Sadhguru जीवन में किसी भी काम या वस्तु के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव मिठास से भर देता है, लेकिन भक्ति का मार्ग तर्क और बुद्धि की प्रधानता  वाले लोगों को भक्ति मार्ग अतार्किक लगता है,क्या यह मार्ग तर्क के विपरीत है?

भक्त होने का यह मतलब नहीं है कि आपको कोई आसानी से हरा देगा। जो झुकता है, वह कभी नहीं टूटता। जो जानता है कि कैसे झुकना है, वह कभी नहीं टूटेगा, इसीलिए सुबह के समय आप योग करते हैं ताकि आपका शरीर टूटे नहीं। आपके भीतर की हर चीज के साथ ऐसा ही है। अगर आप झुकना सीख लेते हैं, अगर आप हर चीज को अपने से ऊपर देखना सीख लेते हैं, तो हो सकता है आपको लगे कि यह आपके आत्म-सम्मान के लिए ठीक नहीं हैं। है ना? बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आजकल कई तथाकथित आध्यात्मिक गुरु भी आत्म-सम्मान की बात करते हैं।

जब आप यहां इस जगत के स्रोत के रूप में रह सकते हैं, तो एक बेहद छोटे से हिस्से के रूप में रहने का भला क्या मतलब है। अगर विकल्प ही न होता, तो बात ठीक थी।
दोनों ही गलत है “आत्म” भी और “सम्मान” भी। आत्म और सम्मान दोनों ही समस्याएं हैं। दोनों ही बेहद सीमित चीजें हैं। दोनों बेहद कमजोर हैं। दोनों ही हमेशा असुरक्षित रहेंगे। अगर आपके भीतर आत्म-सम्मान नहीं है तो बहुत अच्छा है। अगर आपके भीतर कोई “स्व” की भावना नहीं है तो शानदार बात है। कोई समस्या नहीं है। अगर आपके पास दोनों हैं तो आप हमेशा ही असुरक्षित रहेंगे। क्या आपके भीतर आत्म-सम्मान है? मत रखिए। कम से कम तब तो मत ही रखिए जब मैं आसपास हूं। आप पूरी प्रक्रिया को ही व्यर्थ कर देंगे, गंवा देंगे।

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क्या है भक्ति?

भक्ति को ज्यादातर लोग ऊल्टा समझ लेते हैं, क्योंंकि वे भक्ति का अभ्यास करने की कोशिश करते हैं। न तो आप जागरूकता का अभ्यास कर सकते हैं और न ही भक्ति का। हां जागरूकता की अवस्था में आने के लिए आप कुछ खास तरीकों के अभ्यास जरूर कर सकते हैं, लेकिन आप जागरूकता का अभ्यास नहीं कर सकते। इसी तरह आप भक्ति का अभ्यास तो नहीं कर सकते, लेकिन कुछ चीजें कर सकते हैं जिससे आप भक्ति की अवस्था में पहुंच जाएं। एक आसान सा तरीका है जो आप कर सकते हैं, जिसकी चर्चा मैंने अभी की, यानी यहां आप हर किसी को और हर चीज को अपने से श्रेष्ठ समझें, ऊंचा समझें। तारे तो ऊपर हैं ही, लेकिन मैं चाहता हूं कि आप सडक़ पर पड़े छोटे से पत्थर के टुकड़े को भी अपने से ऊंचा मानें क्योंकि वह आपके मुकाबले कहीं ज्यादा स्थायी है। आपसे ज्यादा ध्यान की अवस्था में है। वह हमेशा के लिए बैठे रह सकता है। तो तरीका यही है कि आप हर चीज को अपने से ऊपर समझें। आप भक्ति की अवस्था में आ जाएंगे।

एक भक्त एक बिना दिमाग वाली खूबसूरत स्त्री की तरह नहीं होता, जो सिर्फ तोहफे पाकर खुश हो जाए। भक्त बुद्धि के अलग ही स्तर पर होता है और इस स्तर को बेचारे तार्किक दिमाग वाले लोग कभी नहीं समझ सकते। एक बार जब कोई इंसान इस तरह की अवस्था में आ जाता है कि अपने बारे में ज्यादा नहीं सोचे तो उसकी ग्रहणशीलता बढ़ जाती है। ऐसा इंसान उन चीजों को भी जान लेता है जिनके बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वह ऐसी बातों को भी ग्रहण कर लेता है, जिन्हें समझने के लिए भी आपको पूरी जिंदगी संघर्ष करना पड़ सकता है। भक्ति का स्वभाव ही ऐसा है कि आपके भीतर आपका कोई अहम् नहीं रह जाता। जब आपके भीतर कोई अहम् नहीं होता तो परम की संभावना बनती है, जब “सेल्फ” नहीं होता तो आप “सुपर सेल्फ” की संभावना बनती है। जब आप बहुत ज्यादा अहम् से भरे होते हैं, वह भी बहुत सारे सम्मान के साथ, तो फिर कुछ बड़ा घटित होने के लिए जगह ही नहीं बचती। फिर बचता है तो बस संघर्ष और मेहनत। आप जो भी करेंगे, वह श्रम ही होगा। हो सकता है आप ध्यान कर रहे हों, लेकिन वह भी एक तरह का काम ही होगा आपके लिए। यह ध्यान दूर तक नहीं ले जाएगा। हो सकता है आपको अभी श्रम करना पड़ रहा हो लेकिन इंसान यहां इसलिए तो नहीं आया है कि वह केवल श्रम करे।

