विश्व केे विकास में योग की भूमिका
दूसरे योग दिवस के अवसर पर सद्गुरु ने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित किया था। उस चर्चा का विषय था स्थायी विकास लक्ष्यों को पाने में योग की भूमिका। इस बार के स्पॉट में पढ़ते हैं, उस संबोधन का एक अंश ...
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जब हम ‘सस्टेनेबल डेवेलपमेंट गोल्स’ यानी ‘स्थायी विकास-लक्ष्यों’ की बात करते हैं तो हमारा मतलब मानव कल्याण से होता है जो जुड़ा है 17 अलग-अलग मुद्दों से, जिसमें गरीबी, पोषण, स्वास्थ्य, महिलाओं से जुड़े मुद्दे व पर्यावरण से जुड़ी चीजें शामिल हैं। इन क्षेत्रों में सुधार के लिए दुनिया में लंबे समय से कोशिशें हो रही हैं। हम पूरी दुनिया को तो बदलना चाहते हैं, लेकिन अलग-अलग इंसानों के रूपांतरण को हमने अपना लक्ष्य नहीं बनाया है। दुनिया तो बस एक शब्द है। वास्तविकता ये है कि यहाँ बस अलग-अलग इंसान - जैसे मैं और आप हैं।
योग की भूमिका
प्रश्नः क्या आप बता सकते हैं योग वास्तव में है क्या और यह कैसे ‘स्थायी विकास-लक्ष्यों’ को पाने में मदद कर सकता है?
सद्गुरु : मानव कल्याण को पाने के लिए हम हर तरह की चीज करते आए हैं। हम लोग लंबे समय से ऊपर की ओर देख रहे हैं, जिसने मानवता को धर्म, जाति, संप्रदाय जैसे कितने ही तरीकों के नाम पर विभाजित किया है। पिछले पचास सालों में हम गंभीरता-पूर्वक सिर्फ बाहरी पहलुओं को ही देख रहे हैं और इस धरती को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं। आज हम जिस भी पर्यावरण से जुड़ी क्षति की बात करते हैं, वो सब मानव की बेहतरी के नाम पर की गई कोशिशों को नतीजा है। पिछले सौ सालों में निश्चित तौर पर हमारी पीढ़ी अब तक की सबसे ज्यादा सुविधाजनक स्थिति में है। फिर भी लोग खुश और शांत नहीं हैं, क्योंकि हमने इंसान के भीतरी प्रकृति को लेकर कभी सोचा ही नहीं।
जब आप मानव कल्याण को एक वैज्ञानिक नजरिए से देखते हैं तो यही योग बन जाता है। योग का शाब्दिक व सटीक अर्थ मेल या मिलन है। यह इंसान की व्यक्तिगत सीमाओं को ध्वस्त करने का वैज्ञानिक तरीका है। आखिर इसका क्या मतलब हुआ? फिलहाल आप यह देखते हैं कि यह मैं हूं और यह आप हैं। दोनों के बीच अंतर आपको साफ नजर आ रहा है।