अमृत स्वर्ग में नहीं, यहीं है
अध्यात्म की अलग-अलग परंपराएं क्या अलग-अलग अनुभव देती हैं? तो क्या जीवन का सार भी अलग-अलग है? कुछ ऐसे ही सवालों का जवाब जानते हैं सद्गुरु से-
प्रश्न: सद्गुरु, पंजाबी संस्कृति में जब 'सिमरन'की बात की जाती है तो उसका मतलब अमृत चखने से होता है। क्या ऐसा है कि ईशा योग जैसी विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं में लोगों को कुछ खास अनुभव हो रहे हैं। तो क्या अलग-अलग परंपराओं में लोगों को अलग-अलग तरह के अनुभव होते हैं?
गुरु गोविंद सिंह के समय के बाद से क्या इंसान का रूप बदल गया है? इंसान आज भी वैसा ही है। तो परंपराएं लोगों की आज की सोच विचार के अनुसार बदलेंगी। इन परंपराओं को अलग तरीके से पेश किए जाने की जरूरत है, लेकिन इनकी बुनियादी प्रक्रिया कभी कुछ और नहीं हो सकती। अगर आपको परंपराएं अलग लगती हैं तो आपको समझना चाहिए कि सिर्फ उनको पेश करने का तरीका अलग है। वे अपने मूल स्वरूप में नहीं बदल सकतीं।
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तो 'सिमरन'का अर्थ है, 'स्मरण', यानी याद करना। किसे याद करना? 'याद करना' से मेरा मतलब यह याद करने से नही है कि मैंने कल क्या किया था? इसका सिमरन से कोई लेना-देना नहीं है। सिमरन का मतलब यह याद करने से है कि मेरे अस्तित्व की प्रकृति क्या है? इस पर हम कई तरह से पहुंच सकते हैं। कोई कहता है - खुद से पूछो 'मैं कौन हूं?'कोई कहता है - 'मैं आत्मा हूं', कोई कहता है, 'मैं परमात्मा हूं।'कोई और किसी दूसरे तरीके से कहता है।
अगर आप खुद को याद दिलाते रहने में सफल होते हैं, तो क्या आप जीवन की मिठास का अनुभव कर पाएंगे? क्या आप अमृत का अनुभव कर पाएंगे? बिल्कुल कर पाएंगे। अमृत का अर्थ है जीवन-सुधा। एक तरह से जीवन-सुधा का मतलब है जीवन का स्रोत, वह जो जीवन को आबाद बनाता है। अगर आप इसे याद रखते हैं, तो आप सोचते हैं कि आप हैं। अगर आप कोई मंत्र-जाप या कोई ध्वनि या कुछ और इस्तेमाल करते हैं, तो आपको याद रहेगा कि आप कौन हैं। अगर आपको याद है कि 'आप कौन हैं', तो आपका अस्तित्व आपके लिए एक जीवंत अनुभव बन जाएगा। और जब यह जीवंत अनुभव बन जाता है, तब आप जीवन की मिठास को जरूर जान पाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है।
अमृत शब्द से ऐसा अहसास होता है कि यह कोई तरल है। इसे समझने के कई तरीके हैं। माना जाता है कि जीवन-सुधा काफी मंथन के बाद मिलती है। यह सच है। अगर आप अपने भीतर कुछ खास साधना करते हैं, तब यह मिलती है। दरअसल, आजकल हर चीज को आधुनिक विज्ञान की भाषा में समझाना पड़ता है। आपके दिमाग के कई पहलू हैं। आपके दिमाग के एक खास हिस्से का काम आपके भीतर एक अनुभव पैदा करना है। इसे पीयूष ग्रंथि कहते हैं। अगर आप इसे सक्रिय कर दें, अगर पीयूष ग्रंथि का स्राव आपके भीतर होने लगे, तो आप परम आनंद की अवस्था में आ जाते हैं। और यह तरल ही है।
यही वजह है कि कुछ लोग बस यूं ही आंखें बंद कर के बैठे हुए अपना सारा जीवन बिता देते हैं। दूसरे लोग सोचते हैं कि वे अपना वक्त बर्बाद कर रहे हैं, लेकिन सच तो यह है कि वे परम आनन्द का अनुभव कर रहे होते हैं, जो आम लोगों के लिए दुर्लभ है। ऐसा क्या है जो दूसरे लोग करने की कोशिश कर रहे हैं? कई तरीकों से वे सभी अपने जीवन के अनुभव को मधुर या अनोखा बनाने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन उनके अनुभव की वह मधुरता अभी कई दूसरी चीजों पर निर्भर है। आप ऐसा भोजन चाहते हैं, आप वैसे रहना चाहते हैं, आपके पास यह होना चाहिए, आपके पास वह होना चाहिए, आपको दुनिया को जीतना है, तब कहीं जाकर कुछ पलों के लिए आप अच्छा महसूस करेंगे। लेकिन एक दूसरा इंसान है, जो इन चीजों के बिना ही बस यूं ही बैठा है और वह अपने शरीर के कण-कण में सबसे ऊंचे स्तर का आनन्द और मिठास का अनुभव कर रहा है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उसके अंदर अमृत रिस रहा है। अमृत स्वर्ग में नहीं है, यहीं है। हमने केवल यही कहा था कि यह ऊपर की तरफ (यानी दिमाग में) है और आपने सोचा कि ऊपर का मतलब स्वर्ग है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अकसर आपके ऊपर का हिस्सा (दिमाग की ओर इशारा करते हुए) खाली होता है। (हंसते हैं)