जून के महीने में सूरज उत्तरायण से दक्षिणायन में प्रवेश करता है। ये दिन 21 जून, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हमारा इस बार का ईशा लहर अंक भी योग पर आधारित है। आइये जानते हैं, क्यों जरुरी है योग की शरण में जाना...
 

सन् 1879 में अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन ने विद्युत बल्ब का आविष्कार किया। दुनिया को आलोकित करने की अपनी ख्वाइश को पूरी करने की कोशिश में एडिसन ने लगभग एक हजार से भी अधिक प्रयोग किए। जब एक हजार प्रयोग करने के बाद भी वह अपने स्वप्न को साकार करने में सफ ल नहीं हुए, तो उनके एक सहयोगी ने दु:ख प्रकट करते हुए कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने सारे अनुसंधान और मेहनत के बावजूद आप असफल रहे।’’ एडिसन ने कहा, ‘‘दरअसल, मैं बेहद खुश हूं। अब मैं उन हजार तरीकों को जानता हूं, जिनके माध्यम से यह संभव नहीं है, इसलिए सही तरीका निकालने में अब मुझे कम मेहनत करनी होगी’’।

कुछ ऐसा ही हुआ है मानवता के साथ भी। आंतरिक आनंद और खुशहाली पाने की कामना से मानवता ने कई अनुसंधान किए। परिणामस्वरूप विज्ञान ने काफी  तरक्की की और बाहरी दुनिया में आमूल परिवर्तन ला दिया।

आज से लगभग 15 हजार साल पहले आदियोगी शिव ने इस धरती पर योग का जो बीज बोया उसके फ लने फूलने का अब समय आ गया है। योग विज्ञान का उपहार जो उन्होंने मानवता को दिया उससे अपने जीवन को खुशहाल बनाने का वक्त आ गया है।
जहां जंगल और झोपड़े थे, वहां आज महानगर और भव्य इमारतें हैं। जहां पहले सूनापन और अंधियारा था, वहां आज चहल-पहल और चकाचौंध है। लेकिन ये सारा उजास, ये सारी चहलपहल सिर्फ बाहरी है, उसका अंतर आज भी   सूना  है। खुशहाली और आनंद आज भी उसके साथ आंख मिचौली खेल रहे हैं। लेकिन एडीसन की तरह उसे इतना तो अवश्य समझ आ गया है कि आनंद उसे किन राहों पर नहीं मिलेगा।

इसका मतलब यह है कि वह वांछित वस्तु को पाने के काफी करीब पहुंच गया है। एक समय था जब हर इंसान अपने कल्याण के बारे में नहीं सोचता था। सिर्फ  राजा ही अपनी प्रजा के कल्याण के विषय में या फि र गांव का प्रधान पूरे गांव के कल्याण के बारे में सोचता था, बाकी लोगों का जीवन कुछ खास नियमों, मान्यताओं और विश्वासों के इर्द-गिर्द ही घूमता था। पर अब ऐसा नहीं रहा। अब हर इंसान अपनी तरक्की, खुशहाली और कल्याण के विषय में सोच रहा है। वैज्ञानिक शोध और उपलब्धियों ने मानवीय सोच व बुद्धि को एक नई दिशा दी है। अंधविश्वास, रूढि़वादिता और धार्मिक कट्टरता जैसी चीजों पर विज्ञान ने जबर्दस्त प्रहार किया है। संगठित धर्मों, स्वर्ग व नरक जैसी अवधारणाओं की जड़ें धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं। समस्त परंपरागत और पौराािणक चीजों को तर्क व विज्ञान की कसौटी पर कसा जा रहा है। ऐसे समय में योग विज्ञान काफी प्रासंगिक हो गया है। आज से लगभग 15 हजार साल पहले आदियोगी शिव ने इस धरती पर योग का जो बीज बोया उसके फ लने फूलने का अब समय आ गया है। योग विज्ञान का उपहार जो उन्होंने मानवता को दिया उससे अपने जीवन को खुशहाल बनाने का वक्त आ गया है। पिछले साल 21 जून को जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया तो पूरी दुनिया ने भारत के इस अनमोल उपहार - योग, का स्वाद चखा। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पुन: चौखट पर  खड़ा दस्तक दे रहा है।

इस अवसर के  महत्व को देखते हुए हम एक बार फि र योग के कुछ पहलुओं को इस अंक के जरिए आप तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। योग आपके जीवन में एक नए आयाम को जोड़ सके, और आप जीवन में स्थाई आनंद की तरफ  एक कदम बढ़ा सकें, इस कामना के साथ यह अंक आपको समर्पित करते हैं। योगम् शरणम् गच्छामि।

- डॉ सरस

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