ईशा याेग केंद्र अमेरिका में आदियोगी शिव के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा
ईशा योग केंद्र टेनेसी यु. एस. ए. में आदि योगी मंदिर की प्रतिष्ठा की गई। क्यों चुना गया है टेनेसी को इस प्रतिष्ठा के लिए? क्या है ख़ास इस जगह में? सद्गुरु बता रहे हैं कि यहां के मूल अमेरिकियों से जुड़े इतिहास के कारण उन्होंने इस जगह को चुना...
टेनेसी के ईशा योग संस्थान में फिलहाल योग केंद्र की प्रतिष्ठा चल रही है। हाल ही में सद्गुरु ने इस महत्वपूर्ण आयोजन में भाग लेने वाले स्वयंसेवियों और यहां रहने वाले लोगों को संबोधित किया। तो क्या कहा उन्होंनेः
कई मायनों में देखा जाए तो इस जगह की सुंदरता से ज्यादा इसके दर्द व पीड़ा ने मुझे यहां खींचा है। लगभग पंद्रह साल पहले की बात है। मैं सेंटर हिल लेक के पास से गुजर रहा था। वहां एक ऐसी पीड़ादायक स्थिति से मेरा सामना हुआ, जो मेरे जीवन के सबसे दुखद पलों में से एक थी। वहां एक दर्द से डूबी एक पुरानी आत्मा से सामना हुआ, जिससे पीड़ा रिस रही थी। यह मुलाकात शायद मेरी जिंदगी के सबसे पीड़ादायक क्षणों में से एक थी। इसके बाद मैंने इस भूमि के कई हिस्सों में भयानक पीड़ा का भाव गौर करना शुरू किया।
हालांकि काफी बाद में मुझे पता चला कि यह इलाका ‘अश्रु भूमि’ कहलाता है, जहां मूल अमेरिकी वासियों को जबदस्त पीड़ा और तकलीफ झेलनी पड़ी थी। यहां के लोग भी इस धरती का उसी तरह से हिस्सा थे, जैसे यहां के वृक्ष। उनकी प्रकृति या स्वभाव की वजह से उनका दर्द हवा में तैरता नहीं रहा, बल्कि यह धरती से जुड़ गया। हमें ऐसे दर्द का कई जगह अहसास हुआ है।
जो लोग किसी एक या दूसरे तरीके से अपने आसपास के माहौल खासकर धरती के प्रति सजग होते हैं, वे अपने सुख-दुख की छाप अपने आसपास जरूर छोड़ते हैं। इस धरती पर रहने वाले लोग किसी दूसरे ग्रह पर नहीं जाना चाहते थे। वे जानते थे कि वे इस जमीन से जन्में हैं और उनकी पूरी प्रक्रिया इस पर आधारित थी कि ज्यादा से ज्यादा इससे कैसे जुड़े रहा जाए। यही उनकी जानकारी थी, यही उनका ज्ञान था और यही उनका जीवन था। तो जब उनको पीड़ा हुई तो इस जगह वे पीड़ा का सागर छोड़ गए।
आप में से कुछ लोग इस केंद्र की स्थापना के शुरुआती सालों में यहां रहने आए थे, वे आसानी से यहां हर वक्त एक गहन पीड़ा का अहसास कर सकते थे। हालांकि उस पीड़ा का अहसास कई रूपों में अब काफी हद तक खत्म हो चुका है, लेकिन यहां आदियोगी की प्रतिष्ठा उस अहसास को पूरी तरह से खत्म करने में अंतिम कदम होगा। इससे सिर्फ इस केंद्र का ही पीड़ादायक अहसास खत्म नहीं होगा, बल्कि इस पूरे इलाके का यह दुखद अहसास खत्म हो जाएगा। ऐसा नहीं है कि वारेन कांउटी में मेरी किसी तरह की कोई विशेष दिलचस्पी है, बात सिर्फ इतनी सी है कि अगर आपको दर्द का इस्तेमाल करना आता हो तो यह एक बेहद कामयाब खाद भी है। अगर खाद अच्छी हो तो फूल और फल भी अच्छे होंगे। आने वाले सालों में यहां कई चीजें होनी तय हैं, कुछ हमारे साथ होंगी, कुछ हमसे परे भी होंगी।
