जीसस यानी ईसा मसीह प्रेम, करुणा और त्याग की प्रतिमूर्ति रहे हैं। उन्होंने कभी भी अपने-पराए का, छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं किया। लेकिन क्या हम अपने अंदर उनकी बातों को उतार पाए हैं? क्रिसमस के मौके पर सद्‌गुरु याद दिला रहे हैं जीसस की शिक्षा की और बता रहे हैं कि उनकी शिक्षाओं को अपने अंदर उतारने का असली मतलब क्या है:

सद्‌गुरु 

जीसस की शिक्षाओं का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था - जिंदगी को बिना किसी पक्षपात के जीना, और यह नहीं देखना कि कौन अपना है और कौन पराया। केवल तभी कोई इंसान 'ईश्वर के साम्राज्य' को जान सकता है।
जब हम 'जीसस' की बात करते हैं, तो हमारा मतलब दो हजार साल पहले इस धरती पर आए किसी इंसान से नहीं, बल्कि हर इंसान में निहित एक खास संभावना से है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि हर इंसान उनके गुणों को अपने भीतर पनपने का और खिलने का पूरा मौका दे, क्योंकि आज लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हैं। चैतन्य की तलाश में हम अपनी मानवता को खो रहे हैं।

जीसस की शिक्षाओं का सबसे महत्वपूर्ण पहलू था - जिंदगी को बिना किसी पक्षपात के जीना, और यह नहीं देखना कि कौन अपना है और कौन पराया। केवल तभी कोई इंसान 'ईश्वर के साम्राज्य' को जान सकता है। जीसस ने साफ  तौर पर कहा था कि 'ईश्वर का साम्राज्य' कहीं ऊपर आसमान में नहीं है, बल्कि आपके अंदर ही है। दरअसल, जीसस ने शुरुआती दौर में लोगों का ध्यान खींचने के लिए उन्हें 'ईश्वर के साम्राज्य' तक ले जाने की बात कही थी। जब बहुत सारे लोग जीसस के साथ हो गए, तो उन्होंने बात घुमा कर कहा- 'ईश्वर का साम्राज्य तो तुम्‍हारे भीतर ही है।' उनकी शिक्षाओं का यही सार था।

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अफसोस की बात है कि दुनिया की तकरीबन 99 फीसदी आबादी अपने भीतर मौजूद इस अद्भुत संभावना से अनजान है। अगर यह 'साम्राज्य' कहीं दूर होता, तो शायद आप वहां जाना न चाहते। लेकिन जब यह यहीं आपके भीतर है, और आप उसे नहीं पहचान पाते, तो क्या यह त्रासदी नहीं है? सीधी सी बात है कि अगर 'ईश्वर का साम्राज्य' आपके भीतर है तो उसे आपको अपने भीतर ही तलाशना होगा।

 जब वे कहते हैं - 'केवल बच्चे ही ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश कर सकते हैं' तो बच्चों से उनका मतलब छोटे बच्चों से नहीं था, बल्कि उन लोगों से था, जिनका मन बच्चों जैसा निश्छल हो, जिन्होंने हर चीज के बारे में धारणाएं न पाल रखी हों और पूर्वाग्रह से मुक्त हों।

उन्होंने कहा: विश्वास रखो!

दुनिया में ऐसे वैज्ञानिक तरीके भी हैं, जो आपको अपने भीतर छिपे उस आयाम तक पहुंचने में मदद करते हैं, जो सृष्टि का मूल स्रोत है। यह शरीर जो आप धारण किए हुए हैं, वह भी आपके अंदर मौजूद उसी स्रोत से बना है। जीसस के पास अपने जीवन में इतना वक्त नहीं था कि वे इस विज्ञान को स्थापित कर पाते, इसलिए उन्होंने विश्वास पर जोर दिया, जो वहां जल्दी पहुंचाने का रास्ता है। जब वे कहते हैं - 'केवल बच्चे ही ईश्वर के साम्राज्य में प्रवेश कर सकते हैं' तो बच्चों से उनका मतलब छोटे बच्चों से नहीं था, बल्कि उन लोगों से था, जिनका मन बच्चों जैसा निश्छल हो, जिन्होंने हर चीज के बारे में धारणाएं न पाल रखी हों और पूर्वाग्रह से मुक्त हों।

