उन आंखों में है अपार करुणा
ईशा योग केंद्र आना और सद्गुरु के दर्शन करना एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों से बयां करना मुश्किल है। फिर भी जाने-माने फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने इस मुलाकात को कुछ इस तरह साझा किया है:
ईशा योग केंद्र आना और सद्गुरु के दर्शन करना एक ऐसा अनुभव है, जिसे शब्दों से बयां करना मुश्किल है। फिर भी जाने-माने फिल्म निर्माता शेखर कपूर ने इस मुलाकात को कुछ इस तरह साझा किया है:
उन छोटे-छोटे बच्चों को जब ' सद्गुरु, सद्गुरु' चिल्लाते, तेजी से भागते सद्गुरु की बांहों में समाने की होड़ लगाते देखा तो एक पल के लिए उनके शोर और गति को देखकर मुझे लगा कि बच्चे उन्हें गिरा देंगे, लेकिन जैसे ही बच्चे अपने असाधारण प्रेम की बौछार करते हुए तेजी से सद्गुरु की ओर लपके, उन्होंने खुद को संभाल लिया। यह नजारा था भावों की पवित्रता और पूरी बेपरवाही से भरी स्वच्छंदता का, जिसका प्रदर्शन केवल बच्चे ही कर सकते हैं।
Subscribe
मैंने उस पल सद्गुरु की आंखों में देखा और एक बार फिर उन आंखों में मुझे वही अपार करुणा दिखाई दी, जो मैं पहले भी देख चुका हूं। उनकी बालसुलभ पवित्रता, उस पल के साथ पूर्ण जुड़ाव और चारों ओर बिखर रही ऊर्जा ने वहां मौजूद हर शख्स को अपने आगोश में ले लिया था, जिसमें खुद सद्गुरु भी शामिल थे, क्योंकि वह उस ऊर्जा से अलग नहीं थे। वह खुद ऊर्जा थे। उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे, क्योंकि उन्होंने उस प्रेम को लौटाया था, जिसे उकसाने का काम खुद उन्होंने ही किया था। उन्होंने सभी लोगों को प्रेम के पास में बांध दिया, जिसे तोडऩा अब मुमकिन नहीं था।
हालांकि यह वही इंसान हैं, जिन्हें मैं सालों से जानता हूं। एक ऐसे व्यक्ति, जो अपने आसपास की सभी चीजों को लेकर बच्चों जैसी उत्सुकता और हैरानी रखने के बावजूद पूरी तरह से मानवीय हैं। सद्गुरु सभी मशीनी चीजों को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं, खासकर अगर पहियों वाली गाडिय़ां हों। वह जितने आराम से वेनिस (हाल ही मैं उनके साथ गया था) की सडक़ों पर घूम सकते हैं, उतने ही आराम से मानसरोवर और कैलाश पर्वत की चढ़ाई भी कर सकते हैं। वह पूरी तरह से खुलकर कुछ इस कदर हंस सकते हैं, मानो इस दुनिया का एकमात्र लक्ष्य बस हंसना ही हो।
बिना सद्गुरु के ईशा के किसी भी अनुभव को बयां कर पाना असंभव है। दूर तक फैले इस 'लघु शहर' में उनकी मौजूदगी हर जगह महसूस की जा सकती है। समझ में नहीं आता कि इस जगह को और क्या नाम दूं, क्योंकि यह बात तो तय है कि यह आश्रम से कहीं ज्यादा है। यहां आवास की जगह है, स्कूल हैं, कायाकल्प केंद्र है, कुटियाएं हैं, खेल के मैदान हैं, कैफे हाउस हैं, रेस्त्रां हैं, कान्फ्रेंस सेंटर है और ऊर्जा का एक असाधारण मंदिर भी है जिसे ध्यानलिंग कहते हैं। तीर्थकुंड है, जहां अलग-अलग मतों को मानने वाले हजारों लोग आते हैं और पारे के बने ठोस लिंग की ऊर्जा से सराबोर पानी में डुबकी लगाते हैं। यहां एक जबर्दस्त और हठी सा नजर आने वाला नंदी बैल भी है। सद्गुरु से बात करने पर आपको यहां बनी हर चीज के पीछे की वजह और मकसद पता चलता है। इसके पीछे कोई ऐसी मान्यता या वजह नहीं है, जो किसी एक खास धर्म के लोगों के लिए ही प्रासंगिक हो। इसके पीछे जीवन के परम लक्ष्य को हासिल करने से जुड़ी वजहें हैं। इसके पीछे निहित विचार या भाव उस परम तत्व का अनुभव करने के लिए खुद का परिशोधन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जिसकी इच्छा हर धर्म और मान्यता के लोगों में होती है। इसके पीछे जीवन को ऊर्जा से भरपूर और सार्थक बनाने का विचार छिपा है।
हालांकि यहां और भी बहुत कुछ है। सद्गुरु ( जो मुझे लगता है कि पिछले जन्मों में कोई शिल्पकार थे ) की अनवरत ऊर्जा के मार्गदर्शन में, हमेशा सेवा के लिए तैयार रहने और कभी न थकने वाले स्वयंसेवियों और जीवन की पूर्णता का प्रदर्शन करते ब्रह्मचारियों के साथ ईशा लगातार आगे बढ़ रहा है। अपने अपरिमित विस्तार के साथ जीवन की अंदरूनी शक्तियों को हर इंसान के भीतर लाने के लिए किए जा रहे सद्गुरु की अनवरत कोशिशों के चलते मुझे लगता है कि ईशा का आगे बढऩा कभी नहीं रुकेगा।
अगर शब्द अनुभव की व्याक्चया कर पाने में सक्षम होते तो जीवन आसान होता। ईशा योग केंद्र की अपनी कुछ यात्राओं के दौरान मैंने जो संवेदना और करुणा यहां देखी, वह कहीं और दुर्लभ है। इसमें कोई शक नहीं कि मैं हर बार यहां एक खास मकसद से आया हूं। यह पूरी तरह से तय, अनुशासित और योजनाबद्ध गतिविधि होती है, जो व्यक्ति को एक खास लक्ष्य की ओर ले जाती है। हालांकि परिभाषा हमारे खुद के दिमागों द्वारा तैयार की गई एक जेल की तरह है।
ईशा केंद्र में आना अपने आप में एक यात्रा जैसा है। एक ऐसी यात्रा, जो इस शाश्वत और शून्य जगत की हर छोटी-बड़ी चीज के साथ परम जुड़ाव को अनुभव करने के लिए समर्पित है। निश्चित रूप से इस यात्रा की कोई परिभाषा नहीं है। यह अनंत है और इसकी कोई मंजिल भी नहीं है।