अगर आपको विश्वास है कि आप हर उस चीज समझते हैं, जो आपके साथ अब तक घटित हुआ है, तो इसका मतलब है कि आपके साथ अभी तक कुछ बड़ा घटित ही नहीं हुआ है। ऐसी कोई चीज, जिसे आप समझ न पाएं, जिसे आप पकड़ न पाएं, जिसे आप अपने भीतर सहेज न पाएं, आपके साथ जरूर घटित होनी चाहिए। तभी समझा जाएगा कि आपका जीवन कुछ बड़े स्तर पर घटित हो रहा है। वर्ना आपका जीवन संकुचित है। इसलिए सारी चीजों को अपने दिमाग या समझ से होकर मत जाने दीजिए, यह बहुत छोटी सी जगह है।
अगले तीन दिनों में जो यहां होने जा रहा है, वो दुनिया के इस हिस्से में इससे पहले कभी नहीं हुआ। उत्तरी अमेरिका ने बहुत सी तंत्र विद्याएं देखी हैं, लेकिन इसने कभी ऐसी आध्यात्मिकता नहीं देखी। यहां लोगों ने तंत्र विद्याओं के जरिए जादुई चीजें की हैं, लेकिन मूलभूत दैवीयता नहीं देखी। अब जो होने जा रहा है, वह इतिहास की किताब में नहीं लिखा जाएगा, लेकिन अनुभव और ऊर्जा के स्तर पर यह अपने आप में बेहद ऐतिहासिक होगा। चीजों को इतिहास के पन्नों में तभी जगह मिलती है, जब वे राजनैतिक या सैन्य स्वभाव की होती हैं।
तो यह आप सभी के लिए एक महान संभावना है। मैं चाहता हूं कि आप इस घटना के सिर्फ साक्षी न बन कर इसके भागीदार बनें। आइए देखते हैं कि हम यहां क्या निर्माण कर सकते हैं। उम्मीद है कि मौसम अनुकूल रहेगा और सभी चीजें संयोजित रूप से घटित होंगी। ऊर्जा के स्तर पर तो यहां ठीक है, लेकिन भौतिक सहयोग की दृष्टि से यहां चीजें वैसी नहीं हैं, जैसी भारत में प्रतिष्ठा के वक्त होती है, फिर भी वे अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आप सब लोग अपनी पूरी गहनता और शक्ति के साथ काम करेंगे तो माहौल अपने आप बन जाएगा। तब हम सब मिलकर कुछ और ही कर सकते हैं।
आखिरी क्षणों में होने वाली गतिवधियां तेजी से नए मंदिर में घटित हो रही हैं। दुनियाभर से लगभग 1500 लोग यहां पहुंचे हैं। अगले तीन दिनों तक मेरे साथ रहिए और आदियोगी की कृपा का आनंद लीजिए।
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इन जंगलों का ख़यालों में खोया अँधेरा
है मूल-निवासियों के रक्त से सिंचित
ध्वस्त पेड़ों की उलझी लकड़ियों में
खड़ी थी पराजित मूल निवासी की आत्मा
ओ भाइयों, तुम्हारी पहचान है एक भूल
उनकी जिन्होनें किये समुद्र पार
जिनके स्वर्ण व भूमि लोभ ने नष्ट कर दिया
ज्ञान व लावण्य की आत्मा को
उनके वंशज जिन्होंने हत्या कर हर लिया सब
नहीं हैं दोषी अपने पूर्वजों की घोर गलतियों के
किन्तु जो रहे हैं ज़िन्दा, साहस व गौरव के पोषण पर
हैं खड़े हार व लज्जा की भावना में
ओ मृत व विध्वंसक – मुझ से लिपट जाओ.
लाने दो मुझे तुम्हारी आत्माओं को विश्राम