क्या लोगों के मन और भावनाओं को समझना जरुरी है? लोगों से मिलने पर सबसे पहले उनके भीतरी चैतन्य तत्व को नमन करके हम आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं...जानें कैसे...

प्रश्न: सद्‌गुरु, कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि मैं लोगों को थोड़ा-बहुत पढ़ सकता हूं, लेकिन फिर मुझे अहसास होता है कि शायद यह मेरा अहं है जो लोगों का आकलन कर रहा है। दो के बीच अंतर को मैं कैसे जान सकता हूं? और अगर मैं जान भी जाऊं तो क्या मुझे उसके अनुसार व्यवहार करना चाहिए?

 

सद्‌गुरु ज्यादातर लोगों को इस बात की जबर्दस्त गलतफहमी होती है कि दूसरे लोगों को जान लेने से, समझ लेने से वे बहुत प्रभावशाली हो सकते हैं। दरअसल लोगों की सोच यह है कि अगर आप दूसरों को जान जाते हैं तो आप स्थिति को कुछ हद तक संभाल सकते हैं, नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। अगर आप अभी खुद को जान लें तो आप इस दुनिया में बहुत प्रभावशाली बन सकते हैं। अगर आप कुछ पढऩे की कोशिश कर रहे हैं तो हो सकता है कि आप इसमें कामयाब हो जाएं क्योंकि आपके पास दिमाग है और आप आकलन कर सकते हैं, किसी के बारे में कोई राय कायम कर सकते हैं, कोई निर्णय ले सकते हैं।

Subscribe

Get weekly updates on the latest blogs via newsletters right in your mailbox.
देखा जाए तो आपकी राय या फैसलों का दूसरों से कोई लेना देना नहीं होता है। आपकी राय सिर्फ यह बताती है आपके सोचने का तरीका क्या है।
लेकिन सवाल यह है कि आप ऐसे आकलनों का, ऐसी राय का करेंगे क्या? आज मानव सभ्यता ऐसी हो गई है कि हम जो भी देखते हैं, चाहे वह पेड़ हो, कोई पत्थर हो या पानी या कुछ और, हम इस चक्कर में रहते हैं कि उसका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कैसे किया जाए। ऐसा नहीं होता कि हम किसी चीज को बस देखें और छोड़ दें।

यह बात केवल प्रकृति के साथ ही नहीं है, यह लोगों के मामले में भी उतनी ही सच है। एक बार अगर आपकी प्रकृति ऐसी हो गई तो आप हमेशा यह सोचेंगे कि लोगों को मैं अपने फायदे के लिए कैसे इस्तेमाल करूं। इस दुनिया में लोगों की समझ में एक बड़ी गंभीर विकृति आ गई है, या कह सकते हैं कि लोगों में एक जबरदस्त गलतफहमी आ गई है। देखिए, चीजों को इस्तेमाल करने के लिए बनाया गया है और लोगों को प्रेम करने के लिए, लेकिन गलतफहमी इतने गहरे तक उतरी हुई है कि लोगों का इस्तेमाल किया जा रहा है और चीजों से प्रेम किया जा रहा है। आपने देखा ही है कि लोग अपने पति और पत्नी को तलाक दे रहे हैं, लेकिन क्या आपने किसी को अपने पैसे, अपनी धन दौलत को तलाक देते हुए देखा है? हम लोगों का इस्तेमाल कर रहे हैं और चीजों से प्यार कर रहे हैं।

जैसे ही आप किसी शख्स के शरीर को देखते हैं, आपके मन में फौरन यह बात आती है कि यह शख्स सुंदर है या बदसूरत है, जवान है या बूढ़ा है। यह सब सेकंड से भी कम समय में मन में घटित होता है। अगर आप किसी शख्स के व्यवहार या बातचीत को आंकने की कोशिश करेंगे तो आप तमाम तरह के फैसलों पर पहुंच जाएंगे। आपको वे पसंद हो सकते हैं, नापसंद हो सकते हैं, आप उनसे नफरत कर सकते हैं, आप उनसे प्रेम कर सकते हैं। इसलिए किसी के शरीर, मन या भावनाओं पर ध्यान मत दीजिए। शुरुआत आप इंसान के भीतर गहराई में मौजूद तत्व से कीजिए। सबसे पहले तो आप जीवन के उस बीज के प्रति सिर झुकाइये जो उस व्यक्ति के भीतर मौजूद है। जीवन का स्रोत चाहे जो हो, आप उसे ईश्वर कहते हैं। जीवन का स्रोत या बीज हम सभी के भीतर मौजूद है। सबसे पहले आप उसके आगे अपना सिर झुकाइए। आपका सबसे पहला जुड़ाव इसके साथ होना चाहिए। इसके बाद ही आप उस शख्स के भीतर दूसरी तमाम चीजों को देखिए।

