बारीकियों में ईश्वर की उपस्थिति
भारतीय विज्ञापन जगत के एक महारथी प्रह्लाद कक्कड़ बता रहे हैं कि किस तरह सद्गुरु और इनर इंजीनियरिंग ने जीवन के उनके अनुभव को बदल दिया।
बारीकियों में ईश्वर की उपस्थिति
मैं बहुत ही अधार्मिक, नास्तिक और लोगों या जनसमूह की परवाह न करने वाली प्रकृति का व्यक्ति हूं, जो हर चीज को शंका की दृष्टि से देखता है। जब सद्गुरु ने व्यक्तिगत रूप से मुझे इनर इंजीनियरिंग करने का न्यौता दिया, तो उसे स्वीकार करने में मैं हिचक रहा था, मगर फिर भी उत्सुक था। उस समय मैं उन्हें जानता भी नहीं था। मैं तीन दिनों तक ध्यान करने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, मगर यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर यह व्यक्ति है कौन? यह किस प्रक्रिया की बात कर रहा है? इसलिए उस सप्ताह के अंत में खाली रहने के कारण मैंने वह कार्यक्रम कर लिया।
इस कार्यक्रम ने मुझ पर एक अमिट और एक अलग तरह की छाप छोड़ी। लोगों को भले ही यह नजर न आया हो, मगर मेरे परिवार और आस-पास के लोगों के सामने यह बिल्कुल स्पष्ट था। इनर इंजीनियरिंग ने लोगों के प्रति, और खास तौर पर उनकी अयोग्यता के प्रति मेरे रवैये को संयमित किया। इसने मुझे ज्यादा दार्शनिक और लोगों की कमजोरियों के प्रति सहनशील और धैर्यवान बना दिया है। इसने मेरे आवेश को कम कर दिया है और थोड़ा मजाकिया बना दिया है।
इन अभ्यासों ने मुझे शांत कर दिया है और मेरे अंदर ऊर्जा का एक भंडार बना दिया है, जिससे हर काम आसानी से हो जाता है। मैं जिंदगी भर कहता रहा हूं कि छोटी-छोटी बातों का बहुत महत्व होता है, इन्हीं में भगवान छिपा होता है। मैंने अपने विद्यार्थियों और कर्मचारियों को यह बात समझाने की बहुत बार कोशिश की, मगर ज्यादातर समय मैं विफल रहा। जब मैं आश्रम गया, तो यह देखकर हैरान रह गया कि वहां हर छोटे-छोटे काम पर ध्यान दिया जा रहा है और दिव्यता की भी उपस्थिति है। आश्रम में हर छोटी छोटी बात का बिना किसी प्रयास के ध्यान रखा जा रहा है। सद्गुरु ने मुझे आश्चर्यचकित और विनम्र बना दिया, मैंने पूछा, ‘सद्गुरु, इसका राज क्या है।’ उन्होंने जवाब दिया, ‘आपके लिए काम करने वाले लोग नौकरी करते हैं, जबकि मेरे लिए लोग सिर्फ प्रेम की वजह से काम करते हैं।’