सद्‌गुरुइस स्पाॅट में सद्‌गुरु उस बदलाव के बारे में बात कर रहे हैं, जिससे फिलहाल यह धरती गुजर रही है। इस बारे में वह कहते हैं, ‘यह वो समय है, जब आप अपने भीतर से पुरानी व्यर्थ चीजें निकाल दीजिए और कुछ नए व ताजे को अपनाएं।’ यह स्पाॅट आपको एक वीडियो के जरिए सद्‌गुरु के साथ एक गहन ध्यान प्रक्रिया में शामिल होने का दुलर्भ मौका भी देता है।

उत्तरायण के आने पर होने वाले बदलाव

पिछले कुछ दिनों से यह धरती एक बड़े बदलाव से गुजर रही है और यह प्रक्रिया आने वाले कुछ और समय तक जारी रहेगी। संक्रांति और उत्तरायण की शुरुआत के साथ ही सूर्य और पृथ्वी के सम्बन्ध में और जीवन के अन्य रूपों और सूर्य के सम्बन्ध में बदलाव आता है।

यहां दो तरह के लोग होते हैं, एक जो चीजों को साकार करने में लगे रहते हैं, और दूसरे वे, जो चीजों के साकार होने पर उसका आनंद उठाते हैं और जब चीजें उनके मनमाफिक नहीं होतीं तो वे शिकायत करते हैं।
सूर्य पृथ्वी पर मौजूद सभी ऊर्जाओं को स्रोत है। ग्रहों की गतिविधि में शीतकालीन संक्राति उत्तरी गोलार्द्ध के लिए एक नई शुरुआत, एक नई संभावना और नई ताजगी भरी जिंदगी का प्रतीक होती है। साल के इस समय में वसंत के आगमन की तैयारी चल रही होती है। इस दौरान पृथ्वी और उसके वातावरण में जबरदस्त गतिविधियां चल रही होती हैं। पृथ्वी का हर प्राणी इसे साकार करने के लिए अधिक से अधिक काम कर रहा है। यहां दो तरह के लोग होते हैं, एक जो चीजों को साकार करने में लगे रहते हैं, और दूसरे वे, जो चीजों के साकार होने पर उसका आनंद उठाते हैं और जब चीजें उनके मनमाफिक नहीं होतीं तो वे शिकायत करते हैं। हो सकता है कि आप उन लोगों को अपने सामने न देख पाएं, जो चीजों को साकार करने में लगे हैं, लेकिन पृष्ठभूमि में वे बिना थके लगातार काम कर रहे हैं। साल बदलने का समय ऐसा होता है मानो इस धरती सहित इस पर मौजूद सारे जीवन अपना चोला बदल रहे हों। खासकर उत्तरी गोलार्द्ध में जीवन फसल पकने, फूलों के खिलने और फलों के आने की तैयारी कर रहा होता है।

मेरा और तेरा की सीमाएं तोड़ें

बहुत सारे लोग सोचते हैं कि नए साल के स्वागत में उन्हें कुछ मूर्खतापूर्ण काम करने चाहिए, जैसे मूर्खों की तरह दारू पिएं, मूर्खता भरे अंदाज में गाड़ी चलाएं और यहां तक कि मूर्खों की तरह मर जाएं।

आपमें यह संभावना है कि आप इसके लिए कोशिश कर सकें, बजाए इसके कि आप ‘यह मेरा, यह तेरा’ जैसे विचारों की सीमाओं में बंधकर जीवन गुजारें।
आज किसी भी चीज के लोकप्रिय होने के लिए उसे बेवकूफी भरा होना जरूरी हो गया है। क्या हमें जश्न मनाने के अपने विचार को फिर से परिभाषित करने की जरुरत नहीं है, ताकि हम कुछ सार्थक और अर्थपूर्ण चीजों का आंनद ले सकें? क्या आपमें हिम्मत है कि आप आने वाले साल में खुद से इस बात का वादा कर सकें कि आप अपने से बड़ी चीज को घटित होने देंगे। हर प्राणी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार काम करता, जीता और फिर कुदरत के नियमानुसार मर जाता है। लेकिन इंसान होने का मतलब है कि हम अपने कुदरती नियमों से ऊपर उठकर ऐसी चीज को साकार कर सकते हैं, जो हमसे बड़ी हो। आपमें यह संभावना है कि आप इसके लिए कोशिश कर सकें, बजाए इसके कि आप ‘यह मेरा, यह तेरा’ जैसे विचारों की सीमाओं में बंधकर जीवन गुजारें।