भक्ति है सरल और तीव्र पथ

जब आप यहां इस जगत के स्रोत के रूप में रह सकते हैं, तो एक बेहद छोटे से हिस्से के रूप में रहने का भला क्या मतलब है। अगर विकल्प ही न होता, तो बात ठीक थी।

जब आप बहुत ज्यादा अहम् से भरे होते हैं, वह भी बहुत सारे सम्मान के साथ, तो फिर कुछ बड़ा घटित होने के लिए जगह ही नहीं बचती। फिर बचता है तो बस संघर्ष और मेहनत।
 मैं नहीं कहता कि इस मामले में कुछ भी गलत है, लेकिन यह प्राकृतिक है, यह आपके लिए बहुत स्वाभाविक है कि आपके पास जब एक से अधिक विकल्प होता है, तो आप उसे चुनते हैं जो बड़ा होता है, जो श्रेष्ठ होता है। एक इंसान के लिए ऐसा करना बड़ा स्वाभाविक है। जब यह आपका स्वाभाविक गुण है तो आपको निश्चय ही जो उच्च हो उसी को चुनना चाहिए।

कल अगर आप न रहें, न केवल आप, बल्कि पूरी धरती, पूरा सौरमंडल भी नष्ट हो गया तो बाकी बची सृष्टि पर इसका कोई असर नहीं होगा। यह बहुत मामूली सी घटना होगी। इसलिए अपने बारे में बड़े-बड़े विचार मत रखिए। इस छोटे से गोले में जिसे हम सौरमंडल कहते हैं, आपका अस्तित्व ही क्या है? आपको माइक्रोस्कोप से देखना पड़ेगा। मुझे लगता है कि इस सृष्टि में आपका अस्तित्व सिर्फ  इतना है कि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से भी आप नजर नहीं आएंगे। आप इतने छोटे हैं, बेहद नगण्य। आप हद से ज्यादा छोटे हैं और अपने बारे में विचार इतने बड़े-बड़े रखते हैं, यह तो निश्चित रूप से एक मनोवैज्ञानिक समस्या है।

भक्ति कैसे करें?

तो भक्ति का मतलब है कि अब आप दिमागी रूप से बीमार नहीं रहे। आपने अपने बारे में विचारों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं रखा है। आप जीवन को ऐसे ही देखते हैं, जैसा कि यह है। आप आसमान की ओर देखिए। आप अपने चारों ओर देखिए, हर चीज आपसे कहीं ज्यादा गहरी और विस्तृत है। गौर से देखिए, हर चीज। अगर आप इस तरह से लगातार देखने लगते हैं तो आप भक्त बन जाते हैं। इस तरह हर चीज, यहां मौजूद हर चीज एक मानसिक क्रियाकलाप बन जाती है। इस हर चीज को थोड़ी देर के लिए हम शिव कह लेते हैं, ताकि उससे आप जुड़ाव महसूस कर सकें। अगर आप शिव के साथ जुड़ाव नहीं महसूस कर सकते, तो आप हर चीज से जुड़ जाइए, यह भी ठीक है।

आप आसमान की ओर देखिए। आप अपने चारों ओर देखिए, हर चीज आपसे कहीं ज्यादा गहरी और विस्तृत है। गौर से देखिए, हर चीज। अगर आप इस तरह से लगातार देखने लगते हैं तो आप भक्त बन जाते हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि अब आप मनोवैज्ञानिक केस नहीं रह जाएंगे। आप इस जगत की वास्तविकता को समझते हैं, पहचानते हैं। आप अपने अस्तित्व की बेहद छोटी प्रकृति को समझते हैं। अगर आप इस तथ्य को समझते हैं, अगर यह वास्तविकता आपके अनुभव में आ जाती है, तो अचानक इस छोटे से अस्तित्व में इतनी क्षमता आ जाती है कि यह पूरी सृष्टि को अपने भीतर समा सकता है। यही जीवन की खूबसूरती है, क्योंकि छोटा और बड़ा तो बस आपके विचार हैं। अगर आपको लगता है आप बड़े हैं, आप छोटे हो जाएंगे। अगर आप खुद को छोटा बनाने को इच्छुक हैं तो आप बहुत बड़े हो जाते हैं, आप जीवन से भी विशाल हो जाते हैं। इस सृष्टि से भी ज्यादा विशाल हो जाते हैं। अगर आप “कुछ भी नहीं”  की अवस्था में आ जाते हैं यानी पूरी तरह रिक्त हो जाते हैं तो आप इस सृष्टि और सृष्टा दोनों से बड़े हो जाते हैं।

कल अगर आप न रहें, न केवल आप, बल्कि पूरी धरती, पूरा सौरमंडल भी नष्ट हो गया तो बाकी बची सृष्टि पर इसका कोई असर नहीं होगा। यह बहुत मामूली सी घटना होगी। इसलिए अपने बारे में बड़े-बड़े विचार मत रखिए।