सद्‌गुरुजानते हैं कि ऐसा क्या विशेष था गौतम बुद्ध में, कि बस उन्होंने तीन दृश्य - एक वृद्ध मनुष्य, एक रोगी और एक मृत शरीर देखा - और वे आत्मज्ञान पाने के लिए निकल पड़े?

लगभग ढाई हजार साल पहले आधी रात में गौतम बुद्ध ने घर छोड़ दिया। राजमहल के राग-रंग, आमोद प्रमोद से वे ऊब गए, रूपवंती पत्नी का प्रेम और नवजात शिशु का मोह भी उन्हें नहीं थाम पाए। पहले एक रोगी को देखा, उसके बाद एक वृद्ध को और फिर एक मृत शरीर को। मन में प्रश्नों का सैलाब उमड़ पड़ा। जैसे-जैसे ये प्रश्न गहराते गए, उनके अंतर की पीड़ा बढ़ती गई। मौजूदा परिस्थिति में बने रहना अब उनके लिए असंभव हो गया। एक तरफ  जीवन बेहद मोहक, खूबसूरत और भव्य था, तो दूसरी तरफ  कितना क्षणिक। अभी इस क्षण में जो भरापूरा है, श्रेष्ठ है, जीवंत है, अगले ही पल में वह जर्जर, निर्बल और मृत हो जाता है। कहीं कोई ठहराव नहीं, न ही इसका कोई ठौर-ठिकाना। गौतम का ऐसे जीवन में बना रहना दुष्कर हो गया। कहा जाता है कि गौतम ने घर छोड़ा नहीं, उनसे घर छूट गया।

ध्यान करते ईशांगा

लोग अक्सर सवाल करते हैं कि हम भी तो जिंदगी के सुख-दुख के साथ जी रहे हैं और रोज ऐसे कई भयानक दृश्यों को देखते हैं, फिर हमारे साथ ऐसा क्यों नहीं घटता। यहां एक चीज तो हमें माननी ही होगी कि गौतम कोई साधारण इंसान नहीं रहे होंगे। वे चेतना, जागरूकता और बुद्धि के एक खास स्तर में विकसित होंगे। एक ऐसा इंसान जीवन के हर वाकये को बहुत गहराई से परखता है, उसका निरीक्षण करता है, उस पर चिंतन करता है; परिणाम स्वरूप कई गहन सवाल खड़े हो जाते हैं, फिर उसके समाधान की खोज पूरी निष्ठा और लगन के साथ करना उसके लिए स्वाभाविक हो उठता है। खैर, वो जैसे भी रहे हों, उन्होंने मानवीय चेष्टा और खोज को एक नई दिशा जरूर दी। अगर जीवन में सच्ची चेष्टा और खोज हो तो अपनी साधारण जिंदगी को हम भव्य और विराट बना सकते हैं - यह है उनका बेबाक संदेश।

आपके सवाल में धार नहीं है, वे पैने नहीं हैं, बिखरे हुए हैं। तो मेरा काम आपके सवालों को पैना करके उन्हें आप ही के लिए छोड़ देना है।

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एक प्रश्न के जबाब में सद्‌गुरु ने कहा, 'गौतम मात्र खोज रहे थे, यह जाने बगैर कि क्या खोज रहे हैं, लेकिन खोज रहे थे। अपना राज्य, अपनी पत्नी और एक नवजात शिशु को छोडक़र एक चोर की तरह रात में भाग गए। शायद उनके परिवार ने उन्हें सबसे निष्ठुर आदमी के रूप में देखा होगा, लेकिन हम कितने खुश हैं कि उन्होंने उन भयानक चीजों को किया। अगर उन्होंने एक ऐसा कदम नहीं उठाया होता, तो यह संसार और भी गरीब होता और वे लोग जो उनके साथ रहते थे, कुछ ज्यादा बेहतर नहीं हो जाते। यह भी हो सकता था कि कुछ समय के बाद उन लोगों को कोई और दुख मिल जाता।’ कई भीषण परिस्थितियों से गुजरती और भयानक मोड़ लेती उनकी यह खोज एक दिन समाधान की दहलीज पर पहुंच गई।

'गौतम ने दस्तक दी मौत की दहलीज पर

धर्मराज घबराए, इशारा किया आगे की ओर

सौम्य, शांत, संजीदा इंसान को देखकर

सृष्टि मुग्ध हो गई, कुछ भी छिपा न सकी

उसे गोद में बिठा, अपने सारे राज खोल दिए।’

वैशाख की पूर्णिमा की मध्य रात्रि में गौतम, बुद्ध में रूपांतरित हो गए। वह अपनी परम चेतना में खिल गए। अपने स्रोत से जुडक़र निहाल हो उठे। उनको एक ठौर मिला, वे अपने अंदर ठहर गए। सभी प्रश्न विलीन हो गए, समाधान दिन के सूरज की तरह दिखने लगा। एक इंसान का अपनी परम चेतना में खिलना, उस इंसान के लिए ही नहीं, संपूर्ण जगत के लिए बहुमूल्य है। ढाई हजार साल पहले जो रोशनी बुद्ध के अंदर फूटी, वो आज भी पूरे जहान को राह दिखाने के लिए काफी है।

गौतम के साथ जो घटा, वो हर इंसान के साथ घट सकता है। इसके लिए हमें अपने जीवन में गहराई लानी होगी। सद्‌गुरु कहते हैं, 'यह आपके साथ नहीं घट रहा, क्योंकि आप गहराई में जाकर जीवन का शोध नहीं कर पाए, आपके सवाल में धार नहीं है, वे पैने नहीं हैं, बिखरे हुए हैं। तो मेरा काम आपके सवालों को पैना करके उन्हें आप ही के लिए छोड़ देना है। बस अभी मैं यही कर रहा हूं। आप मुझसे गोल-गोल सवाल पूछ रहे हैं। मैं इन सवालों को पैना बनाने की कोशिश कर रहा हूं, जिससे आप उन सवालों के साथ जी सकें, क्योंकि सवाल ऐसे उपकरण हैं, जिन से आप गहरी खुदाई कर सकते हैं।'

  el patojo, randomix@flickr