भारतीय संस्कृति में महिलाओं को शादी के बाद आभूषण पहनने के लिए कहा जाता है। क्या है इस परंपरा के पीछे का विज्ञान?

सद्‌गुरुइस संस्कृति में कोई कारोबार नहीं होता, कोई शादी नहीं होती, कोई बच्चा नहीं होता, कोई परिवार नहीं होता – सब कुछ बस आपकी मुक्ति का एक साधन होता है।

महिलाओं को शादी के बाद बिछिया, नाक की लौंग और दूसरे आभूषण पहनने के लिए कहा जाता था, क्योंकि शादी एक ऐसा बड़ा अनुभव होता था कि वे शरीर को छोड़ सकती थी।
आप शादी करते हैं, आप बच्चों को बड़ा करते हैं या आप संन्यासी बनते हैं क्योंकि आप उसे अपनी मुक्ति के लिए एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं।

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इसलिए किसी शादी में, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि आपके पति और पत्नी पहले क्या करते थे। आप वर्तमान में जैसे हैं, वह एक विस्फोटक अनुभव होता है। पहले काफी महिलाएं इसी तरह रहती थीं क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत वैज्ञानिक थी और इसे उचित तरह से किया जाता था।

अक्सर उनकी शादी आठ साल की उम्र में हो जाती थी। वे चौदह या पंद्रह साल का होने तक मिलते नहीं थे मगर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से लड़की और लड़के को इस तरह पाला जाता था कि जब वे मिलें तो उनके बीच कुछ घटित हो। बच्चे के मन में वह एक बड़ी संभावना के रूप में विकसित होता था। आज के किशोर जैसा सोचते हैं, सिर्फ वही नहीं होता था। यह सिर्फ दो शरीरों, मन या भावनाओं का मिलन नहीं था, दो जीवन एक हो जाते थे।

महिलाओं को शादी के बाद बिछिया, नाक की लौंग और दूसरे आभूषण पहनने के लिए कहा जाता था, क्योंकि शादी एक ऐसा बड़ा अनुभव होता था कि वे शरीर को छोड़ सकती थी। अगर आपके शरीर के कुछ खास अंगों पर धातु हो, तो आप अचानक से अपना शरीर नहीं छोड़ सकतीं।

यहां भी, हम जब लोगों को गहन साधना के मार्ग पर डालते हैं, तो हम उन्हें तांबे की अंगूठी देते हैं। हम उन्हें यह नहीं बताते थे कि यह किस लिए है, मगर वे मेरी अनुमति के बिना उसे हटा नहीं सकते थे। मुख्य रूप से आध्यात्मिक साधना का मकसद आपके जीवन के सुर को सर्वोच्च बिंदु तक ले जाना होता है।

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से लड़की और लड़के को इस तरह पाला जाता था कि जब वे मिलें तो उनके बीच कुछ घटित हो।
यह ऐसा ही है कि जब वोल्टेज हाई होता है, तो रोशनी तेज होती है। अगर आपका वोल्टेज कम होगा, तो रोशनी मंद होगी और आपकी जागरूकता तथा बोध भी मंद हो जाएगा। आप सिर्फ जीवित रहने की प्रक्रिया को जान पाएंगे। अब आध्यात्मिक साधना से आप उसे तेज करना चाहते हैं। जब आप एक खास बिंदु तक उसे बढ़ाते हैं, जब लोग बहुत तीव्र साधना करते हैं, तो इस बात की संभावना होती है कि वे अचानक शरीर से बाहर निकल सकते हैं। लेकिन यदि शरीर पर धातु हो, तो ऐसी कोई चीज नहीं होती। धातु हमेशा उस प्रक्रिया को बाधित कर देती है क्योंकि वह शरीर के साथ आपका संपर्क मजबूत करता है। खासकर तांबा। कुछ हद तक सोना भी ऐसा करता है।