सद्गुरु20 मार्च, आज साल का वो खास दिन है जब रात और दिन बराबर होते हैं इसे वसंत विषुव के नाम से भी जाना जाता है। जब वंसत आता है तो सृष्टि में सभी तरह का जीवन खिल उठता है। दरअसल, एक छोटा सा कीड़ा भी यह समझता है कि अब उसका समय आ गया है। यहां तक कि केंचुए जैसा प्राणी भी जान जाता  है कि यही समय है अपने जीवन को संवारने और निखारने का। आने वाले साल आध्यात्मिक जिज्ञासु और साधकों के लिए एक जबर्दस्त वसंतकाल की तरह होंगे, जिसमें वह आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं। कोशिश कीजिए कि आपके जीवन में यह आध्यात्मिक वसंत जरूर आए।

आप अपने जीवन को खास तरह से ढालने की कोशिश कीजिए। आप इस तरह से चलने और बैठने की कोशिश करें कि आप जिस घास पर बैठें, वह भी आपके बैठने के लिए आपको कोसने की बजाय आशीर्वाद देने लगे कि आप उस पर बैठे। हालांकि इसे करने के कुछ खास तरीके हैं। अब आप पूछेंगे, ‘वो कैसे सद्‌गुरु? बताइए कि घास कैसे मुझे आशीर्वाद देगी। क्या इसके लिए मुझे घास खानी पड़ेगी?’ इसके लिए सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि इस ब्रम्हांडीय पैमाने पर आपमें और घास में या आपमें और घास के कीड़ें में कोई खास फर्क नहीं है। उस पैमाने पर आप घास के एक टुकडे़ से भी कम हैं। दूसरे शब्दों में, आपकी नजर में जो महत्व घास के तिनके का है, ब्रम्हांडीय पैमाने पर आपका महत्व उस टुकड़े से भी कम है।

अगर आप अपने जीवन के हर पल को इस सत्य को समझकर जीते हैं, अगर आप इस तथ्य को हमेशा अपनी स्मृति में रखते हैं तो आप हमेशा सौम्य और विनम्र होकर चलेंगे, आप विनम्रता से सांस लेंगे और अपना जीवन भी विनम्रता में जिएंगे। विनम्रता कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसका पालन आप महज इसलिए करते हैं कि किसी ने आपसे कहा है कि ‘हरेक जीव से प्रेम करना चाहिए’। अगर आप वाकई यह समझते हैं कि इस सृष्टि में आप हैं कौन, तो सचमुच ऐसा ही होगा।

यह मेरी शुभकामना है कि आप जिस किसी भी चीज को छुएं, वह आपके लिए एक आशीर्वाद साबित हो।

Love & Grace

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