मनुष्य के पास चेतनता से जीवन रचने का विकल्प है

आप इस जीवन को संजो कर नहीं रख सकते, आप सिर्फ इसे विस्तार देकर चारों ओर फैला सकते हैं। चाहे आप बस यूं ही बैठे रहें या फिर किसी शानदार चीज की रचना करें, आप चाहे कोई कोई मूर्खतापूर्ण काम करें, या कुछ सार्थक और प्रभावशाली काम करें, मरना आपको हर हाल में है।

हम दुनिया में जो रचना चाहते हैं, इसके लिए हमें कई शक्तियों को एक साथ एक जगह लाना होता है, लेकिन आप अपने भीतर जो बनाना चाहते हैं, उसके लिए बस आपको खुद को संभालना होता है।
आपको हर हाल में अपना जीवन तो बिताना ही है, तो सवाल बस ये है कि कैसे? हम अपना जीवन कैसे गुजारते हैं, हमें यह विकल्प मिला है। यह विकल्प इंसानों का एक विशेषाधिकार है। बाकी सभी प्राणियों के लिए यह पूरी तरह से निर्धारित है। लेकिन इंसान के लिए यह हमारे हाथ में है कि हम जिंदगी को कितनी खूबसूरती से, कितनी गहनता से, कितने शानदार तरीके से या फिर कितने मूर्खतापूर्ण तरीके से, कितने बेकार और कितने आलस्यपूर्ण तरीके से जीते हैं। मैं आपको यह सुझाव बिल्कुल नहीं दूंगा कि आप नए साल को लेकर अपने लिए कोई मूर्खतापूर्ण संकल्प करें। साल के इस समय में बाहरी तौर पर काफी बदलाव होते हैं। मानव जीवन की गुणवत्ता में असली बदलाव केवल तभी आएगा, जब हम अपने को भीतरी तौर पर बदल सकें। वर्ना हम दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह पर भी परेशानहाल रहेंगे। हम दुनिया में जो रचना चाहते हैं, इसके लिए हमें कई शक्तियों को एक साथ एक जगह लाना होता है, लेकिन आप अपने भीतर जो बनाना चाहते हैं, उसके लिए बस आपको खुद को संभालना होता है।

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अपने भीतर आपको कुछ शानदार रचना होगा

अगर आप दुनिया में कुछ लाजवाब चीज रच पाए तो यह अपने आप में शानदार होगा। लेकिन कम से कम आपके भीतर कुछ शानदार जरुर घटित होना चाहिए।

इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि अगर आप कुछ निर्माण करना चाहते हैं तो उससे पहले आपके भीतर कुछ शानदार होना चाहिए। आप जो भी करें, अंत में आप दुनिया में वैसा ही कुछ रचेंगे, जैसे आप वास्तव में हैं।
अगर आपके भीतर कुछ शानदार घटित हो रहा है तो आपको दुनिया में कुछ शानदार रचने से कोई नहीं रोक सकता। हो सकता है कि लोग आपके रास्ते में कुछ बाधा डालें, लेकिन वह भी अपने आप में एक मौका होगा कि आप अपनी रफ्तार कम कर करके आसपास के नजारों पर नजर डालें, प्रकृति की खूबसूरती का आनंद लें और फिर अपनी रफ्तार पकड़ लें। अगर आप अपने भीतर सचमुच कुछ शानदार घटित किए बिना दुनिया में कुछ शानदार करना चाहेंगे तो यह बेहद निरंकुश व विनाशकारी प्रक्रिया होगी। मानव इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। यहां तक कि अडोल्फ हिटलर भी, जो सार्वकालिक बुरे लोगों की सूची में शीर्ष पर माना जाता है, यह मानता था कि वह कोई शानदार चीज करने जा रहा है, जिसके भयावह नतीजे निकले। जब आपके भीतर भद्दी चीजें हो रही हों और आप कोई चीज बनाने की कोशिश करेंगे तो यह बाहरी चीज आपके भीतर के भद्देपन के विस्तार के रूप में ही सामने आएगी। इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है कि अगर आप कुछ निर्माण करना चाहते हैं तो उससे पहले आपके भीतर कुछ शानदार होना चाहिए। आप जो भी करें, अंत में आप दुनिया में वैसा ही कुछ रचेंगे, जैसे आप वास्तव में हैं।

चेतना को जागृत करना होगा

बस आप होश में आइए और फिर आप देख पाएंगे कि आनंदमय होना ही जीवन जीने का एकमात्र तरीका है। इसके लिए न तो किसी प्रतिज्ञा की जरूरत होती है और न ही संविधान में संशोधन कर यह लिखने कि जरुरत है कि ‘इस देश के हर व्यक्ति को आनंदमय होना चाहिए’।

तब आपके जरिए जो सामने आएगा, वह भले ही असीमित न हो लेकिन कम से कम आपसे बड़ा तो जरूर होगा। यही महत्वपूर्ण है।
इसके लिए सबसे जरूरी चीज मानव चेतना को जाग्रत करना है। चेतना एक अभौतिक चीज है। भौतिक आयाम एक तरह की चारदीवारी है। जबकि चेतना वह आयाम है, जो सीमाओं व चारदीवारियों से परे है, जो अपने आप में व्यापक है। या तो आप हाड़-मांस का एक टुकड़ा हैं, तब तो आपके लिए चारदीवारी होना ठीक है, या फिर आपने अपने भीतर उस आयाम को छू लिया है, जिसे हम चेतना कहते हैं और जो असीमित है। एक बार आपका अनुभव असीमित हो जाता है तो फिर संभावनाएं भी असीमित हो जाती हैं। तब आपके जरिए जो सामने आएगा, वह भले ही असीमित न हो लेकिन कम से कम आपसे बड़ा तो जरूर होगा। यही महत्वपूर्ण है। अगर आपसे बड़ी कोई चीज आपके भीतर घटित होती है, साथ ही अगर यह आपके बाहर भी हो पाना संभव होती है तो बतौर इंसान आपका जीवन और मृत्यु दोनों ही अच्छी होगी। वर्ना तो आप एक संकुचित और तकलीफदेह जिंदगी जिएंगे।

पुरानी चीज़ों को दूर फेंकने का समय

भारतीय संस्कृति में उत्तरायण का यह काल फसल काटने का अवसर होता है, वह फसल चाहे खेतों में हो या आध्यात्मिकता की हो। कई साधु, संतों, योगियों ने इस समय को अपने देहत्याग के लिए चुना है।

