एक बहुत बड़ा विरोधाभास है कि यह देश, सदियों तक, एक ऐसे मनुष्य के नाम पर 2.77 एकड़ जमीन को लेकर खून बहाता रहा है, जो अपना राज्य त्यागने और हर उस चीज़ से दूर जाने के लिए तैयार था, जिसका वह न्यायपूर्ण उत्तराधिकारी था। और फिर भी, हम इस उपमहाद्वीप के करोड़ों लोगों के दिलों में उनके प्रति असाधारण भक्ति को कम करके नहीं आंक सकते। 

सबसे पहले, मैं यह साफ कर दूं कि मैं खुद को हिंदू या मुस्लिम समुदाय का समर्थक नहीं मानता। एक योगी के रूप में, मैं अपनी पहचान किसी एक विश्वास के साथ नहीं जोड़ता। योग पहचानों को छोड़ने का विज्ञान हैं, न कि उन्हें इकट्ठा करने का। यह भी एक सच्चाई है कि दक्षिण भारत में राम जन्मभूमि का प्रश्न कोई बड़ा भावनात्मक मुद्दा नहीं है। दक्षिण में राम के बहुत से भक्त हैं, मगर एक पवित्र स्थान के रूप में अयोध्या उनके लिए कोई विशेष महत्व नहीं रखती।

यह नहीं भूलना चाहिए कि दो समुदायों को बांटने की अंग्रेजी शासन की बेहतरीन कोशिशों के बावजूद, 1857 में हिंदुओं और मुसलमानों ने साथ मिलकर आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी। हमने उस षड्यंत्र का गुलाम बनने से इंकार कर दिया, जो हमें बांटते हुए हमें कमज़ोर करना चाहता था।

फिर भी, अगर मैं उच्चतम न्यायालय के निर्णय का स्वागत करूं, तो उसकी वजह ये होगी कि मैं इस देश के उन बहुत से लोगों में से हूं, जो चाहते हैं कि इस देश के विकास की राह में जो भी बाधाएं हैं, वे खत्म हो जाएं। मैं जानता हूं कि 95 प्रतिशत आबादी ऐसा ही महसूस करती है। हम सभी चाहते हैं कि लंबे समय से घिसटता चला आ रहा यह मुद्दा हमेशा के लिए सुलझ जाए। उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने ऐसा ही किया है। यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जिसका सभी को स्वागत करना चाहिए।

हमारी व्यक्तिगत धारणाएं जो भी हों, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि रामायण इस सभ्यता की मूलभूत कथाओं में से एक रही है। राम 7000 से अधिक सालों से लाखों जीवनों का आधार रहे हैं। इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण है कि वह कोई धार्मिक व्यक्तित्व नहीं हैं। कोई भी धर्म उन पर पूरी तरह दावा नहीं कर सकता। न ही इस कहानी में किसी भी बिंदु पर राम खुद को एक हिंदू घोषित करते हैं। अगर राम इस देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आदर्श हैं, तो इसलिए क्योंकि वह स्थिरता, संतुलन, शांति, सत्य, पवित्रता, करुणा और न्याय के प्रतीक हैं। हम उन्हें इसलिए पूजते हैं क्योंकि उनमें एक महान सभ्यता के निर्माण के लिए जरूरी गुण समाए हैं। अगर महात्मा गांधी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान रामराज्य का रूपक गढ़ा, तो इसकी वजह ये थी कि यह महान पौराणिक कथा हमारे डीएनए का हिस्सा है, यह हमारे सामूहिक मानस की गहराई में स्थापित है। ऐसी कहानी को विकृत न करना बहुत जरूरी है।

