अनजान था ईश्वर के निवास से
फिर पाया एक विकल्प
माँ के गर्भ के रूप में
आने वाली पीढ़ी है सिर्फ़ एक उपहार
स्त्री के ही गर्भ और वक्षों का
पवित्रता जिनकी खो दी है पुरुष ने
और बना दिया है इसे कामुकता का खेल
जो नहीं करता सम्मान
अपनी ही रचना के उद्गम का
निश्चित ही डालेगा ख़ुद को
गुमनामी की गर्त में
आपके भीतर और बाहर भी
है एक स्त्री
जीवन की महिमा और शोभा
निहित है - इस स्त्री का उत्सव मनाने में
सद्गुरु