केदारनाथ : जहां कभी बसते थे शिव अौर पार्वती
आज सद्गुरु बता रहे हैं, हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ के बारे में। हर वर्ष सैकड़ों लोग सद्गुरु के साथ हिमालय की यात्रा पर निकलते हैं। वहां आयोजित एक सत्संग के दौरान उन्होंने केदार के कुछ अनूठे पहलुओं को उजागर किया ...
आज सद्गुरु बता रहे हैं, हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ के बारे में। हर वर्ष सैकड़ों लोग सद्गुरु के साथ हिमालय की यात्रा पर निकलते हैं। वहां आयोजित एक सत्संग के दौरान उन्होंने केदार के कुछ अनूठे पहलुओं को उजागर किया।
शिव के बारे में चर्चा किये बिना केदार के बारे में बताना असंभव है। देश के सबसे पूज्य माने जाने वाले शिव मंदिरों में से एक है- केदारनाथ मंदिर जो इस नगरी में स्थित है। सदियों पुरानी चार धाम की तीर्थयात्रा में भी केदारनाथ को एक प्रमुख तीर्थ के रूप में माना जाता है।
यह ऊर्जा से भरा हुआ ऐसा आध्यात्मिक स्थान है, जैसा सारी दुनिया में कहीं और नहीं। केदार की यात्रा इस मायने में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्थान हजारों-लाखों योगियों और ईश्वर-प्रेमियों का ठिकाना रहा है। उनकी ऊर्जा का अनुभव हम यहां कर सकते हैं। यहां ऐसे-ऐसे योगी हुए हैं, जिनके बारे में आप कभी कल्पना भी नहीं सकते हैं। इन योगियों के यहां आने का यह सिलसिला कई हजार वर्षों से चला आ रहा है। ये वो लोग हैं, जिन्होंने किसी को कुछ सिखाने की कोशिश नहीं की। वे इन जगहों में अपनी ऊर्जा, अपना कार्य, अपना सब कुछ छोड़ गए।
संसार को अपना सबकुछ भेंट करने का उनका यही तरीका था। यह स्थान आध्यात्मिकता और ऊर्जा का अनोखा मिश्रण है। किसी एक जगह ने इतने नाना प्रकार के लोग कभी नहीं देखे।
शिव के नाद से गूंजता केदारनाथ
मैं बार-बार सबसे यही कहता हूँ कि मेरे साथ सहजता से बैठें। लेकिन अधिकतर लोग बस इसी चिंता में रहते है कि 'हमारे खाने का क्या’, 'हमारे टॉयलेट का क्या’, 'यहां क्या हो रहा है’, 'वहां क्या हो रहा है’। मैं इस बात को एक बार फिर दोहराना चाहूँगा कि विचलित हुए बिना आपको बस इस स्थान के साथ रहने की जरूरत है। अगर आपको नहीं पता कि किसी स्थान के साथ रहने का मतलब क्या है, तो किसी स्थान के साथ रहने की शुरुआत करने के लिए आपको कम से कम अपनी इंद्रियों को पूरी तरह से केंद्रित करना होगा। अब अगर आप मेरी तरफ देख रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि आप मेरे साथ हैं, लेकिन यह शुरुआत करने का अच्छा तरीका है।
दरअसल, यह वो जगह है, जो खास तौर से 'शिव’ ध्वनि के लिए बनायी गयी है। 'शिव’ शब्द एक ऐसी ध्वनि है जो रची नहीं गई है। यह कहना शत-प्रतिशत सही नहीं है, लेकिन हम कह सकते हैं कि पृथ्वी पर 'शिव’ ध्वनि इन्हीं खुले स्थानों से उत्पन्न हो रही है।
तो यह एक जबरदस्त संभावना है। यहां अपनी मदद करने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि आप हर कदम पर 'शिव शंभो’ कहते हुए चलें। अगर आप पिकनिक मनाना चाहते हैं तो यह एक बेहद खूबसूरत और अचरज भरा स्थान है। हालांकि मैं पिकनिक मनाने के खिलाफ नहीं हूँ। अगर आप ऐसा चाहते हैं तो यह आपके ऊपर है। लेकिन अगर यहां आप कुछ और जानना चाहते हैं तो आपको अपने अहम् को कम करना होगा। खुद को बहुत छोटा बनाना होगा और हर कदम के साथ हमें एक खास मंत्र बोलते हुए आगे बढना होगा।
यहां ऐसे बहुत से निराले मनुष्य आए हैं। उनमें से कुछ तो दुनिया के शब्दों में पूरी तरह पियक्कड़ थे, लेकिन असल में वे योगी थे। उन्हें नशीली दवाओं की लत थी, लेकिन वे योगी थे। उनके जीवन में ये सारी बातें उनके भीतर किसी विवशता से नहीं आईं, बल्कि उन्होंने ये सब जान बूझकर किया। हालांकि ये सारी चीजें आपकी नैतिकता के अनुरूप नहीं है। यह वो जगह है, जिसने बहुत सारे ऐसे लोगों को शरण दी है जो आपकी नैतिकता के खांचे के अनुरूप नहीं है। यहां ऐसे बहुत से लोग हैं, जो दुनिया के हर दूसरे आध्यात्मिक मार्ग को गालियां देते हैं, दुनिया के हर अन्य गुरु को अपशब्द कहते हैं। ऐसा वह किसी अंदरूनी विवशता के कारण नहीं करते, बल्कि इसके पीछे वजह यह है कि- जब तक आप यह नहीं सोचते कि आप जिस आध्यात्मिक मार्ग पर चल रहे हैं, वो ही सबसे अच्छा है, तब तक आप उसके प्रति शत-प्रतिशत समर्पित नहीं हो सकते। जब आपके मन में यह विचार आता है कि 'मैं इस मार्ग पर चल रहा हूँ पर शायद दूसरा मार्ग इससे बेहतर है’, तब तक आप उस मार्ग पर शत-प्रतिशत समर्पित नहीं हो सकते। जब तक आप अपने गुरु को सर्वश्रेष्ठ गुरु नहीं मानते, आप स्वयं को समर्पित नहीं कर सकते; आप आध्यात्मिक प्रक्रिया को पूर्ण रूप से अपना नहीं पाते।
Subscribe
प्रश्न: क्या 'शिव शंभो’ जपने से हमें इन पहाड़ों पर चढ़ने में मदद मिलेगी?
