उस दिन किसी ने बहुत चिंतित होकर मुझसे पूछा कि मेरे शरीर छोड़ने के बाद क्या होगा, मैं कहां चला जाऊंगा। मैंने पहले भी कहा है – मैं शरीर छोड़ने के अस्सी साल बाद तक यहीं रहूंगा। अगर सब कुछ ‘यहीं और अभी’ है, तो हम जाएंगे कहां? ‘यहाँ-अभी’ में जाएंगे। ‘यहां और अभी’ सिर्फ आध्यात्मिक शब्द नहीं है, माडर्न फ़िज़िक्स इस पहलू में बहुत गहन दिलचस्पी रखती है। जब हम ‘यहां और अभी’ की बात करते हैं, तो हम समय और स्थान की बात कर रहे होते हैं। समय और स्थान सभी भौतिक चीजों की रचना के लिए एक बुनियादी आयाम है। अगर समय और स्थान नहीं होगा, तो सृष्टि का प्रश्न ही नहीं है, सब कुछ यहीं और अभी है। इसका मतलब है कि समय और स्थान आपका खुद का बनाया हुआ है। जिस तरह आप अपने शरीर और मन को बनाते हैं, उसके साथ ही आप समय और स्थान को बनाते हैं। शरीर और मन के संग्रह आपको समय और स्थान के नाटक के लिए तैयार करते हैं।

चक्र पूरा होने पर फिर से शून्य की स्थिति होगी

माडर्न फ़िज़िक्स बताती है कि किस तरह शून्यता(वैक्यूम) की स्थिति हल-चल से भरी और रचना करने वाली ताक़तों से भरपूर होती है और यह ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। सिर्फ यही नहीं, कहा जाता है कि जिस तरह एक बिग बैंग हुआ, यह संभव है कि किसी दिन एक ‘बिग क्रंच’ हो जो हर चीज को अभी और यहीं शून्य कर दे। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस तरह यह ब्रह्मांड एक बहुत छोटी चीज से बहुत विशाल चीज में फैल रहा है, किसी दिन इसकी उल्टी घटना भी हो सकती है। यह ऐसी चीज है जिसे हम योगिक प्रक्रिया में हमेशा से अपने अंदर जानते रहे हैं। जब हम निर्वाण, मोक्ष, शून्य की बात करते हैं, तो हमारा मतलब यही होता है। आप शून्य से आए और इतने विशाल हो गए, अगर आप इसे फिर से वहीं ले आएं, जहां से चले थे तो वह फिर से पूर्ण शून्य हो जाएगा।

अगर आप अपने अस्तित्व को उसके भीतर मौजूद पुरानी चीज़ों के रूप में ही जानते हैं, तो आपको सिर्फ अनस्तित्व(शून्य) ही आकर्षित करता है।
फिर आप कहां जाएंगे? जब जाना रुक जाता है, तो वहीं खेल ख़त्म हो जाता है। लगातार जाते रहना तब तक रोमांचक रहता है, जब तक आप काफ़ी जगहों पर नहीं गए हैं। अगर आपके लिए जगहें बची हैं, तो अस्तित्व उत्साहजनक होता है। अगर आप अपने अस्तित्व को उसके भीतर मौजूद पुरानी चीज़ों के रूप में ही जानते हैं, तो आपको सिर्फ अनस्तित्व(शून्य) ही आकर्षित करता है। ‘मुक्ति’ का अर्थ वातावरण की सीमाएं तोड़ कर आकाश में विलीन होना नहीं है। आप आकाश से भी मुक्ति चाहते हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.

विलीन होने का वास्तविक अर्थ

यह एक सरल, बचकानी प्रक्रिया है। मान लीजिए हम आपको एक छोटे से बक्से में कैद कर देते हैं और फिर आपको एक बड़े कमरे में छोड़ देते हैं, दो दिन तक आप आजाद महसूस करेंगे, मगर तीसरे दिन से आप फिर से कैदी महसूस करेंगे। अगर हम उससे बड़े कमरे में आपको छोड़ दें, तो फिर आप आजाद महसूस करेंगे मगर कुछ ही दिनों में आप फिर से कैद महसूस करने लगेंगे। तो चरम आजादी क्या हो सकती है? जब कोई और कमरा न हो, आप स्थान से बंधे हुए न हों और चूंकि समय और स्थान का एक-दूसरे के बिना अस्तित्व में नहीं हो सकते, इसलिए आप समय से भी बंधे नहीं होंगे। अगर स्थान नहीं होगा, तो समय भी नहीं होगा। इसीलिए हम ‘यहां और अभी’ की बात करते हैं। ‘यहां और अभी’ आध्यात्मिक शब्द नहीं हैं। यह भौतिकी विज्ञान के शब्द हैं। ‘यहां और अभी’ विलीन होने का अर्थ है, स्थान और समय की सीमाओं को पार कर लेना। यह सोचना मूर्खतापूर्ण होगा कि आप स्थान और समय से परे जा सकते हैं।

