आदियोगी शिव के 112 फीट ऊँचे चेहरे का लोकार्पण
इस बार के स्पॉट में सद्गुरु आदियोगी के 112 फीट ऊँचे चेहरे की स्थापना की योजना के बारे में बता रहे हैं। आइये जानते हैं, कि क्यों है ये 112 फीट ऊँचा और कैसे करेगा ये विश्व को रूपांतरित
शिव एक तरह से तीसरे नेत्र के प्रतीक हैं। उनके अनेक नामों में से एक नाम त्रयम्बक या त्रिनेत्र भी है, जिसका मतलब है तीसरी आंख वाला। तीसरी आंख की वजह से ही वे उसे भी महसूस कर सकते हैं, जो ‘है ही नहीं’। ‘जो है’ वह एक भौतिक अभिव्यक्ति है और ‘जो है ही नहीं’ वह अभौतिक। अभी आप जिन चीजों को अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों से नहीं महसूस कर सकते, वह आपके अनुभव में नहीं है। अगर इंसान कोशिश करे तो वह उसे भी देख सकता है, जो ‘है ही नहीं’, जो भौतिक नहीं है - यानी शि-व को। अभी हम जो भी हैं उससे और ज्यादा होने की चाहत ने कई जानें ली हैं, इसके चलते कई प्रजातियां खत्म हो गईं।
आदियोगी शिव का मूर्तिरूप
हम लोग आदियोगी को मूर्तिरूप में प्रतिष्ठित कर दुनिया में उनकी मौजूदगी को साकार करने की योजना बना रहे हैं, ताकि लोग समझ सकें कि केवल बोध या अनुभूति ही जीवन को सही मायने में विस्तार देती हैं। हम लोग फिलहाल आदियोगी की 112 फुट ऊंचे चेहरे को बनाने के काम में लगे हैं। 112 की यह संख्या हमारे अस्तित्व के लिए प्रतीकात्मक और वैज्ञानिक दोनों ही रूपों से महत्वपूर्ण है, क्योंकि आदियोगी ने मानव को उसकी परम प्रकृति तक पहुंचने के लिए 112 संभावनाओं को बताया था और इसके लिए मानव को अपने सिस्टम में मौजूद 112 चक्रों पर काम करना होता है। आदियोगी की यह मूर्ति इस धरती पर सबसे बड़ी शक्ल होगी। आदियोगी की मूर्ति के साथ ही उन पर लिखी गई एक किताब भी सामने आएगी और उम्मीद है कि अगले कुछ सालों में उन पर एक फिल्म भी बन कर आ जाए।
शिव के चेहरे को प्रतिष्ठित करने के पीछे मकसद दुनिया में एक और स्मारक या इमारत खड़ी करना नहीं है, बल्कि इसे एक जबरदस्त शक्ति के रूप में इस्तेमाल करना है, जो इस दुनिया के विश्वासियों को खोजियों में बदल सके।
खोजियों की संस्कृति रचनी होगी
सबसे जरुरी यह है कि इस संस्कृति को कुछ इस तरह से बनाया जाए, कि यहां हमेशा अकेले व्यक्ति खोजियों के रूप में मिलें, कभी कोई धर्म महत्वपूर्ण न हो। जिज्ञासुओं के बारे में अच्छी बात यह होती है कि वे प्रसन्नतापूर्वक भ्रमित रहते हैं। जब आपको किसी चीज की तलाश रहती है तो आपको उसको पाने की कोशिश में लगे रहते हैं, आपके पास लड़ने के लिए कुछ नहीं होता। आज दुनिया में इस चीज की सख्त जरूरत है। आज जिस तरह से इंसान सशक्त हुआ है, ऐसे में हमारे पास रचने और विनाश करने की जबरदस्त क्षमता है।
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आदियोगी शिव की प्रतिमा का अनावरण
हम लोग अगली शिवरात्रि यानी 24-25 फरवरी 2017 को आदियोगी की इस प्रतिमा का अनावरण करेंगे। इस निर्धारित समय तक काम को पूरा करने के लिए लोग यहां दिन-रात काम कर रहे हैं। हम इस प्रतिमा को दुनिया को लोकार्पित करेंगे। यह अपने आप में जीवन की अभूतपूर्व घटना होगी। आप में से जो लोग ध्यानलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा का अनुभव करने का अवसर चूक गए थे, उनके लिए यह काफी कुछ उसी तरह का अनुभव करने का मौका होगा। साथ ही दुनिया में आदियोगी के बारे में जितना हो सके उतना प्रचार करने का भी मौका होगा। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हमारी आने वाली पीढ़ी विश्वासियों की न हो, जिज्ञासुओं की हो।
और ज्यादा तकनीकों की नहीं - आज व्यक्तिगत रूपांतरण की जरूरत है
फिलहाल लोग हर चीज को एक संघर्ष में बदलने में सक्षम हैं और इसकी वजह है कि उनके पास आत्म-रूपांतरण के साधन नहीं है। अब वक्त आ गया है कि हम बदलाव लाएं और इसकी शुरुआत अपने घरों और अपने सामाजिक परिवेश से करें। इसके लिए हम ऐसी संस्कृति का निर्माण कर सकते हैं, जहां हम इस बात पर ज्यादा ध्यान दे सकें कि इंसानी तंत्र कैसे काम करता है। अगर आप यह समझ लेते हैं कि आपका सिस्टम कैसे काम करता है तो आप कई शानदार तरीकों से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। वर्ना आप एक इत्तेफाक वाली जिंदगी जिएंगे, जिसका मतलब है कि आप स्वाभावित तौर पर बैचेन और व्याकुल रहेंगे। उस स्थिति में सबसे आसान चीज़ें भी एक जबरदस्त संघर्ष होंगी। आज ज्यादातर इंसान क्या कर रहे हैं? वे जीवन-यापन के लिए कमा रहे हैं। अगर उनकी इच्छा होती है तो वे बच्चे पैदा करते हैं। उसके बाद वे एक दिन मर जाएंगे। इस धरती का हर दूसरा जीव भी यही कर रहा है, बल्कि कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से कर रहा है।