लेकिन यहां तक कि रेंगने वाले प्राणियों में भी यह समझ होती है कि कुछ खास अवधि के बाद उन्हें अपनी पुरानी केंचुल उतारनी होती है, हम आपसे कुछ ऐसी ही अपेक्षा करते हैं।
इसका यह मतलब नहीं कि यह समय आपके भी जाने का है। यह समय कुछ पुरानी बेकार की चीजें छोड़ने और कुछ नई व जीवंत चीजों को अपनाने का है। देखते हैं कि इससे क्या नई संभावनाएं निकलती हैं। यह मौका यह प्रतिज्ञा करने का नहीं है कि कोई विशेष चीज करनी है और कुछ खास चीज छोड़नी है। लेकिन यहां तक कि रेंगने वाले प्राणियों में भी यह समझ होती है कि कुछ खास अवधि के बाद उन्हें अपनी पुरानी केंचुल उतारनी होती है, हम आपसे कुछ ऐसी ही अपेक्षा करते हैं। जब भी कोई सांप, काॅकरोच या ऐसा ही कोई प्राणी अपनी पुरानी खाल उतारता है तो कुछ समय के लिए वह बेहद नाजुक हो उठता है। प्रकृति के बीच कुछ दिनों या हफ्तों तक बिना खाल के रहना बेहद जोखिमभरा होता है। महज कुछ चीटिंयों को जत्था भी आपकी जान ले सकता है। लेकिन फिर भी इन छोटे प्राणियों में इस जोखिम को लेने की जन्मजात समझ होती है। यह समय है कि आप भी अपने जीवन में यह जोखिम लें।

विकास की रफ़्तार तेज़ करने की चाहत

अगले कुछ दिनों में आप अपने भीतर से कुछ ऐसा निकाल फेंकिए, जो लंबे समय से आपके भीतर अटका पड़ा है, लेकिन न तो वह उपयोगी है और न ही आपके लिए अच्छा है। मैं लंबे समय से इंतजार कर रहा हूं कि यह मोटी चमड़ी निकले।

बंदर से मानव तक के विकास क्रम ने लाखों साल का समय लिया था। पर अब आप रफ्तार से आगे बढ़ना चाहते हैं -  आप पहले ही अपनी खाल नोंच कर उतारना चाहते हैं।
अगर आप बेकार की चीजों से निकल आएंगे तो मैं आपको परमानंद व हर्ष से सराबोर कर दूंगा। अब सवाल आता है कि ‘मैं अपनी खाल कैसे उतार सकता हूं?’ अगर हमारा शरीर कहीं से कट जाता है या उस पर कोई खरोंच लग जाती है तो कुछ समय बाद वहां एक पपड़ी जम जाती है। फिर आप चाहते हैं कि इससे पहले कि यह सूख कर अपने आप निकले, खुद ही इसे खुरचकर निकाल दें। इसी तरह से अगर आप अपने भीतर से ऐसी कोई चीज निकालना चाहते हैं, जो लंबे समय से आपसे जुड़ी या चिपकी हुई है तो यह आपको थोड़ी तकलीफ पहुँचाती है। आप रोज ही बिना गौर किए अपने त्वचा की पुरानी कोशिकाओं को निकालते हैं। त्वचा की पुरानी कोशिकाएं अपने आप ही निकलती जाती है, क्योंकि उसका समय पूरा हो चुका होता है। अब अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आप प्रकृति की स्वाभाविक गति की बजाय तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। हालांकि कुछ दार्शनिक अपने स्वभाव के चलते वैसे भी इस मुद्दे पर तर्क-वितर्क कर सकते हैं, कि धीरे-धीरे ऐसा तो होगा ही। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि यह जीवन बहुत ही छोटा है। बंदर से मानव तक के विकास क्रम ने लाखों साल का समय लिया था। पर अब आप रफ्तार से आगे बढ़ना चाहते हैं -  आप पहले ही अपनी खाल नोंच कर उतारना चाहते हैं।

इनर इंजीनियरिंग मदद कर सकती है

आप खुशकिस्मत हैं कि आप यहां एक इंसान के तौर पर आए हैं, आपके पास समझदारी से काम करता हुआ एक दिमाग है और आप इसके प्रति जागरूक हैं कि आपको अपने लिए कुछ करने की जरूरत है।

