कैंसर – माडर्न समाज की लाइफस्टाइल से जुड़ा रोग
बीमारी के स्टैन्डर्ड यानी मानकों के हिसाब से देखा जाए तो कैंसर कोई बीमारी नहीं है। एक तरह से हमारे ही शरीर की कोशिकाएं हमारे ही खिलाफ खड़ी हो जाती हैं। इन्हें उकसाने या भड़काने का काम बाहरी हालात कर सकते हैं। ये बाहर से उकसाने या भड़काने वाले कारक और ऐसी घटनाएं इस तथाकथित आधुनिक समाज में काफी बढ़ चुकी है। इसके पीछे तमाम वजहे हैं। अगर बुनियादी तौर पर इसे देखा जाए तो यह - धरती, आकाश, जल, अग्नि और वायु - पांच तत्वों का ख़राब संगठन है। हम जिस तरह का खाना खाते हैं, जैसा पानी हम पीते हैं और जिस तरह की हवा में हम सांस लेते हैं- ये सारी चीजें हमारे तंत्र पर प्रभाव डालती हैं और इसे हमारे ही खिलाफ काम करने को मजबूर करती हैं।
कैंसर एक ऐसा रोग है जो जितना खतरनाक है, उतना ही हमारे रहन-सहन पर भी निर्भर है। आज के स्पॉट में सद्गुरु यही बता रहे हैं कि कैसे हमारी लाइफस्टाइल हमें इस बीमारी के करीब ले जा रही है -
सद्गुरु:
बीमारी के स्टैन्डर्ड यानी मानकों के हिसाब से देखा जाए तो कैंसर कोई बीमारी नहीं है। एक तरह से हमारे ही शरीर की कोशिकाएं हमारे ही खिलाफ खड़ी हो जाती हैं। इन्हें उकसाने या भड़काने का काम बाहरी हालात कर सकते हैं। ये बाहर से उकसाने या भड़काने वाले कारक और ऐसी घटनाएं इस तथाकथित आधुनिक समाज में काफी बढ़ चुकी है। इसके पीछे तमाम वजहे हैं। अगर बुनियादी तौर पर इसे देखा जाए तो यह - धरती, आकाश, जल, अग्नि और वायु - पांच तत्वों में आयी अशुधि के कारण है। हम जिस तरह का खाना खाते हैं, जैसा पानी हम पीते हैं और जिस तरह की हवा में हम सांस लेते हैं- ये सारी चीजें हमारे तंत्र पर प्रभाव डालती हैं और इसे हमारे ही खिलाफ काम करने को मजबूर करती हैं। हालांकि जेनेटिक कारक भी इसकी तैयारी में मददगार हो सकते हैं, लेकिन ये कैंसर के असली कारण नहीं होते।
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वैसे समाज के इस ट्रेंड को उलटना आसान नहीं है, क्योंकि समाज जिस तरह से एक खास तरह जीवनशैली को तेजी से अपनाता जा जा रहा है, उससे मानव तंत्र को कई अलग तरीकों से नुकसान पहुंचना तय है। जिस तरह से हमारे खाने में रसायनों और प्रीजर्वेटिव्स यानी खाद्य संरक्षकों का इस्तेमाल हो रहा है, जिस तरह का जहरीला पानी और हवा हम इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे कैंसर की घटनाएं और बढेंगी ही। इससे बचने के लिए एक आसान तरीका यह है कि हम ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक माहौल में रहना शुरू कर दें, ऐसी जगह जहां हम ताजी व शुद्ध हवा में सांस ले सकें, साफ पानी पी सकें- बोतल का नहीं, प्राकृतिक तौर पर साफ पानी और अपने आसपास उगी चीजों को भोजन में खा सकें। योगिक पद्धति में हमेशा कहा गया है कि आप अपने आसपास उगा भोजन ही ग्रहण करें। आसपास से मतलब ऐसी जगह से है, जहां पैदल एक दिन में जाया जा सके। आज यह संभव नहीं रहा है। ऊपर से हम बड़े गर्व से ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड से आने वाले सेब, चीन से आने वाले अंगूर या कहीं और से आई कुछ दूसरी चीजों को खाते हैं। हमने जिस तरह से अपनी बाजार की क्षमताएं विकसित की है उस पर हमें बड़ा गर्व है। हालांकि एक स्तर पर यह अपने आप में जबरदस्त है, लेकिन दूसरी ओर इसके कुछ अपने नतीजे भी हैं, जो हमें भुगतने होंगे।