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हां, आधुनिक मन यह सोचकर हैरान हो सकता है कि हम राम की पूजा क्यों करते हैं। आखिरकार, उनकी कहानी कामयाबी की कहानी नहीं है। बल्कि उनके जीवन में लगातार विपत्तियां आती रहीं। कुछ ही लोग एक जीवनकाल में इतने दुर्भाग्यों से गुज़रते हैं। हालांकि वह सिंहासन के कानूनी उत्तराधिकारी हैं, वह अपना राज्य खो बैठते हैं और उन्हें वनवास दे दिया जाता है। वहां वह अपनी पत्नी खो देते हैं, जिन्हें वापस लाने के लिए उन्हें युद्ध लड़ना पड़ता है जिस प्रक्रिया में वह एक पूरा देश जला डालते हैं, और अपनी पत्नी को वापस लाते हैं। फिर उन्हें लोगों की आलोचना और छींटाकशी का शिकार बनना पड़ता है, जिसके बाद वह एक बार फिर अपनी पत्नी को जंगल भेज देते हैं। और भी दुर्भाग्य : उनकी प्रिय रानी को दुखद रूप से जंगल में बच्चों को जन्म देना पड़ता है। और विडंबना देखिए, राम अपने ही बच्चों से युद्ध करते हैं, क्योंकि वे उन्हें नहीं पहचानते। और अंत में, जिस एक स्त्री से उन्होंने हमेशा प्रेम किया, वह सीता जंगल में मृत्यु को प्राप्त होती हैं। साफ तौर पर यह एक शोकपूर्ण कहानी है और इस मनुष्य का जीवन एक बड़ी विफलता थी। लेकिन अगर हम उन्हें पूजते हैं, तो इसलिए क्योंकि उन्होंने अपना जीवन इस खास तरह से जिया, उन्होंने अपनी विफलताओं को भव्यता, गरिमा, साहस और धैर्य से संभाला।

उनका आदर इसलिए नहीं किया जाता कि वह बाहरी दुनिया के विजेता थे, वह भीतरी जीवन के विजेता हैं, क्योंकि वह विपरीत परिस्थितियों में डगमगाते नहीं हैं।

आज एक आधुनिक दृष्टि अपनाते हुए इस कहानी में दोष ढूंढना संभव है : हम सीता के प्रति राम के बर्ताव को स्त्री के प्रति अन्याय मान सकते हैं, या वानरों के चित्रण को नीचा दिखाने वाला और किसी खास जाति पर केंद्रित मान सकते हैं। दरअसल अतीत में जाकर किसी भी व्यक्तित्व को उठाकर उसकी चीर-फाड़ करना बहुत आसान है। चाहे वे कृष्ण हों, ईसामसीह या बुद्ध, एक आधुनिक दृष्टि से उनकी जांच-परख करना और उन्हें किसी न किसी रूप में अपूर्ण और दोषपूर्ण दिखाना आसान है। मगर इससे पहले कि हम आसानी से फैसले करते हुए इन व्यक्तित्वों को खारिज कर दें, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानवता को आदर्शों की जरूरत है।

आइए देखते हैं कि कौन सी चीज़ राम को इतना असाधारण बनाती है। कई हज़ार साल पहले, जब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में शासक सिर्फ विजेता थे, जो अक्सर बर्बर हुआ करते थे – उस समय राम ने मानवता, त्याग और न्याय की अनुकरणीय भावना का प्रदर्शन किया। उनका आदर इसलिए नहीं किया जाता कि वह बाहरी दुनिया के विजेता थे, वह भीतरी जीवन के विजेता हैं, क्योंकि वह विपरीत परिस्थितियों में डगमगाते नहीं हैं। रावण को मारने के बाद भी उनकी आँखों में क्रोध नहीं दिखता, वह गिरे हुए रावण के शव के पास आते हैं और उन्हें जो कार्य करना पड़ा, उसके लिए पश्चाताप करते हैं। अपने जीवन की सारी चुनौतियों के बीच, वह कभी अपना संतुलन नहीं खोते, कभी मन में कड़वाहट या प्रतिशोध नहीं रखते। वह काफी हद तक छल-कपट या राजनीति से दूर रहते हैं और अपनी शक्ति के दुरुपयोग को लेकर बहुत सतर्क रहते हैं। समभाव रखने वाले राम समग्रता और आत्म-त्याग का जीवन जीते हुए एक मिसाल पेश करते हैं, वे अपनी प्रजा के लिए अपनी खुशी त्यागने के लिए तैयार हैं। सबसे बढ़कर, मुक्ति को महत्व देने वाली संस्कृति में वह नकारात्मकता, स्वार्थ और अधमता से ऊपर उठकर आज़ादी के प्रतीक हैं।

संक्षेप में, राम नायक इसलिए नहीं हैं, क्योंकि उनका जीवन परफेक्ट है, बल्कि इसलिए हैं क्योंकि वह एक असाधारण जीवन जीते हैं। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुष कहा जाता है। और यदि रामराज्य को एक आदर्श के रूप में रखा जाता है, तो इसलिए क्योंकि वह एक न्यायपूर्ण राज्य का प्रतीक है, तानाशाही का नहीं। आज हम भारत को वही बनाना चाहते हैं और इसीलिए रामायण आज भी लगातार प्रासंगिक बना हुआ है।

