कम एक बार वह यहां जरूर आए। ईशा पावन प्रवास आपके लिए ऐसा ही मौका लाया है, जिसमें आप वाराणसी की आध्यात्मिकता को आत्मसात कर सकते हैं:

वाराणसी यात्रा ककी  अधिक जानकारी के लिए - www.sacredwalks.org  फोन - + 91 9488 111 555