सदगुरु: साधारण रूप से शिव को सर्वश्रेष्ठ पुरुष कहा जाता है। वे सबसे बेहतरीन पुरुषत्व के प्रतीक हैं पर आप उनके अर्धनारीश्वर रूप में देखेंगे कि उनका आधा भाग एक पूरी तरह विकसित स्त्री का है। मैं आपको बताता हूँ कि क्या हुआ था - शिव एक अत्यंत उल्लासित अवस्था में थे और इस कारण पार्वती उनकी ओर आकर्षित हो गयीं। जब पार्वती ने उन्हें लुभाने के लिये कई सारी चीजें की और उनसे हर तरह की मदद माँगी तो फिर उन्होंने शादी कर ली। जब उनकी शादी हो गयी तो स्वाभाविक रूप से, शिव उनके साथ अपने अनुभवों को साझा करना चाहते थे। तब पार्वती ने कहा, " आप  अपने ही अंदर, जिस स्थिति में हैं, मैं भी उसका अनुभव करना चाहती हूँ। मुझे क्या करना चाहिये, बताईये। मैं उसके लिये हर तरह की तपस्या करने को तैयार हूँ"। शिव मुस्कुराये और बोले, "तुम्हें कोई तपस्या करने की ज़रूरत नहीं है। तुम बस आ कर मेरी गोद में बैठ जाओ"। तब, बिना किसी प्रतिरोध के, पार्वती उनकी बायीं गोद में बैठ गयीं। चूंकि वे इतना ज्यादा तैयार थीं और उन्होंने अपने आपको पूरी तरह से शिव के हाथों में समर्पित कर दिया था, तो शिव ने उन्हें खींच कर अपने अंदर ले लिया, और वे उनका आधा भाग बन गयीं।

आपको ये समझने की ज़रूरत है। अगर  पार्वती को अपने शरीर में स्थापित करना है तो उन्हें अपना खुद का आधा भाग छोड़ना होगा। तो, उन्होंने अपना आधा भाग छोड़ कर पार्वती को अपने अंदर समा लिया। ये अर्धनारीश्वर की कथा है। ये मूल रूप से इस बात की अभिव्यक्ति है कि आपके अंदर पुरुषत्व और स्त्रीत्व  बराबर भागों में बँटा हुआ है। तो, जब शिव ने पार्वती को अपने अंदर ले लिया तो वे उल्लासित हो गये। इसमें जो कहा जा रहा है वो ये है कि जब अंदर के पुरुषत्व और स्त्रीत्व मिलते हैं तो आप हमेशा ही उल्लास की स्थिति में रहते हैं। अगर आप ऐसा बाहर करने की कोशिश करते हैं - तो ये ज्यादा समय नहीं चलता और इसके साथ जो मुसीबतें आती हैं, उनका नाटक हमेशा के लिये चलता रहता है।

अर्धनारीश्वर क्यों कहते हैं भगवान शिव को?

मूल रूप से ये कोई दो लोगों के मिलन की बात नहीं है, ये जीवन के दो आयामों की मिलने की इच्छा है - बाहर भी और अंदर भी! अगर आप इसे अपने अंदर कर लेते हैं तो मिलन शत प्रतिशत आपके चयन से, जागरूकता के साथ होगा। अगर आप इसे अपने अंदर नहीं कर पाते तो बाहर की तरफ तो ये एक भयानक मजबूरी ही होगी। यही जीवन का तरीका है। ये वो वास्तविकता है जो एक सुंदर, द्वंद्वात्मक रूप में बतायी जा रही है कि शिव ने पार्वती को अपने एक भाग के रूप में शामिल कर लिया और वे स्वयं ही आधे पुरुष, आधे स्त्री हो गये।

ये प्रतीकात्मकता की बात है, यह दिखाने के लिये कि अगर आप अपने आखिरी स्तर तक विकसित होते हैं तो आप आधे पुरुष और आधे स्त्री होंगे - कोई हिजड़े नहीं - एक पूर्ण पुरुष और एक पूर्ण स्त्री होंगे। और, तभी आप एक पूर्ण विकसित मनुष्य होंगे। इस दशा में आपका विकास कोई विषम रूप में, आड़े तिरछे ढंग से, नहीं होगा बल्कि संतुलित होगा। आपने ये दोनों बातें अपने आप बढ़ने दी हैं। पुरुषत्व और स्त्रीत्व का मतलब पुरुष और स्त्री नहीं है। ये दोनों खास गुण हैं। सिर्फ जब अंदर में ये दोनों गुण संतुलित रूप में होते हैं तभी कोई मनुष्य तृप्त जीवन जी सकता है।