राम-भूमि के भावनात्मक मुद्दे को जमीनी विवाद के तौर पर नहीं देखा जा सकता। सोलोमन की विद्वता हमें बताती है कि यह कभी संतोषजनक नहीं होगा। जब दो स्त्रियां एक ही बच्चे पर दावा करते हुए सोलोमन के पास पहुंची थीं, तो उन्होंने बच्चे को दो हिस्सों में काटकर दोनों को एक-एक हिस्सा ले लेने को कहा था। असली माता ने तुरंत दूसरी स्त्री से कहा, ‘तुम मेरे बेटे को ले लो। मैं अपने बच्चे के साथ ऐसा कभी नहीं कर सकती।’ किसी चीज़ को बस टुकड़ों में बांट देने से कभी कोई समाधान नहीं निकला है। समाधान वह है, जो हर किसी के लिए सार्थक, सम्मानजनक और व्यावहारिक हो। उच्चतम न्यायालय के फैसले ने हमें वही दिया है। उसने निर्णायक रूप से, समतापूर्वक और सहानुभूतिपूर्वक एक ऐसे मुद्दे को हल किया है जो लंबे समय तक इस देश में विनाश का कारण बना है। दोनों समुदायों के जिम्मेदार लोगों ने इस समाधान का स्वागत किया है। अब आगे बढ़ने का समय है।

देश का एक खास वर्ग – जो शुक्र है, छोटा है – हर समाधान में समस्याएं खोजना चाहता है। मगर हम इस मानसिकता से ऊब चुके हैं। अब हर समस्या का समाधान खोजने का समय है। यह नहीं भूलना चाहिए कि दो समुदायों को बांटने की अंग्रेजी शासन की बेहतरीन कोशिशों के बावजूद, 1857 में हिंदुओं और मुसलमानों ने साथ मिलकर आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी। हमने उस षड्यंत्र का गुलाम बनने से इंकार कर दिया, जो हमें बांटते हुए हमें कमज़ोर करना चाहता था। हमने अपनी कहानी खुद लिखने का फैसला किया। आजादी की लड़ाई के दौरान, हम एक होकर एक ही लक्ष्य को सामने रखकर एक जन, एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़े। फिर से वैसा ही करने का समय आ गया है।

ऐतिहासिक जख्मों को बार-बार कुरेदना, क्रोध और संघर्ष की गाथा को फिर से सामने लाना तथा हिंसा और प्रतिशोध की कहानियों को बार-बार खोलना बंद करना होगा। जो भी दर्द रह गया है, उसे ठीक होने दें। अब समय है कि हिंदू समुदाय दुख झेल रहे लोगों की ओर हाथ बढ़ाए और याद रखे कि जिस मनुष्य की विरासत को वे सुरक्षित करना चाहते हैं, वह किसी के प्रति कोई दुर्भावना या नाराज़गी नहीं रखता था। अब कृपा और आभार में झुकने और राम की विनम्रता को याद रखने का समय है। इस देश के मुस्लिम समुदाय के लिए भी यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उन्हें जो शिक्षा मिली है, वह उन्हें बताती है कि सारी धरती इबादत की जगह है। इससे अधिक समावेशी कथन कोई नहीं हो सकता।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय एक मील का पत्थर है। इसका मतलब है कि हम अपने झमेलों की जिम्मेदारी ले रहे हैं और अपनी अगली पीढ़ी को यह विरासत नहीं सौंपेंगे। इस देश की भावी पीढ़ियों के अपने मुद्दे होंगे, मगर कम से कम हम उनके ऊपर कोई पुरानी समस्या नहीं लाद रहे।

राम इस देश के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आदर्श हैं, क्योंकि वह स्थिरता, संतुलन, शांति, सत्य, पवित्रता, करुणा और न्याय के प्रतीक हैं। हम उन्हें इसलिए पूजते हैं क्योंकि उनमें एक महान सभ्यता के निर्माण के लिए जरूरी गुण समाए हैं।


Editor’s Note: This article was first published in Open Magazine. Sadhguru explains the historical background of the Ayodhya dispute and talks about the Legacy of Ram & Babur