आपने गौर किया होगा कि पिछले दो से तीन सालों में गर्मियो के दिन पहले की तुलना में सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म थे। यहां तक कि हिमालय के इलाकों में भी आप ऐसा देख सकते हैं। भगीरथ नदी के उद्गम स्थान गोमुख में एक बर्फीली गुफा के मुहाने से पानी ऐसे निकलता था, जैसे कोई फव्वारा हो। यहां अब बर्फ इस कदर पिघल चुकी है कि आप इस गुफा के भीतर एक मील तक पैदल चल सकते हैं। यहां से सिर्फ एक पतली सी धार बाहर निकल रही है। पहले यहां की कई चोटियां जो पूरे साल बर्फ से ढंकी रहती थीं, वे कुछ महीनों को छोड़कर बाकी समय लगातार खाली रहती हैं। वहीं कावेरी नदी साल के तीन महीने समुद्र तक पहुँच ही नहीं पाती।
विश्व के लिए सुनहरा आध्यात्मिक युग
हम लोगों ने हाल ही में नए सौर चक्र में प्रवेश किया है। अगले बारह साल कई तरीके से इस धरती के लिए आध्यात्मिक आंदोलन की दृष्टि से सुनहरे युग बनने जा रहे हैं। अगर हम आगामी दशक में सही चीजें करें तो हमें परिणाम आसानी से मिलेंगे। आज मानव बुद्धि जितनी तैयार है, आज से पहले कभी ऐसी नहीं रही। चीजें अपने आप घटित हो रही हैं, इत्तेफाक से 2016 की स्थितियां कुछ वैसी ही हैं, जैसी तब थी, जब आदि योगी ने पहली शिक्षा दी थी। ये सारी चीजें हमारे लिए अच्छी हैं। मेरी यह कामना और आशीर्वाद है कि बतौर पीढ़ी हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए इसे साकार कर सकने का सौभाग्य प्राप्त हो। हम लोग आदियोगी की प्रतिष्ठित मौजूदगी से इसे साकार करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि हम उन्हें एक भगवान के रूप में प्रचारित कर रहे हैं, हम उन्हें एक योगी की तरह देखते हैं।
आत्म-रूपांतरण के साधन लोगों तक पहुंचाने होंगे
अगर हम जरुरी माहौल तैयार कर लेते हैं, तो ऐसे स्थान, जहां लोगों को अपने आत्म-रूपांतरण के साधन मिल सकें दुनिया में हर जगह संभव हो जाएँगे। अगर आवश्यक निष्ठा व समर्पण और एक शक्तिशाली जगह तैयार हो जाती है तो लोग निश्चित तौर पर आएंगे। आज पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा लोग जिज्ञासु हो रहे हैं - वे खोज रहे हैं। अब पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोग समाज में प्रचलित विश्वासों या मतों से निराश हो रहे हैं और उनका मोह भंग हो रहा है। हालांकि लोगों का एक बड़ा समूह आज भी अपने विश्वासों से चिपका हुआ है, भले ही वे विश्वास उनके किसी काम नहीं आ रहे हैं, उनसे उनका कुछ भी भला नहीं हो रहा है। इसकी वजह बस इतनी है कि लोगों के पास इसका कोई बेहतर विकल्प नहीं है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें बेहतर विकल्प मुहैया कराएं, क्योंकि इसी में दुनिया की बेहतरी व भलाई है।
अगर हमें एक शांतिमय दुनिया चाहिए तो इसके लिए हमें शांतिप्रिय लोग चाहिए। अगर हमें प्रेममय दुनिया चाहिए तो इसके लिए हमें प्रेममय लोग चाहिए। अगर हमें एक समझदार दुनिया चाहिए तो इसके लिए हमें समझदार लोग चाहिए।
आदियोगी बनेंगे प्रेरणा स्रोत
मैं चाहता हूं कि आप सब मिल कर किसी तरह से यह सुनिश्चित करें कि इस दुनिया में हर व्यक्ति आदियोगी के लोकापर्ण के बारे में जाने। ऐसा नहीं है कि जैसे ही लोग आदियोगी के चेहरे को देखेंगे, वे योग करना शुरू कर देंगे, लेकिन ‘आदियोगी’ शब्द धीरे-धीरे उन पर काम करेगा। पूरी दुनिया को पता लगना चाहिए कि एक खुशमिजाज और सुखद इंसान बनाने के लिए कोई कदम उठाया गया है। किसी भी पीढ़ी के लिए यह सबसे बुनियादी काम है कि वह इस दुनिया को, जैसी उन्हें मिली थी, उससे बेहतर बनाकर यहां से जाए। अगर हम पर्यावरण की दृष्टि से बात करें तो हमारे जीवनकाल में इसे जितना नुकसान हो चुका है, उसे हम वापस पलट तो नहीं सकते, लेकिन हम कम से कम लोगों को बेहतर हालात में तो छोड़ सकते हैं। अगर लोग शांतिमय और प्रेममय होंगे तो मुझे विश्वास है कि वे पर्यावरण को भी सुधार देंगे। आइए, हम सब मिल कर इसे साकार करें।