अपनी साधना में आगे बढ़ने के लिए कुछ दिनों आश्रम में आकर रहना अच्छा होगा। इसका यह मतलब नहीं कि और ज्यादा साधना करनी होगा, इसका मतलब उसी साधना को अधिक तीव्रता के साथ करना है।
यह समय इसे कर गुजरने का है। कैसे? हमने आपको जो साधना में दीक्षित किया है, उसके जरिए आप यह कर सकते हैं। उदाहरण के लिए इनर इंजीनियरिंग कार्यक्रम में यह करने की क्षमता है, लेकिन यह सब इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी प्रबलता से इसका अभ्यास कर रहे हैं। अपनी साधना में आगे बढ़ने के लिए कुछ दिनों आश्रम में आकर रहना अच्छा होगा। इसका यह मतलब नहीं कि और ज्यादा साधना करनी होगा, इसका मतलब उसी साधना को अधिक तीव्रता के साथ करना है। अगर आप ऐसा करेंगे तो यह बेकार की चीजें आपसे दूर होंगी। अगर आप चीजों को लेकर देखने ओर सोचने के पुराने ढंग को छोड़ देंगे तो आप एक खूबसूरत इंसान के तौर पर निखरकर सामने आ पाएंगे, तब दुनिया एक सुंदर जगह बन जाएगी। फिर जो यह नया ‘आप’ होंगे, वह सिर्फ समाधानों को देखेगा, समस्याओं को नहीं।

लोगों को अच्छे बुरे के खांचों में मत बांटें

अपना केंचुल उतारने का यह काम आपके द्वारा ही होगा। हम आपकी मदद तभी कर सकते हैं जब आप कृपा के लिए खुद को उपलब्ध करा सकें।

बिना लोगों को उन खांचों में बांटे हुए, जिन्हें आप प्रेम करते हैं और जिनसे आप नफरत करते हैं। इन सब सोचों के बिना आप जिंदगी को बस ऐसे ही देखें, जैसी वह है।
इसका मतलब है कि आपको खुद को एक नवजात शिशु की तरह रखना होगा। आप भले ही उम्र के किसी भी पड़ाव पर हों, आप जीवन को कैसे देखते हैं, यह मायने रखता है। जब हर चीज नई होगी, हर चीज शानदार होगी। अगर आप हर चीज पर ताजगीभरी नई दृष्टि डालेंगे, तो मैं आपकी देखभाल करूंगा। नई का यही मतलब है, कुछ भी पुराना न हो। इसके लिए आप पहली जनवरी का इंतजार न करें। धरती के लिए नए दौर की शुरुआत हो चुकी है और हम भी इसी धरती के हिस्से हैं। हर चीज को ऐसे ही देखिए, जैसे एक नवजात देखता है, हर चीज को अपने में उतारता व ग्रहण करता हुआ। बिना उसके बारे में कोई फैसला किए, बिना कोई राय बनाए, बिना लोगों पर अच्छे या बुरे का लेबल लगाए, बिना यह सेाचे कि ये इंसान ठीक है या नहीं। बिना लोगों को उन खांचों में बांटे हुए, जिन्हें आप प्रेम करते हैं और जिनसे आप नफरत करते हैं। इन सब सोचों के बिना आप जिंदगी को बस ऐसे ही देखें, जैसी वह है। अगर आप एक दिन के लिए भी ऐसा कर पाए तो आप एक नई शुरुआत कर सकते हैं और आप शानदार बन सकते हैं।

सद्‌गुरु दर्शन के दौरान कराया गया ध्यान

इस वीडियो के जरिए सद्‌गुरु आपको एक गहन ध्यान प्रक्रिया में शामिल होने का दुलर्भ मौका दे रहे हैं। ये प्रक्रिया मूल रूप से ईशा योग केंद्र में 24 दिसंबर को आयोजित दर्शन कार्यक्रम कराई गई थी। दर्शन का मतलब आँखों के द्वारा ग्रहण करना है। इस प्रक्रिया का सर्वश्रेष्ठ लाभ लेने के लिए आलथी पालथी माकर बैठ जाएं, आपके दोनों हाथ खुले हुए हों, हथेलियां ऊपर की ओर खुली हुई हों, चेहरा थोड़ा ऊपर की ओर उठा हुआ हो और निगाहें सद्गुरु पर हों।