कौन किस योनि में जन्म लेगा?
यह कैसे तय होता है कि हम कब और कहां जन्म लेंगे? क्या हम यह तय कर सकते हैं कि हमें किस गर्भ से पैदा होना है?
प्रश्न : जब कोई व्यक्ति पुनर्जन्म लेता है तो क्या वह प्राय: उसी लिंग में वापस जन्म लेता है?
सद्गुरु:
ऐसा बिल्कुल जरूरी नहीं है। मेरे आसपास ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जो पिछले जन्म में किसी दूसरे लिंग में थे। कुछ लोगों के साथ तो यह मेरा करीबी अनुभव रहा है। पुनर्जन्म की स्थिति में कोई जरूरी नहीं कि लिंग, यहां तक कि प्रजाति भी पिछले जन्म जैसी ही हो। दरअसल, ये सारी चीजें आपकी प्रकृति व प्रवृत्ति से तय होती हैं।
गौतम बुद्ध के आस-पास कुछ ऐसा ही हुआ था
ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है, कई योगियों के साथ भी हुआ है। खासतौर पर गौतम बुद्ध के आसपास तो निश्चित तौर पर हुआ है। कई बौद्ध भिक्षु दोबारा स्त्री-रूप में पैदा हुए।
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जो भिक्षु एक पुरुष रूप में बुद्ध के पास थे उन्होंने यह महसूस किया कि महिला भिक्षुणियां पुरुष भिक्षुओं की अपेक्षा कहीं बेहतर तरीके से खुद को बुद्ध से जोड़ पा रही थीं। इसकी वजह थी कि महिला के लिए किसी के प्रति भावनात्मक तौर पर गहराई से जुड़ पाना स्वाभाविक सी बात है। जहां पुरुष लंबे समय तक बैठ कर कड़ी साधना कर रहे थे, वहीं महिलाएं बुद्ध को निहार रही थीं और उनके चेहरे पर आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी। वे बुद्ध के प्रति प्रेम से आकंठ भरी थीं और बुद्ध भी उनकी ओर सौम्यता से निहार रहे थे। इससे पुरुषों को ईर्ष्या भी होती थी।
आपकी प्रवृत्ति तय करती है अगला जन्म
आपकी चाहत व प्रवृत्ति के आधार पर कुदरत आपको एक अनुकूल शरीर देती है। मान लीजिए आपकी चाहत लगातार कुछ न कुछ खाने की है और आप खाने के दौरान ही मर जाते हैं, तो अगले जन्म में हो सकता है कि आप किसी के घर पालतू सुअर बन कर जन्में, जो हर वक्त खाता रहता हो। लोगों को लगेगा कि सुअर के रूप में जन्म लेना अपने आप में एक सजा है। हालांकि यह कोई सजा नहीं है। कुदरत सजा या पुरस्कार के तौर पर चीजों को नहीं देखती। वह आपकी प्रवृत्तियों को देखते हुए उन्हें पूरा करने की दिशा में काम करती है। वह देखती है कि उन प्रवृत्तियों को पूरा करने में किस तरह का शरीर मददगार साबित हो सकता है, वही शरीर आप पाते हैैं। जो बौद्ध भिक्षु स्त्री-रूप में वापस लौटे यह उनकी कोई सजा नहीं थी, बल्कि यह उनकी प्रवृत्ति और चाहत का नतीजा था- चाहत उन चीजों को पाने की जो तब महिलाएं को हासिल थीं। जब वे बुद्ध से प्रेम करने व उनसे भावनात्मक रूप से जुडऩे की महिलाओं जैसी क्षमता पाने की कामना करते थे तो अनजाने में उनके भीतर स्त्री होने की आकांक्षा पैदा हो रही थी।
अगर आप अपने भीतर इसकी-उसकी चाहत पैदा करने से बचे रहते हैं, अपनी दृष्टि शून्य पर टिकाए रखते हैं और उसी में तल्लीन रहते हैं तो कदुरत समझ ही नहीं पाती कि आपके साथ क्या किया जाए। तब वह आपको इधर या उधर नहीं धकेल सकती और न ही आपके ऊपर अपना कोई फैसला थोप सकती है। अगर कुदरत आपके बारे में फैसला नहीं ले सकती तो फिर कौन फैसला लेगा, जाहिर सी बात है, तब आपका फैसला चलेगा।
संपादक की टिप्पणी:
क्या माँ के गर्भ धारण करते ही उसमें पल रहा भ्रू्ण जीवित हो जाता है? या फिर कुछ समय बाद प्रवेश करता है भ्रूण में जीवन? कैसे चुनता है कोई प्राणी अपने लिए गर्भ? आइये जानते हैं इस प्रश्न और उत्तर की श्रृंखला से जिसमें जीवन के सृजन के बारे में चर्चा हो रही है।