हालांकि मेडकिल सांइस ने तमाम तरह के हल खोज निकालें हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने कितने हल खोजे है, क्योंकि हर बार एक नई समस्या उठ खड़ी होती है। जीवन की यही प्रकृति है। अगर आप किसी चीज का एक रास्ता रोकने की कोशिश करेंगे तो वह किसी और रास्ते से सामने आ जाएगी। जैसे - जैसे हम दवाइयों और उपचारों से कैंसर के मौजूदा स्वरूप से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वैसे-वैसे इसके और जटिल रूप सामने आएंगे। आधुनिक समाज को इसके साथ ही रहना होगा, क्योंकि आधुनिकता का मतलब ही हो गया है प्रकृति के विपरीत जाना। अगर आप प्राकृतिक तरीके से रहते हैं और प्रकृति द्वारा संचालित होते हैं तो आपको पुराने विचारों का मान लिया जाता है। अगर आप जीवन के प्राकृतिक तौर तरीकों से पूरी तरह से अलग हो जाएं, तभी आपको आधुनिक माना जाता है। कैंसर का पता लगाने की तकनीक जितनी आधुनिक होती जा रही है, कैंसर के मरीजों की संख्या भी उसी हिसाब से बढ़ती जा रही है। पहले तो कई लोग बिना इसके निदान के ही मर जाया करते थे, पता भी नहीं चलता था कि उन्हें कैंसर है। अभी भी जब तक हम आधुनिकता के अपने बुनियादी नजरिए को नहीं बदलते, जो हमारी ही खुशहाली के खिलाफ काम करती है, तब तक कैंसर की तादाद में लगातार इजाफा होता रहेगा।
तकनीक को लेकर हमारी खोज और इस्तेमाल बेहद बचकाना है। हम जो भी कर सकते हैं, उसे करना चाहते हैं और उसके नतीजों के बारे में पच्चीस साल बाद सोचते हैं। जब तक कि हमारा विज्ञान और तकनीक इतने परिपक्व नहीं हो जाते कि केवल उसी का इस्तेमाल करें जिसका इस्तेमाल हमारे लिए अच्छा है और जो हमारे लिए ठीक नहीं है, उसे नकार दें, बिना उसके आकर्षण और बाजार को देखे, तब तक कैंसर की घटनाएं लगातार बढ़ती रहेंगी। मैं जानता हूं कि आज के दौर में इन चीजों की पूरी तरह से अनदेखी संभव नहीं है। यहां तक कि इस स्पॉट को पढ़ने के लिए भी आपको कंप्यूटर के सामने बैठना पड़ रहा है और ऐसे में आप तक न सिर्फ मेरी तरंगें पहुँच रही हैं, बल्कि कंप्यूटर की तरंगें भी पहुँच रही हैं। इसमें आप कुछ नहीं कर सकते, यह जीवन का एक अंग बन चुका है, जिसे आपको झेलना ही होगा। लेकिन जहां तक हो सके, आप कम से कम अपने सोने व ध्यान की जगह को इस कंपन या स्पंदन से दूर कर सकते हैं। हालांकि यह कोई सौ फीसदी बचाव या हल नहीं है, लेकिन हम अगर इसे योगिक अभ्यास में उतार लेते हैं और हम जीवनशैली के ऐसे विकल्पों को चुनते हैं, जो प्राकृतिक चीजों से ज्यादा जुड़े हैं तो हम निश्चित तौर पर कैंसर की आशंका को कम कर सकते हैं।