अगर हमें किसी मंत्र या प्रार्थना का अर्थ नहीं पता हो तो क्या उसका उच्चारण करना बेकार है ? कितना मायने रखता है मंत्रों का अर्थ जानना, बता रहे हैं सद्‌गुरु:

सद्‌गुरु गाते हैं:

 

जनमं सुखदम मरणं करुणं

मिलनम मधुरम स्मरणं करुणं

कलावशाधिः सकलं करुणं

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समयाधिपतेः अखिलं करुणं

ट्रेसीः

इससे पहले कि हम अपनी बातचीत की शुरुआत करें, इस मंत्र के बारे में कुछ बताएं?

 

सद्‌गुरु:

यह एक आह्वान है। आह्वान प्रार्थना नहीं है। प्रार्थना किसी से बातचीत करने की कोशिश होती है, जो हमारे विश्वास से पैदा होती है। कोई किसी चीज में विश्वास करता है तो कोई नहीं करता। यहां अलग-अलग संस्कृतियों के लोग मौजूद हैं जिनका अपना-अपना विश्वास है।

आह्वान का अर्थ है अपने अंतरतम को संबोधित करना। जीवन में अलग-अलग तरह के कामों को करने के लिए हमें अलग-अलग तरह की मनोदशा की जरूरत होती है।

अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तरह के आह्वान हैं, जिनकी मदद से आप अपने अंदर एक खास स्थिति में आ सकते हैं।
मान लीजिए आप 100 मीटर की दौड़ में भाग लेना चाहते हैं, तो आपको एक खास तरह की मनोदशा में होना होगा। अगर आप दफ्तर में काम करना चाहते हैं, तो आपको एक अलग मनोदशा में आना होगा। आप ध्यान करना चाहते हैं, तो आपका मन एक अलग दशा में होना चाहिए। आपका शरीर, मन, भावनाएं और ऊर्जा-इन सबको, उस काम के हिसाब से तैयार होना पड़ता है जिसे आप करने वाले हैं।

अकसर आप ने अनुभव किया होगा कि किसी दिन तो आप अपने काम को ठीक वैसे ही कर पाते हैं जैसा आपने सोचा था, जबकि किसी दूसरे दिन उन्हीं छोटे-छोटे कामों को करने में आपको जूझना पड़ता है। अगर आप चीजों को सहज करने में सक्षम हैं तो आप कहते हैं कि आज मैं सही स्थिति में हूं। तो आजकल ज्यादातर लोग जीवन को जैसे-तैसे पूरी सहजता और कुशलता के साथ जी पा रहे हैं। ऐसा बस यूं ही हो रहा है। इसके पीछे कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है। लेकिन योगिक पद्धति में हमने एक पूरा तरीका ईजाद किया है, जो सिखाता है कि किसी काम को करने के लिए अपने अंदर एक खास दशा में कैसे आएं। अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तरह के आह्वान हैं, जिनकी मदद से आप अपने अंदर एक खास स्थिति में आ सकते हैं।

भले ही अर्थ इतना महत्वपूर्ण न हो, लेकिन आह्वान का महत्व तो है। हालांकि असली चीज है ध्वनि, क्योंकि कुल मिलाकर हम इसमें ध्वनि ही तो पैदा कर रहे हैं। अर्थ तो दूसरे लोगों के दिमाग में बनते हैं। अब अगर मैं अंग्रेजी में बात कर रहा हूं, तो दरअसल मैं केवल ध्वनि पैदा कर रहा हूं। मेरी ध्वनि का अर्थ तो आप अपने दिमाग में बना रहे हैं। तो असली चीज ध्वनि ही है। ध्वनि का ही अस्तित्व है। शब्द तो मनोवैज्ञानिक हैं।

अपने देश में मैं कोई भी मंत्र बोल सकता हूं। किसी को उसका अर्थ समझ नहीं आता, लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अमेरिका में आपको अर्थ की जरूरत होती है। मैं इसका अर्थ आसान शब्दों में समझाता हूं। जन्मम सुखदम का अर्थ हैः जन्म, प्रकृति या अस्तित्व की कृपा है। इसी तरह से मृत्यु भी एक बहुत बड़ी कृपा है। मान लीजिए, आप मर नहीं सकते। ओह! कितनी भयानक स्थिति होगी! मान लीजिए, आपको यहां अगले दस हजार सालों तक रहना पड़े। सोचिए क्या हालत होगी आपकी। इसलिए हमें इस बात को समझना चाहिए कि मत्यु भी अपने आप में एक तरह की कृपा ही है।

अगर कोई इंसान समय से परे चला जाए तो उसके लिए हर चीज कृपा ही है। समय हमारे अनुभव में है, क्योंकि हम एक तरह से भौतिकता में ही अटके हुए हैं। आपके पास एक स्थूल शरीर है और आप अपने आपको स्थूल शरीर के रूप में ही महसूस करते हैं। यही वजह है कि हमारे लिए यहां लंबे समय तक बैठना एक समस्या है।

आध्यात्मिक होने का अर्थ है-भौतिकता से परे की कोई चीज आपके लिए एक जीवंत अनुभव बन गई है।
है ना? अगर आप यहां दो घंटे तक बैठ रहें, तो आपका शरीर चाहेगा कि यहां से कहीं और चला जाए, क्योंकि भौतिकता तो विवशताओं की एक श्रृंखला है। इन विवशताओं की वजह से ही हमारे अनुभव में समय मायने रखता है। इसीलिए कहा जाता है कि अगर आप अपनी भौतिक प्रकृति का अतिक्रमण कर जाते हैं, तो पूरा का पूरा ब्रह्मांड करुणा ही है। और तब आपके लिए हर चीज शानदार होगी, क्योंकि आप भौतिकता से परे जा चुके हैं।

आज ’आध्यात्मिक’ शब्द का इस्तेमाल हर जगह हो रहा है। कई जगहों पर इस शब्द का बेहद गलत तरीके से प्रयोग हो रहा है। आध्यात्मिक होने का अर्थ है-भौतिकता से परे की कोई चीज आपके लिए एक जीवंत अनुभव बन गई है। क्योंकि हम इसे कोई नाम नहीं देना चाहते, हम इसे आध्यात्मिक कह देते हैं, लेकिन इसका अर्थ भी बिगड़ चुका है।