सद्‌गुरुसद्‌गुरु हमें बता रहे हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में विकास के लिए जरुरी है कि शिक्षकों को भीतरी विकास के साधन मिलें। जानते हैं कि कैसे हमारी शिक्षा प्रणाली गुलामी के जमाने से चली आ रही है, और अब इसे बदलने की जरुरत है...

एक शिक्षक किसी विषय को रोचक बनाता है

हम जब भी शिक्षा की बात करते हैं, तो हमारे मन में बच्चों के बारे में ही विचार आते हैं। मुझे लगता है कि सबसे महत्वपूर्ण है शिक्षकों का विकास। शिक्षकों को लगातार अपना विकास करते रहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि वे विकास के इच्छुक नहीं हैं। लेकिन न तो विकास के साधन हैं और न ही विकास के अवसर। बात सिर्फ यहां आकर खत्म हो जाती है- ‘मुझे पता है कि अपना विषय कैसे पढ़ाना है।’

आप मेरी इस बात से सहमत होंगे कि आपके स्कूल के दिनों में जिस शिक्षक ने आपको सबसे ज्यादा दिलचस्पी व मौलिकता और नयेपन के साथ पढ़ाया था, अनजाने में वही आपका प्रिय विषय बन गया, चाहे वह गणित रहा हो या विज्ञान या फिर इतिहास। कोई भी विषय सुंदर नहीं होता, लेकिन एक शिक्षक उसे खूबसूरत अंदाज में पढ़ाकर रोचक बना सकता है।

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शिक्षक जानकारी नहीं, सिर्फ प्रेरणा का स्रोत हैं 

इसके लिए एक शिक्षक का विकास बेहद जरूरी है, और यह विकास सिर्फ पढ़ाने की क्षमता को लेकर ही नहीं होना चाहिए, बल्कि एक इंसान के तौर पर उसका भीतरी विकास भी जरूर होना चाहिए।

आप चाहे जितना बोलना चाहें, बोल लें, कोई भी आपसे प्रेरित नहीं होने वाला। आपको किसी न किसी न रूप में एक उदाहरण बनना होगा।
अगर शिक्षक का भीतरी विकास नहीं होगा तो आज के दौर में जब सारी सूचना और जानकारी फोन पर उपलब्ध हो, तो जानकारी के मामले में शिक्षक का महत्व खत्म हो जाएगा। आज जानकारी हर जगह उपलब्ध है। ऐसे में आज शिक्षक से जिस चीज की जरूरत है, वह है प्रेरणा की। अगर शिक्षक को प्रेरक होना है, तो उसके लिए उसे खुद का विकास इस तरह करना होगा कि लोग स्वाभाविक रूप से उसका आदर करने लगें। वरना कोई भी इंसान अपनी मूर्खतापूर्ण बातों से लोगों के लिए प्रेरक नहीं बन सकता। आप चाहे जितना बोलना चाहें, बोल लें, कोई भी आपसे प्रेरित नहीं होने वाला। आपको किसी न किसी न रूप में एक उदाहरण बनना होगा।

शिक्षा के क्षेत्र में लोग सबसे ज्यादा समय बिताते हैं

देश में शिक्षकों के आंतरिक विकास के लिए हमें बड़े पैमाने पर कुछ करने की जरूरत है, वरना हम लोग प्रेरणादायक शिक्षक तैयार नहीं कर पाएंगे। अगर हमने इंसानों को प्रेरित नहीं किया तो हम अपने पीछे अपने से कम प्रतिभाशाली पीढ़ी को छोडक़र जाएंगे। यह हर पीढ़ी की बुनियादी जिम्मेदारी है कि वो अगली पीढ़ी को अपने से बेहतर बनाए। अगर हम अपने से खराब पीढ़ी तैयार करते हैं, तो समझ लीजिए कि बतौर एक पीढ़ी हम नाकामयाब रहे। इतना ही नहीं, यह मानवता के प्रति एक अपराध है। तो इस तरह से जीवन का यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है। आज की दुनिया में ज्यादातर लोग, कम से कम टेक्नोलॉजी की दुनिया में, किसी भी नौकरी में तीन साल से ज्यादा नहीं टिकते। वे लगातार अपनी नौकरी बदल रहे हैं, यहां तक कि वे शादी भी कई बार कर रहे हैं। तो शायद उनके जीवन में शिक्षा का क्षेत्र ही एक ऐसा था, जहां वे लगातार बीस साल तक टिके रहे। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां लोग अपने जीवन का सबसे ज्यादा समय बिताते हैं। यह जगह निश्चित रूप से सबसे बेहतर होनी चाहिए, क्योंकि इसी जगह पर हर चीज आकार ले रही होती है।