मैं वह पूरा मूलभूत ढांचा तोड़ चुका हूँ, जो जीवन को जारी रखने के लिए जरूरी होता है, और मैं फिर भी जीवित हूं जो अस्तित्व के हिसाब से अच्छी चीज नहीं है।
अगर कोई स्थान और समय नहीं होगा, तो आपका अपना भौतिक या कोई अन्य स्थान भी नहीं होगा। इसका अर्थ है कि आपका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। तो आप कहां जाते हैं? आप कहीं नहीं जाते। सारा जाना ही समाप्त हो चुका है। यही चरम मुक्ति है।

मुझे काफी पहले चले जाना चाहिए था

मेरी मृत्यु की बात करें तो मैं एक ऐसा जीवन हूँ जिसे काफी पहले चले जाना चाहिए था। मैं वह पूरा मूलभूत ढांचा तोड़ चुका हूँ, जो जीवन को जारी रखने के लिए जरूरी होता है, और मैं फिर भी जीवित हूं जो अस्तित्व के हिसाब से अच्छी चीज नहीं है। इस जीवन को बनाए रखने के लिए जो बुनियादी ढाँचा जरूरी है, उसके टूट जाने पर उस व्यक्ति का दुनिया में कोई काम नहीं है, उसे चले जाना चाहिए। मुक्ति की लालसा में हमने सारे ढाँचे को टुकड़े-टुकड़े कर दिया, फिर हमें एक असंभव काम सूझा। इसलिए हमने जीवन को जारी रखने का फैसला किया। अब जबकि वह भी पूरा हो चुका है, पता नहीं हम अब भी क्यों जी रहे हैं। चूंकि मेरे अस्तित्व का कोई मकसद नहीं है, मैं वे सभी चीजें करने की कोशिश कर रहा हूं, जिन्हें किए जाने की जरूरत है।

 शारीरिक रूप से चले जाने के बाद भी मैं अस्सी साल तक आस-पास रहूंगा।  
चाहे कल सुबह एक बिल्कुल नई सृष्टि भी सामने आ जाए, मान लीजिए पूरी तरह एक नया ब्रह्मांड निकलकर सामने आ जाए, तो भी उसकी खोज उतनी दिलचस्प नहीं होगी अगर आपने उसके घटित होने के बुनियादी चीज़ों को समझ लिया है। मान लीजिए, आप एक बढ़िया होटल में रह रहे हैं, जिसमें लाखों कमरे हैं। अगर आप वहां अतिथि के रूप में जाते हैं, तो आपको एक चाबी दी जाती है, जिससे सिर्फ आपका कमरा खुलता है। लेकिन सफाईकर्मी के पास ऐसी चाबी है, जिससे हर कमरा खुल जाता है। आप अपने कमरे में घुसते हुए बहुत उत्साहित होते हैं। लेकिन वह सफाईकर्मी रोज इन सभी कमरों को खोलती, देखती और साफ करती है, वह किसी एक कमरे में घुसकर उत्साहित नहीं होगी। अगर होटल का मैनेजर आकर आपसे कहता है, ‘एक दूसरा कमरा है, जिससे बेहतर नजारे दिखते हैं। क्या आप उसे लेना चाहेंगे?’ तो आप उत्साह से भर कर हां कहेंगे। मगर वह उत्साहित नहीं होगी क्योंकि उसने ढेर सारे कमरे देखे हुए हैं।

ध्यानलिंग – परम मुक्ति का द्वार

जीवन के साथ भी ऐसा ही है। अगर आपके पास चाभी हो और समय व इच्छा हो, तो आप हर कमरे को खोल सकते हैं। मगर वास्तव में कोई ऐसा नहीं करता। एक कमरा दूसरे से बहुत अलग नहीं है। अगर आप किसी नए ब्रह्मांड में प्रवेश करते हैं, तो सब कुछ अलग लग सकता है, मगर उसके बुनियादी तत्व एक जैसे होते हैं। जब आप काफ़ी जीवन देख लेते हैं तो आप उस बुनियादी ढांचे को तोड़ना शुरू कर देते हैं, जो जीवन को सहारा देता है। वह बुनियादी ढांचा मेरे लिए पहले ही टूट चुका है। अब मैं उधार के ढांचे पर हूं, कई बार तो खतरा भी होता है। शारीरिक रूप से चले जाने के बाद भी मैं अस्सी साल तक आस-पास रहूंगा। मैं पक्का करूंगा कि जिस किसी को मैंने किसी न किसी रूप में छुआ है, वह मेरे पूरी तरह जाने से पहले धरती से मिट जाए। आप पूछ सकते हैं कि मैं हमेशा के लिए क्यों नहीं रहूँगा? देखिए, हमेशा जैसी कोई चीज नहीं होती। और हमेशा के लिए लटके रहने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि हमने उस मकसद के लिए अधिक बेहतर व्यवस्था की है। इसीलिए ध्यानलिंग की स्थापना की गई है जो मुक्ति का एक हमेशा बना रहने वाला साधन है।

Love & Grace