सद्‌गुरुआध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा पाठ, मंत्रोच्चार, प्राणायाम, योग और भक्ति आदि साधनाएं की जाती हैं। इनमें से भक्ति ऐसी है जो हमारे भावों से जुडी है। कैसे बना सकते हैं भावों को भक्तिमय?

 

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भक्ति की संभावना केवल तभी हो सकती है जब आपको कुछ खुद से बड़ा, विशाल लगने लगे। अगर आप खुद में भरे हुए हैं तो भक्ति की कोई गुंजाइश ही नहीं है।

सवाल यह है कि भक्ति का अभ्यास कैसे किया जाए? यह अभ्यास की जाने वाली चीज नहीं है। अगर आप भक्ति का अभ्यास करते हैं, तो यह निश्चित रूप से नकली होगा। इसका कोई लाभ नहीं। भक्ति की संभावना केवल तभी हो सकती है जब आपको कुछ खुद से बड़ा, विशाल लगने लगे। अगर आप खुद में भरे हुए हैं तो भक्ति की कोई गुंजाइश ही नहीं है। आपके मन में सवाल आ सकता है कि फिर भक्ति को अपने भीतर लाने के लिए मैं क्या करूं? आप इस समय जिस भी चीज के संपर्क में हैं, जरा बताइए कि वह बड़ी है या आप बड़े हैं? उदाहरण के लिए आप जिस हवा में सांस लेते हैं, वह हवा आपको अपने से बड़ी नजर आती है या आप खुद को उससे बड़ा महसूस करते हैं?

भोजन और धरती के आगे झुक जाएं

अब मान लीजिए आप बैठ कर भोजन कर रहें हैं। क्या बड़ा है, आप या वह भोजन, जो आपकी प्लेट में है? आप उस भोजन की वजह से ही बड़े हुए हैं जो आप खाते हैं। क्या ऐसा नहीं है? आप कितने बड़े हो गए हैं, यह उस भोजन पर निर्भर करता है जो आप खाते हैं।

तो अगर आप भक्त बनना चाहते हैं, तो एक घंटे में कम से कम एक बार अपने पूरी सजगता के साथ किसी चीज या किसी व्यक्ति के सामने झुक जाएं।
आप कह सकते हैं - यह क्या बेवकूफी है? मेरी प्लेट में रखा भोजन क्या इतना बड़ा है? अगर तीन दिन तक हम आपको भोजन न दें तो चौथे दिन . . .भक्ति आ जाएगी। आप बड़े हैं या वह धरती जिस पर आप चल रहे हैं? आकार में बड़े होने की बात छोड़ दीजिए। क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है? कौन श्रेष्ठ है- आप या वह भूमि? अमेरिका में लोग इसे डर्ट यानी धूल कहते हैं। आप बताइए आप बड़े हैं या वह धूल?

अस्तित्व की हर वस्तु एक भक्त से ऊपर होती है

हर पल आप जिस भी चीज के संपर्क में हों, अगर आप उसे खुद से बड़ा महसूस कर पाते हैं तो आप भक्त बन जाएंगे। इसीलिए हमारी संस्कृति में सिखाया जाता है कि अगर आप किसी पेड़ को देखें तो नमस्कार करें, गाय को देखें तो नमस्कार करें, किसी पर्वत को देखें तो नमस्कार करें। आप बादल को देखें, पानी देखें या धरती को देखें, आप जो भी देखते हैं, उसी से आपको कुछ लेना है। मुझे नहीं पता आपने ऐसा देखा है या नहीं, क्योंकि आजकल यह सब कम ही दिखाई देता है। एक समय था जब सुबह-सुबह एक लकड़हारा अपने काम पर अपनी कुल्हाड़ी लेकर जाता था तो वह सबसे पहले क्या करता था - पेड़ को नमस्कार, क्योंकि वह उसे अपने से बड़े के रूप में देख रहा है। तो इस तरह की सजगता मौजूद थी कि भक्ति बस जीवन का एक हिस्सा थी, कोई ऐसी चीज नहीं जिसका आप अभ्यास करें। आप भक्ति का अभ्यास नहीं कर सकते। भक्ति का अभ्यास आपको बेहद रूढि़वादी और कट्टरपंथी बना सकता है। इसी का नतीजा हम इस वक्त दुनिया भर में देख रहे हैं क्योंकि भक्ति लोगों को सिखाई गई है। उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं है, वे एक ही चीज को अपने से ऊपर समझते हैं, बाकी सब चीजें उनसे नीचे हैं। ऐसे में कोई भक्ति नहीं होगी। जब आप हर चीज को अपने से ऊपर समझेंगे, भक्ति तभी होगी।

पूरी सजगता से झुक जाएं

तो अगर आप भक्त बनना चाहते हैं, तो एक घंटे में कम से कम एक बार अपने पूरी सजगता के साथ किसी चीज या किसी व्यक्ति के सामने झुक जाएं। यह कोई भी हो सकता है। इसे चुनिए मत। बस जो भी उस वक्त आपके भीतर हो, उसके सामने ही झुक जाएं।

एक समय था जब सुबह-सुबह एक लकड़हारा अपने काम पर अपनी कुल्हाड़ी लेकर जाता था तो वह सबसे पहले क्या करता था - पेड़ को नमस्कार, क्योंकि वह उसे अपने से बड़े के रूप में देख रहा है।
अगर अभी आपको कोई पेड़ दिखाई दे, उसी के सामने झुक जाएं। आपको कोई पर्वत दिखे, उसके सामने झुक जाइए। आपको कोई शख्स दिखाई दे, उसके सामने झुक जाएं। कोई कुत्ता दिखे, कोई बिल्ली दिखे, कोई हाथी दिखे, जो भी दिखे, उसी के सामने झुक जाइए। दिन में हर घंटे के दौरान एक बार ऐसा कीजिए और देखिए कि क्या इसे एक मिनट में एक बार तक किया जा सकता है। एक मिनट में अगर एक बार ऐसा होने लगा तो उसके बाद झुकने के लिए आपको अपनी गर्दन और सिर झुकाने की जरूरत नहीं होगी। आप ऐसा बस अपने भीतर से ही करते रहेंगे। एक बार अगर यह आपकी आदत में शुमार हो गया तो आप भक्त हो जाएंगे।