नदी अभियान को सफल बनाने मेें शामिल सभी स्वयंसेवकों को मेरा आभार
रैली की सफलता की बात बताते हुए आज के स्पॉट में सद्गुरु अपने ह्रदय की गहराइयों से उन सबके प्रति अपना आभार व्यक्त कर रहे हैं, जिन्होंने किसी भी रूप में इसमें अपना योगदान दिया।
आप सब जानते हैं कि न अभियान अपने आप में एक बहुत अद्भुत आंदोलन रहा है। तीस दिनों तक देश भर के 16 राज्यों की यात्रा, 142 आयोजन, 186 मीडिया इंटरव्यू और इनके अलावा बेशुमार छोटी-छोटी चीजें हुईं। इतना सब होने के बाद भी सब कुछ ठीक है, सिवाय मेरे गले के। यह पूरा आयोजन बिना किसी बाधा के संपन्न हुआ और इसके लिए धन्यवाद देशभर के उन स्वयंसेवियों को, जिन्होंने असीम उत्साह दिखाया। धन्यवाद उन लोगों को भी, जो हमें पहले से नहीं जानने के बावजूद, इस मुद्दे से प्रेरित होकर इसे साकार करने के लिए आगे आए।
पूरे देश से मिला अद्भुत समर्थन
कुछ ऐसा भी घटित हुआ जो दिल को छू गया। मैं एक गांव से होकर गुजर रहा था, उस समय तेज बारिश हो रही थी। मैंने देखा कि रास्ते में एक बुजूर्ग महिला हाथ में रैली का नीला बोर्ड लेकर चार-पांच बच्चों के साथ खड़ी इंतजार कर रहीं थीं।
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देशभर में लोगों ने अद्भुत लगन और समर्पण के साथ अपनी प्रतिक्रिया व योगदान दिया। कम से कम पांच छह जगह ऐसा हुआ कि जब हम 11 या 12 बजे रात को अपने मंजिल पर पहुंचने वाले होते थे तो शहर में किसी दूसरी जगह कोई हमें रोक कर कहता, “नहीं, नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते। लोग आपका इंतजार कर रहे हैं। आपको वहां चलना होगा।” एक जगह तो एक ऐसा ही वाकया हुआ। वो लोग हमें एक शादी के एक हॉल में ले गए, जहां लगभग दो सौ लोग जमा होंगे। महिलाएं, पुरुष व बच्चे, वे सब विवाह समारोह के हिसाब से तैयार हो कर आए थे। हर चीज पूरी तरह से व्यवस्थित थी, संगीत बज रहा और वहां पूरी उत्सुकता से भरे लोग, जगे हुए हमारा इंतजार कर रहे थे। आधी रात को मैंने उन्हें संबोधित किया।
आमतौर पर हम रोजाना नौ से दस घंटे ड्राइविंग करते। कभी-कभी अठारह घंटे तक भी हमने ड्राइविंग की। हालांकि भारत की सड़कें अपने आप में चुनौती से भरी हुई हैं। लेकिन मैं कहूंगा कि आज लगभग अस्सी प्रतिशत सड़कें, जैसी वे आठ या नौ साल पहले हुआ करती थीं, उससे कहीं बेहतर हैं। राजमार्गों पर सचमुच अपने यहां जबरदस्त काम हुआ है। सड़कों पर एक चीज अक्सर परेशान करती है जब कुछ लोगों को लगता है कि वे अमेरिका में हैं और अचानक वे गलत साइड से आपके सामने आ जाते हैं।
नदी अभियान में राजनेताओं ने भुलाए आपसी मतभेद
सबसे बड़ी बात, जिस तरह से राजनैतिक समुदाय ने इसके प्रति दिलचस्पी व जोश दिखाया, वो अपने आप में जबरदस्त था। सभी दलों के नेता अपनी आपसी कटुता व विरोध को परे रख कर रैली के लिए होने वाले आयोजनों में साथ आकर खड़े हुए और पूरी तरह से रैली के लिए सहयोग किया। उनके इस जज्बे को नमन। कुछ ऐसे भी राज्य थे जो चुनावी माहौल में रंगे थे और विरोधी दलों के बीच तीखा संघर्ष चल रहा था। लेकिन हमारे साथ मंच पर सब साथ बैठे। पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान मुख्यमंत्री और अगर एक दल विशेष जीत जाता है तो राज्य का अगला भावी मुख्यमंत्री भी, एक साथ मंच पर मेरे साथ थे। ये तीनों न केवल साथ बैठे, बल्कि एक ही स्वर में बोले भी। यह साफ तौर पर इस बात का संकेत था कि भले ही हमने कितनी भी समस्याएं खड़ी की हों, लेकिन हम उनके समाधान रचने में भी सक्षम हैं।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मुद्दे पर कमिटी बनाई
