5 प्रश्न भारत में धर्म और धर्मगुरुओं पर
भारत में धर्म, धर्मगुरु, धार्मिक चैनल और धार्मिक कट्टरता के बारे में 5 अनोखे प्रशनों का उत्तर दे रहे हैं सद्गुरु...
प्रश्न 1 : सद्गुरु, हाल के समय में हमारा देश-समाज अक्सर जिस तरह के विवादों में फंसता रहता हैए उसे देखकर कई बार लगता है कि धर्म लोगों को राह दिखाने के बजाय फसादों की जड़ बन रहा है?
सद्गुरु : सारे धर्म आध्यात्मिक प्रक्रिया की तरह शुरू हुए थे, लेकिन समय के साथ वे विश्वास-प्रणाली में बदल गए। वे अपने शुरुआती इरादे से भटक गए और मानवता को विभाजित करने के साधन बन गए। अगर मैं विश्वास करता हूं कि यह नारियल का पेड़ भगवान है और आप विश्वास करते हैं कि वो पत्थर भगवान है, तो हो सकता है कि आज हम दोनों को एक दूसरे से दिक्कत न हो। लेकिन कल जब आप किसी वजह से नारियल का पेड़ काटना चाहेंगे, तो हम और आप लड़ने लगेंगे। एक बार जब आप किसी ऐसे चीज में विश्वास करते हैं, जो आपके अनुभव में नहीं है, जिसे आप जानते नहीं, तो लड़ना तय है। मेरी कोशिश लोगों को एक ऐसी स्थिति में लाना है, जहां लोग ईमानदारी से यह स्वीकार करें, ‘‘जो मैं जानता हूं, वह जानता हूं। जो मैं नहीं जानता, वह मैं नहीं जानता।’’ जब आप नहीं जानते तब आप लड़ कैसे सकते हैं? यही खोजी होने का आधार है और यही जानने का भी आधार है। इस देश में लोग हमेशा से सत्य और मुक्ति की खोज करने वाले रहे हैं। इस या उस चीज में विश्वास करना एक नई चीज है।
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प्रश्न 2: गृहस्थ जीवन जी रहे यानी जीविकोपार्जन के उपायों और पारिवारिक जिम्मेवारियों में व्यस्त किसी व्यक्ति का अपने धर्म के प्रति नजरिया और दैनिक व्यवहार किस तरह का होना चाहिए?
सद्गुरु : सच्चे अर्थों में धार्मिक होने और आज जिस तरह से धर्म को व्यवहार में लाया जा रहा है, इन दोनों में फर्क है। किसी एक गुट से नाता रखना या नारे लगाना किसी को धार्मिक नहीं बना देता। धार्मिक होना एक गुण है, इसका संबंध अपने भीतर कदम बढ़ाने से है। आप यह कदम उठा सकते हैं, आपकी बाहरी परिस्थितियां चाहे जो भी हों। अगर आप यह कदम नहीं उठाते हैं, तो आप चाहे मंदिर जाएं, मस्जिद या चर्च जाएं, इससे कोई फर्क नहीं पडता। आप वहां सिर्फ सांत्वना के लिए, डर की वजह से, अपराध-बोध से, या लालच की वजह से जाते हैं। यह धर्म नहीं है। सच्चा धर्म अपने भीतर देखने के बारे में है। योग बस धर्म का विज्ञान है, यह एक विशुद्ध विज्ञान की तरह है और इसमें किसी विश्वास-प्रणाली की जरूरत नहीं होती। इसमें आपको सिर्फ अपनी सूझ-बूझ का इस्तेमाल करके अपने भीतर प्रयोग करना होता है।
प्रश्न 3: भारत जैसे लोकतांत्रिक देश-समाज में धार्मिक कट्टरता कम करने और सभी धर्मों के लोगों के बीच भाईचारा बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाये जा सकते हैंए सरकार की ओर से और समाज की ओर से?
सद्गुरु : हमें अपने देश में यह एक बात पक्का करना होगा - आप चाहे जिस भी धर्म, जाति, संप्रदाय, या लिंग के हों, अगर आप इस देश के वासी हैं, तो आपकी पहली प्रतिबद्धता देश के प्रति होगी। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हमने ध्यान नहीं दिया है, जिसकी वजह से आज भी भारत में लगातार खून बहाया जा रहा है। किसी दूसरी चीज को जो भी इंसान देश के हित से ऊपर रखता है, उससे आवश्यकता अनुसार सख्ती से निपटा जाए। एक बार जब आप इस देश के वासी हो जाते हैं, आप संविधान में स्थापित नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता का आदर करते हैं। एक इंसान के तौर पर सिर्फ एक ही पहचान को आप देश से ऊपर रख सकते हैं और वह है, ‘मैं पूरे विश्व का नागरिक हूं।’ यहां हर इंसान को यह एक चीज स्पष्ट हो जानी चाहिए, वरना आप देश को आगे नहीं ले जा सकते। हर गुट अलग-अलग तरीकों से देश को नीचे खींचने की कोशिश करेगा।
प्रश्न 4: भारत में जब से टेलीविजन पर धार्मिक चैनल और प्रवचनों के प्रसारण शुरू हुए हैंए खुद को धर्मगुरु और भगवान का अवतार बतानेवाले लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। इसे आप कैसे देखते हैं?
सद्गुरु : यह कुछ ऐसा पूछने जैसा है कि अमेरिका में इतने ज्यादा स्कूल टीचर क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि वे अपने बच्चों को एक खास तरह से पढ़ाना चाहते हैं। इसी तरह से हमारे यहां गुरु हैं। खुद को भगवान कहने वालों के बारे में मैं बात नहीं करना चाहता, लेकिन मेरा मानना है कि दुर्भाग्य से 120 करोड़ लोगों के लिए हमारे पास पर्याप्त गुरु नहीं हैं। गुरु यह पक्का करने के लिए होते हैं कि कोई भी इंसान आध्यात्मिक संभावना से अछूता न रहे। तो हमें निश्चय ही ज्यादा गुरुओं की जरूरत है। मैं आशा करता हूं कि हजारों असली गुरु आएंगे, जो इतनी बड़ी जनसंख्या की जरूरत का ध्यान रखेंगे। हमें इस संभावना को तमामों तरीकों से पेश करने की जरूरत है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तमामों आध्यात्मिक ठेकेदार पैदा हो गए हैं।
प्रश्न 5: भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश-समाज के लोगों को बेहतरी की राह दिखाने में धर्मगुरुओं की भूमिका कितनी बड़ी है और इस संदर्भ में देश के मौजूदा धर्मगुरुओं की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
सद्गुरु : धर्म का मतलब है भीतर की तरफ कदम उठाना। जब आप अपनी आंतरिक प्रकृति की खोज करते हैं तब आप धार्मिक होते हैं। लेकिन आज हम कुछ विश्वासों के आधार पर अपने धर्म को परिभाषित कर रहे हैं। जब लोग अलग-अलग विश्वासों के जरिए पहचाने जाते हैं, तो इसका अंत झगड़े में होना लाजिमी है। तो धर्म सामंजस्य व सद्भाव बिगाड़ने का स्रोत बन गया है। अब समय आ गया है कि हम इस बुनियादी मुद्दे पर ध्यान दें।