हो सकता है किसी इंसान का शरीर या मन ठीक न हो, लेकिन आपको उससे कोई समस्या नहीं है। हो सकता है वह इंसान आपकी संस्कृति का न हो, हो सकता है आपको उसकी कुछ चीजें पसंद और कुछ नापसंद हों। ये सब ठीक है, क्योंकि सबसे पहले आपने जीवन के मूल स्रोत को देखा है।

यह कोई आकलन या निर्णय नहीं है, यह जीवन की गहन समझ है कि जब भी आप किसी व्यक्ति से मिलें तो उसके भीतर मौजूद जीवन के स्रोत के प्रति अपना सिर झुकाएं। ऐसा करने से आप न तो कोई आकलन करेंगे और न ही आपके भीतर कोई द्वंद्व होगा।
यह कोई आकलन या निर्णय नहीं है, यह जीवन की गहन समझ है कि जब भी आप किसी व्यक्ति से मिलें तो उसके भीतर मौजूद जीवन के स्रोत के प्रति अपना सिर झुकाएं। ऐसा करने से आप न तो कोई आकलन करेंगे और न ही आपके भीतर कोई द्वंद्व होगा।

कोई भी इंसान हमेशा एक सा नहीं रहता। हो सकता है कोई इंसान आज ऐसा हो कि आपको पसंद न आ रहा हो। बहुत संभव है कि कल को यही इंसान बहुत अच्छे मूड में हो, लेकिन अगर आपने पहले की किसी घटना के आधार पर ही उस शख्स के बारे में एक राय बना ली है तो वह इंसान अभी जैसा है, आप उसका आनंद नहीं ले पाएंगे। एक बार अगर आप ऐसी स्थिति में आ गए तो यह एक तरह का फंदा होगा।

देखा जाए तो आपकी राय या फैसलों का दूसरों से कोई लेना देना नहीं होता है। आपकी राय सिर्फ यह बताती है आपके सोचने का तरीका क्या है। जब मन हमेशा चलता रहता है तो यह दुनिया के हर इंसान के और हर चीज के बारे में अपनी राय कायम करता रहता है। अगर आपका मन दूसरों के बारे में कोई राय बनाता भी है तो आप उसे कोई अहमियत न दें। जब आप राय बनाना शुरू कर देते हैं तो मोटे तौर पर दो तरह की राय होती हैं - यह अच्छा है, यह बुरा है। जिस किसी चीज को भी आप अच्छा समझते हैं, आप स्वाभाविक तौर पर उसकी ओर खिंचने लगते हैं और उससे जुड़ जाते हैं। जिस चीज को आप बुरा समझते हैं, उससे आप दूर होने लगते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि आपके भीतर नकारात्मक भावों का संचार होने लगता है इसलिए दूसरों के बारे में राय बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको बस परिस्थितियों का आकलन करना है। लोगों का आकलन नहीं करना है।

खास बात यह कि जो भी असंतुष्टि है, जो भी कड़वाहट है, जो भी नकारात्मकता है, वह आपकी खुद की कमियों की वजह से आती है, परिस्थितियों की वजह से नहीं। इस बात को महसूस करना परिपक्वता की निशानी है। राय हर कोई बना सकता है, लेकिन जिन लोगों के भीतर विकसित होने की इच्छा है, उन्हें दूसरों के बारे में राय बनाना बंद कर देना चाहिए। नहीं तो आगे बढऩे के लिए उठाया गया आपका एक कदम आपको सौ कदम पीछे की ओर धकेल देगा। अभी आपको इसका अहसास नहीं होगा लेकिन कुछ दिनों या महीनों के बाद आप यह महसूस करने लगेंगे। तो चाहे वह कोई नाशपाती हो या सेब, कोई शख्स हो या कोई अनुभव, वह जैसा है, उसे उसी रूप में अनुभव करें। यह आपके भीतर गहरे तक जाएगा। जब ऐसा होगा तभी आप जीवन को समझ पाएंगे।