सद्गुरु: जब आप 'शंभो’ कहते हैं, जब आप 'शिव’ कहते हैं तो यह मदद माँगने के लिए नहीं है। अब अगर जब भी आपके घुटने में दर्द हो तो आप 'शंभो’ बोलने लगें तो ये ठीक नहीं है। शिव भक्त हमेशा शिव को बुलाते हैं और कहते हैं, 'शिव, कृपया आप मुझे नष्ट करो’। क्योंकि शिव आपको नहीं, आपकी सीमाओं को, मनुष्य के रूप में आपकी कमजोरियों को नष्ट करते हैं।
ये एक तरकीब है। कल जब हम आपके सारे पाप धोने गंगा स्नान के लिए जाएंगे, आप देखेंगे कि पानी काफी ठंडा होगा। हालांकि आजकल यहां बहुत ठंड नहीं हैं, फिर भी सुबह-सुबह पानी बहुत ठंडा होता है। स्नान करते हुए सभी लोग 'शिव शिव’ बोल रहे होंगे। क्या वे जब गरम पानी से नहाते हैं, तब भी 'शिव शिव' बोलते हैं? नहीं। वे या तो सीटी बजाते हैं या कोई फिल्मी गाना गुनगुनाते हैं। ठंडे पानी में 'शिव शिव’ करते हैं। ये शिव के लिए नहीं है, ये आपके सुरक्षित रहने के लिए है। आप एक गलत शख्स को बुला रहे हैं। शिव यह नहीं देखते कि सुरक्षित रहने में आपकी मदद कैसे करें। वे तो बस उस पल का निरंतर इंतजार करते रहते हैं, जब वे आपके अंदर की कमजोरी को चूर-चूर कर सकें। इसीलिए तो मैंने आपसे 'शंभो’ कहने के लिए कहा है, इस इरादे से नहीं कि शिव पहाड़ पर चढ़ने में आपकी मदद करेंगे।
आपको इसका उपयोग अपने आपको खोलने के लिए करना हैं। इसका उद्देश्य ही है, आपके जैसे हठी आदमी के लिए नये आयामों को खोलना न कि 'शिव शिव शिव’ कह कर पहाड़ों पर चढ़ने में आपकी मदद करना।
कांति सरोवर
इस झील पर सन् 1994 में अप्रैल के महीने में जब मैं यहां आया था, मुझे 'नाद ब्रह्म’ का अनुभव हुआ था। इस जगह के बारे में कुछ भी बता पाना या इसका वर्णन करना काफी मुश्किल है।
नाद ब्रह्मा विश्वस्वरूपा
नाद ही सकल जीवरूपा
नाद ही कर्मा नाद ही धर्मा
नाद ही बंधन नाद ही मुक्ति
नाद ही शंकर नाद ही शक्ति
नादं नादं सर्वं नादं
नादं नादं नादं नादं
आध्यात्मिक विकास चाहने वाले मनुष्य के लिए केदारनाथ एक ऐसा वरदान है, जिसकी प्रबलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर कोई मनुष्य अपने आप को एक कोरे कागज की तरह यहां लाता है, तो उसके लिए 'परम' का अनुभव करना पूर्ण रूप से संभव है। हालांकि आम आदमी को यह बात समझाना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि यह स्थान, बस एक उभरी हुई चट्टान, एक पहाड़ ही तो है। लेकिन हजारों वर्षों से, जिस तरह के योगी यहाँ रहते आए हैं- उन्होंने इस स्थान के साथ जो कुछ भी किया है, उससे यहां बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है।
संपादक की टिप्पणी : हिमालय की ईशा पावन यात्रा इस वर्ष 15 से 25 सितंबर के बीच आयोजित की जा रही है, जिसके लिए रजिस्ट्रेशन शुरु हो चुका है।