समुद्री तटों के बीच की आनंदमय यात्रा
ArticleMay 3, 2016
इस हफ्ते के स्पॉट में हम, हम हाल ही में यु. एस. ए. में हुए सद्गुरु के कार्यक्रमों की तस्वीरें आपसे साझा कर रहे हैं। फ़िलहाल सद्गुरु यु. एस. ए. में सभी के साथ आनंदपूर्ण जीवन जीने की संभावनाओं को बाँट रहे हैं।
उनकी नई कविता "विश्वासघात", आनंद तक ले जाने वाले एक साधन - सांसों - को समर्पित है...
विश्वासघात
मेरी श्वास
अहो मेरी प्रिय श्वास
वो सभी विश्वासघाती थे -
जिन्हें जाना व माना मैंने –
अपना या अपना ही हिस्सा
जीवन हुआ परिपक्व ज्यों-ज्यों
महसूस हुआ मुझे कि
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नहीं था कोई भी उनमें मेरा
ना ही था कोई मेरा हिस्सा।
किन्तु तुम्हें,
हे मेरी प्रिय श्वांस – तुम्हें
समझा था मैंने अपना अभिन्न अंग
लेकिन आज तुमने दिखा ही दिया
अपना परम विश्वासघात
दिखा दिया तुमने
कि ना हो तुम मेरी
और ना ही हो मेरा कोई हिस्सा।
किन्तु मैं टूटा नहीं
जैसा होता है कइयों के विश्वासघात से
मैं तो हूं – अकेला अनछुआ
आनंदित – परमानान्दित।
Love & Grace