आप जिन भी निष्कर्षों पर पहुंचे हैं, वे गलत ही होंगे, क्योंकि जीवन आपके निष्कर्षों में फिट नहीं बैठता और ना ही आपके निष्कर्षों के अनुसार चलता है। न तो जीवन और न ही जीवन का स्रोत उस इंसान का भला करेगा, जो तरह-तरह की धारणाओं और निष्कर्षों के साथ जीता है। हां, अगर आप इन निष्कर्षों का बोझ  उतार फेंकते हैं, तो फिर यह जीवन बहुत आसान हो जाएगा।

जीवन के अंतिम दौर में, जब यह तय हो गया था कि अब जीसस को सूली पर चढ़ाया जाना है तो उनके शिष्यों के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था-'जब आप अपना शरीर छोड़ कर अपने पिता के साम्राज्य में जाएंगे, और उनके दाहिने हाथ की तरफ  बैठेंगे तो उस समय हम लोग कहां होंगे? हम में से कौन आपके दाहिने हाथ की तरफ  होगा?' कितनी अजीब बात थी- उनके गुरु को, जिन्हें वे ईश्वर का पुत्र मानते थे, एक भयानक मौत दी जा रही थी, और शिष्यों के मन में यह सवाल घूम रहा था! लेकिन आप उस आदमी की खूबी देखिए, उन्होंने यह खूबी जीवन भर दिखाई - लोगों ने उन्हें बहुत परेशान किया, पर इसकी बिना कोई परवाह किए जो वह करना चाहते थे, अपने उस लक्ष्य को स्थापित करने में लगे रहे। जवाब में उन्होंने कहा - 'जो लोग यहां सबसे आगे खड़े हैं, वे वहां सबसे पीछे होंगे। और जो लोग यहां सबसे आखिर में हैं, वे वहां सबसे आगे होंगे।' इस तरह उन्होंने बड़े-छोटे के बीच का अंतर मिटाया। उनका कहने का मतलब था - आप धक्का-मुक्की करके पहले स्वर्ग नहीं पहुंच सकते। आंतरिक दुनिया में केवल आपकी पवित्रता ही काम आती है।

 अफसोस की बात है कि जीसस की शिक्षाओं के सबसे महत्वपूर्ण तत्व को भुला दिया गया है। अब समय आ गया है कि जीसस के शब्दों में छिपे गूढ़ अर्थ को फिर से स्थापित किया जाए...

जीसस की भावनाओं को बरकरार रखें !

अब समय आ गया है कि विश्वास के दायरे से निकल कर जीवन को वैसे ही देखें, जैसा कि यह है। आखिरकार जीवन का स्रोत तो आपके भीतर ही है। अगर आप इसे अपना काम करने देंगे तो हर चीज एक लय में होगी और यही बात जीसस की शिक्षाओं का मूल आधार है। हालांकि जीसस के शब्दों से दुनिया को काफी त्याग, करुणा और प्रेम मिला है, लेकिन उनके जीवन और उनकी शिक्षाओं का सबसे अहम पहलू और सार यही है - 'ईश्वर का साम्राज्य आपके भीतर है।'

जब यह आपके अंदर ही है, तो इस तक पहुंचना एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब किसी संप्रदाय, पंथ या फैन-क्लब से जुडऩे से नहीं है। यह हर इंसान की निजी खोज और साधना है, जो पूरब में प्रचलित योग और आध्यात्मिक प्रक्रियाओं का सार है। अफसोस की बात है कि जीसस की शिक्षाओं के सबसे महत्वपूर्ण तत्व को भुला दिया गया है। अब समय आ गया है कि जीसस के शब्दों में छिपे गूढ़ अर्थ को फिर से स्थापित किया जाए- किसी खास संप्रदाय के लिए नहीं, बल्कि हर इंसान के लिए, ताकि समाज में जीसस की भावनाएं जीवित रहें।