गुलाम भारत की शिक्षा प्रणाली को बदलना होगा

इस क्षेत्र में हमें क्या करने की जरूरत है, इसके लिए हमें इस पर गौर करना होगा। साथ ही यह समझने की भी जरूरत है कि आज जो शिक्षा प्रणाली हमारे यहां है, वह मौटे तौर पर गुलाम भारत के समय की है।

 यह शिक्षा व्यवस्था बुनियादी तौर पर इस तरह तैयार की गई है, जहां बिना कोई सवाल किए अनुशासन की बात हो, क्योंकि अंग्रेजों को इसी तरह के अनुशासन की जरूरत थी और उन्होंने ऐसा किया। 
हमने अपनी शिक्षा प्रणाली में छोटे-छोटे कई बदलाव किए हैं, लेकिन वास्तव में हमने अपनी शिक्षा पर पुनर्विचार नहीं किया है। यह शिक्षा व्यवस्था बुनियादी तौर पर इस तरह तैयार की गई है, जहां बिना कोई सवाल किए अनुशासन की बात हो, क्योंकि अंग्रेजों को इसी तरह के अनुशासन की जरूरत थी और उन्होंने ऐसा किया। मेरा कहना है कि हमें शिक्षा में कुछ नया करने की जरूरत है, क्योंकि इस धरती, इस देश की एक बड़ी विशेषता यह रही है कि हजारों सालों से यह जिज्ञासुओं की धरती रही है। कोई यह पता नहीं लगा सका कि हम कौन हैं। यही वजह है कि हमने अभी भी अपनी संस्कृति को बनाए रखा है। हालांकि हम पर बार-बार आक्रमण हुए, कई लोगों ने हम पर शासन किया, लेकिन कोई भी यह जान नहीं पाया कि हम कौन हैं, क्योंकि हम लोग जिज्ञासु थे, किसी मत या संप्रदाय पर ऐसे ही विश्वास कर लेने वाले नहीं थे। यहां तक कि जब तथाकथित दैवीय अवतार भी इस धरती पर आए तो हम लोगों ने उनसे भी सवाल किए। कोई भी दैवीय अवतार इस संस्कृति को धर्मादेश नहीं दे सका - यहां सिर्फ एक ही चीज चली - बहस और शास्त्रार्थ ‐ अंतहीन बहस। अंतहीन बहस का मतलब है एक सक्रिय बुद्धि। जिज्ञासु होने की अवस्था तक पहुंचने का मतलब एक ऐसी जगह पहुंचने से है, जहां आपकी शिक्षा कभी रुकती नहीं है, आप मुक्ति और निर्वाण की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षा का काम इंसान को इसी लायक बनाना है।

नेतृत्व और आर्थिक संभावनाएं - दोनों ही अनुकूल हैं

बदकिस्मती से, कई वजहों से या शायद बहुत ज्यादा आबादी होने के कारण अब तक हम बहुत सारी चीजों से समझौता कर चुके हैं। लेकिन आज हम एक आर्थिक संभावना की दहलीज पर खड़े हैं। यही वह समय है, जब हमें वाकई जरुरत है अपनी शिक्षा व्यवस्था पर फिर से विचार करने की। आज हमारे पास अपनी शिक्षा प्रणाली को फिर से आकार देने का अवसर है, क्योंकि हमारे पास पर्याप्त मात्रा में आर्थिक साधन आते जा रहे हैं। आज हमारे पास दुनिया भर में जैसी पहुंच है, वैसी पहले कभी नहीं थी। आज हमारे पास एक ऐसा नेतृत्व है, जो इन तमाम बदलावों को लाने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ है।