पुरुष और प्रकृति

अगर आप अर्धनारीश्वर की कहानी को सृष्टिरचना के प्रतीक के रूप में देखें, तो ये दो आयाम - शिव और पार्वती या शिव और शक्ति ये पुरुष और प्रकृति के रूप में जाने जाते हैं। आजकल, पुरुष शब्द को हम साधारण ढंग से 'आदमी' के अर्थ में लेते हैं। पर, ये वैसा नहीं है। प्रकृति का मतलब है सृष्टिरचना या स्वभाव! पुरुष वो है जो सृष्टिरचना का स्रोत है। ये स्रोत था, सृष्टिरचना हुयी और ये अपने स्रोत के साथ एकदम सही ढंग से मिल गयी। जिसे पुरुष कहा जाता है वो कारण है, जो चीजों को मुख्य रूप से आगे बढ़ाता है। जब अस्तित्व में सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, जब अस्तित्व उससे पहले के स्तर पर था, तो 'वो' क्या था जिसके कारण ये अचानक हो गया? जिससे सृष्टि  की रचना हो गयी, उसे ही पुरुष कहा गया है! चाहे किसी मनुष्य का जन्म हुआ हो या कोई चींटी पैदा हुई हो या फिर ब्रह्मांड की रचना हुई हो, ये सब एक जैसा ही होता है। हमारे समझने के लिये इसे पुरुष या पुरुषत्व कहा जाता है।

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ये सारी मानवीय आबादी जो आज है, वो एक पुरुष के एक कार्य से हुई, संभोग से, है कि नहीं? ये कोई बहुत महान कार्य नहीं है। ये तो किसी भी तरह से होना ही था। ये गैर जिम्मेदारी से, लापरवाही से, जबरदस्ती, गुस्से में, घृणा से, कैसे भी हो सकता है - ये कोई ज़रूरी नहीं कि ये सुंदर ढंग से हो। आप इसे कैसे भी करें, जन्म तो होगा, बच्चे तो पैदा होंगे। पर गर्भ में जो होता है, वो चाहे जैसे नहीं हो सकता। वो सही तरीके से और सुंदर ढंग से ही होगा, नहीं तो ये नहीं हो सकता। ये अगर जबरदस्ती, हिंसात्मक तरीके से हो तो जीवन नहीं होगा, नहीं चलेगा।

तो जब हम इस मूल प्रक्रिया को देखते हैं जिसने सृष्टिरचना की शुरुआत की, तो ये प्रक्रिया बस किसी कार्य की तरह ही है। इसे पुरुष कहते हैं। पर जो इसे लेता है और धीरे धीरे जीवन में विकसित होता है, उसे प्रकृति कहते हैं। इसीलिये प्रकृति को स्त्री रूप में बताया जाता है।

समाज में स्त्रीत्व

आजकल, समाज ने, और खुद स्त्रियों ने भी, स्त्रीत्व को गलत समझा है - किसी कमजोरी के रूप में! स्त्रियाँ पुरुषों की तरह होने का प्रयास कर रहीं हैं क्योंकि संसार में अर्थव्यवस्था मुख्य शक्ति बन गयी है। सब कुछ जंगल के कानून में बदल गया है - जो सबसे ज्यादा सक्षम है, ताकतवर है, वही टिकेगा। तो स्त्रियाँ जब ऐसा करेंगी तो पुरुषत्व हावी हो ही जायेगा। हमने प्यार, करुणा और जीवन को अपनाने की सूक्ष्मताओं से ज्यादा महत्व बस जीतने को दिया है।

आप देखेंगे कि अगर सिर्फ पुरुषत्व हो, तो आपके पास सब कुछ होगा, पर कुछ नहीं होगा। समाज में जागरूकता के साथ स्त्रीत्व को सम्मान देना, उसका गौरव करना और पोषण करना बहुत ज़रूरी है। ये स्कूलों से ही शुरू हो जाना चाहिये। बच्चों को कला, संगीत, दर्शनशास्त्र, साहित्य के बारे में वैसे ही जानना और उन्हें सीखना चाहिये जैसा वे विज्ञान और तकनीकीशास्त्रों के बारे में करते हैं। अगर ऐसा न हो तो संसार में स्त्रीत्व के लिये कोई जगह नहीं होगी। अगर हम अपने जीवन में पुरुषत्व और स्त्रीत्व, दोनों की समान भूमिकायें नहीं रखते, उनको समान महत्व और सन्मान नहीं देते तो हमारा जीवन बहुत ही अधूरा और एकतरफा होगा।

संपादकीय टिप्पणी: ईशा आपको शिव आउटलॉ पैकेज भेंट कर रहा है - जो शिव के लिये एक निशुल्क ऑनलाइन साथी का काम करेगा। सदगुरु की किताब “शिवा - द अल्टीमेट आउटलॉ,” और वैराग्य, पांच गूढ़ मंत्रों का संकलन इस पैकेज में शामिल है।

सदगुरु की किताब में सुंदर रेखाचित्र भी हैं और सदगुरु की बुद्धिमत्ता के मोती भी जो आपको भगवान शिव के बहुत सारे अनजान पहलुओं के बारे में बताते हैं। तो, आपने शिव को जैसे पहले कभी भी नहीं जाना था, अब उनसे वैसे मिलिये - आदियोगी के रूप में, जो पहले योगी थे और योग के स्रोत थे। और इससे ज्यादा भी, बहुत कुछ जानें।

वैराग्य मंत्रों का उपयोग करने के लिये सदगुरु एक खास प्रक्रिया भी आपको दे रहे हैं। हर मंत्र की एक खास छटा है और उसमें आपके जीवन के अंतरतम को छूने की शक्ति है। ये ईशा चांट्स ऐप्प के रुप में भी उपलब्ध है।