इनके अलावा भी कहने के लिए ऐसी बहुत सी बातें हैं। शायद आपने बहुत सारे वीडियोज देखें होंगे और सोशल मीडिया पर रैली को फॉलो भी किया होगा। हमने नदियों को लेकर एक प्रस्तावित नीति का मसौदा प्रधानमंत्री को सौंपा।
उन लोगों ने इस पर काम करने के लिए एक कमीटी भी बना दी है, जो बहुत अच्छी बात है। अब हम लोग एक हाइप्रोफाइल बोर्ड बना रहे हैं, जो इस मामले में सरकार के साथ लगातार संपर्क व संवाद करेगा, ताकि यह काम आगे बढ़ सके। इसे लेकर कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं। कई राज्यों में हमें इस मामले को लेकर गंभीरता से जुटना होगा। मेरे काम बस बढ़ते ही चले जाते हैं। कुछ समय पहले किसी ने मुझसे कहा था, ‘सद्गुरु आप साठ साल के होने जा रहे हैं। आपको दुनियाभर में साठ गोल्फ कोर्स में खेलना चाहिए।’ मैंने कहा था कि क्यों नहीं? चलो इसे करते हैं।’ कुछ दिनों बाद वह सज्जन मुझे फिर मिले। उन्होंने मुझसे पूछा, ‘सद्गुरु, आपके साठ गोल्फ कोर्सों का क्या हुआ?’ मैंने जवाब दिया, ‘मुझे लगता है कि अब उनकी बजाय ये साठ नदियां होंगी।’
नदी अभियान की तैयारी सिर्फ तीन महीनों हुई थी
देशभर में यह आंदोलन जबरदस्त रहा है। यह एक ऐसी चीज है, जिसे होना ही चाहिए था। यह मुद्दा पिछले छह-सात सालों से मेरे मन में चल रहा था। आमतौर पर होता है कि मैं अपने मन में किसी चीज को लेकर किसी विचार का बीज बो देता हूं, जो हर रोज ध्यान दिए बिना भी अपने आप बड़ा होता रहता है। केवल तीन महीने पहले ही मैंने अपनी टीम को इस बारे में बताया। लेकिन जिस तरह से उन लोगों ने पूरी रैली को संभाला व संचालित किया, हमारे टीचर्स व स्वयंसेवी कमर कस कर उतर पड़े, उन्होंने इसकी सारी योजना बनाई, उसका प्रबंधन, संगठन, संदेश भेजना, सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक पर इसे चलाना, इसके लिए प्रायोजक ढूंढना, साठ से भी कम दिनों में एक विशाल आंदोलन खड़ा कर दिया गया।
ईशा का यही कमाल है। हम लोग बस मूर्खों का एक ऐसा समूह हैं, जो चेतना की ताकत से अद्भुत काम कर जाते हैं। यहां कोई बहुत ज्यादा बुद्धिजीवी नहीं हैं। यहां आधे लोग तो सिर्फ इसलिए हैं, क्योंकि वे कहीं और फिट ही नहीं हो पाते। जिस तरह से यह पूरी रैली आयोजित हुई, उसे लेकर समूचा देश हैरान है। देश के चोटी के कुछ लोग खुलेआम कह रहे हैं, ‘यहां तक कि देश की कोई बड़ी पार्टी भी इस तरह की रैली नहीं निकाल सकती थी। इसे ईशा जैसे एक संगठन ने कैसे कर दिखाया?’ यही वो चीज है, जो मोटी बुद्धि के लोग कर सकते हैं, क्योंकि इन लोगों के दिमाग में इसका बोझ नहीं होता कि ‘मैं इतना सारा जानता हूं।’ इसके लिए सामने सिर्फ एक तय लक्ष्य और उसके प्रति दिल में भक्ति भरी होनी चाहिए और तब यह अपने आप होगा।
मैं पूरे दिल से आभार प्रकट करता हूं - उन सबका जिन्होंने इस रैली में भाग लिया, उत्साह व उमंग से भरे बच्चे, बड़ी बड़ी हस्तियां, आम आदमी, देशभर के स्वयंसेवक, हमारे ब्रह्मचारी, शिक्षक और वे 13 करोड़ लोग, जिन्होंने एक अच्छे सरोकार के लिए अपने फोन का इस्तेमाल किया। आप सभी को मैं नमन करता हूं।