मैं दावा करता हूँ,
कि ये सूखे पत्ते मेरे हैं
और निश्चित रूप से,
यह नीला आकाश भी
क्योंकि बाकी हर चीज़ पर,
दावा है पहले ही।
इंसान को अपने अस्तित्व में
महसूस होती कमी,
बनती है वजह उसके दावे की
हर उस चीज़ पर जिस पर पड़ती है उसकी नज़र
ज़मीन, मिट्टी, जल, लोग
यहां तक कि चंद्रमा के धब्बे भी।
चंद्रमा पर चल रहा है
संपत्ति का बँटवारा,
यह पागलपन नहीं है,
तो क्या है।
लालसा किसी से जुड़ने की
और फिर बदले में उस पर अधिकार पाने की
इस चाहत में,
जन्म और मृत्यु की यह
छोटी सी ज़िंदगी,
बदल गई है एक कट्टर उन्माद में।
सद्गुरु