जीवन जीवंतता है, कोई सौदा नहीं - भाग 1
अगर हम व्यापार करते हैं, तो इसमें सौदे करने पड़ते हैं। और सौदे में फायदा और नुकसान देखना पड़ता है। क्या ये सौदे प्रेममय हो सकते हैं? ऐसे ही एक प्रश्न का उत्तर पढ़ें इस ब्लॉग में, और इस श्रृंखला के अगले दो ब्लोग्स में...
प्रश्न : अपने कार्य-क्षेत्र से जुड़ी बातों के बारे में एक सवाल पूछना चाहता हूं। एक कंपनी है, जिससे व्यापार के लिए हम संपर्क बनाए हुए हैं। लेकिन मात्र इतना बताने के लिए कि हमें वह सौदा मिलेगा या नहीं, उन्होंने लंबे समय से हमें लटका रखा है। यह काफी झुंझलाहट वाली और हतोत्साहित करने वाली स्थिति है। कई बार ऐसा भी मन में आया कि ऐसे ग्राहक को छोड़ूं और आगे बढ़ूं। अब अगर उस ग्राहक की कठिनाइयों को अपनी समझ में समाहित करते हैं, तो संभव है कि मन की उथल-पुथल शांत हो जाए। लेकिन इससे क्या काम हासिल करने का हमारा जज्बा और उत्साह कम नहीं हो जाएगा?
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सद्गुरु : अगर जीवन में सचमुच उत्तम सौदा करना चाहते हो, तो सौदा करने का प्रयास ही मत करो। आप अपने आप को ऐसा बनाएं कि आपका ग्राहक हर तरह से आपके प्रेम में पड़ जाए। यह कोई चाल नहीं है। अगर आवश्यक हुआ तो वह सौदा होगा, अन्यथा नहीं होगा। सौदा दोनों की भलाई के लिए है। इसलिए दोनों को ही उसकी जरूरत महसूस होनी चाहिए। जब हम इस संसार में रहते हैं, तो लेन-देन होना ही है। उनमें से कुछ व्यक्तिगत प्रकृति के होते हैं और कुछ दूसरे तरह के। वे सभी तुम्हारे जीवन को प्रभावित करते हैं। चाहे आप किसी टैक्सी चालक से मिनट भर के लिए ही बात करते हो, या अपने बॉस से बात करते हो, या अपने ग्राहक, पति, पत्नी या बच्चे से बात करते हो — हरेक व्यवहार आपके जीवन को प्रभावित करता है। समस्या तब होती है जब आप एक व्यवहार को दूसरे से, एक ट्रांसएक्शन को दूसरे से ऊपर रख देते हैं। आप अपने आप को एक के साथ ज्यादा गहराई से जोड़ते हो तथा दूसरों के साथ कम। यह ऐसे काम नहीं करता। एक सार्थक जीवन जीने के लिए, आपके लिए ये सभी चीजें जरूरी हैं। आप पूरी परिस्थिति से ही प्रेम क्यों नहीं करते?
जब तक आप उस स्थिति में बने रहना चाहते हैं, उसमें ऐसे रहें, जैसे किसी बड़े प्रेम संबंध में रहते हैं। ऐसा क्यों नहीं हो सकता? बल्कि इसे तो ऐसा ही होना चाहिए। केवल तभी सारे काम सहज ढंग से पूरे होंगे।
जिसे आप प्रेम संबंध कहते हो, वह क्या है? वह बिना शर्त जुड़ाव है। उसके लिए आप वह सब करते हैं, जो जरूरी होता है। अगर आपके अंदर जुड़ने का भाव नहीं है, तो आपका प्रयास हमेशा किसी व्यक्ति के साथ बढ़िया सौदेबाजी करने जैसा ही होगा। इसका अर्थ यह है कि तब आपको संसार के सबसे मूर्ख व्यक्तियों से ही मिलना चाहिए। क्योंकि बुद्धिमान लोग तो आपकी सौदेबाजी में फंसेंगे नहीं।
एक बार एक कुंवारा आदमी एक सुंदर स्त्री के आकर्षण में पड़ा और उसका सबसे निष्ठावान प्रशंसक बन गया। काफी दिनों बाद उसने किसी तरह से हिम्मत जुटाई और उससे बोला, ‘कुंवारा होने के बहुत सारे फायदे हैं, लेकिन एक समय आता है, जब हमें किसी और की संगति की भी चाहत होती है। एक ऐसे प्राणी की, जो आपकी उसी रूप में कद्र करे जो आप हैं, जो आपके प्रति पूरी तरह से निष्ठावान हो, जो आपको अपना माने, जो मुश्किल समय में साथ हो, जो आपसे अपनी खुशी और गम बांटे।’
यह सब कहते समय उस स्त्री की आंखों में सहानुभूतिपूर्ण चमक देखकर वह प्रसन्न हुआ। स्त्री ने उसकी बातों से सहमत होते हुए अपना सिर हिलाया और बोली, ‘मेरी समझ से यह एक अच्छा विचार है! मैं आपकी एक अच्छा पिल्ला खरीदने में मदद कर सकती हूं।’
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