अंतहीन सड़कों से गुज़रते हुए
लुढ़कते बढ़ते पहिए
खुद को घिसकर पूरा करते हैं
लालसा हमारी खानाबदोशी की।
जंगल, मैदान, रेगिस्तान, पहाड़
और समुद्र-तट - ये सभी नज़ारे
चाहे हो जाएँ धुँधले
पर रहते हैं मानस पर अंकित
और बदलते हैं हमारा जीवन,
इस धरती के आनंददायक दृश्यों
और प्राकृतिक आश्चर्यों की
समृद्ध नक्काशी से।
खानाबदोशी की लालसा
रखती है आपको हमेशा दूर
उस पागलपन से
जो बना देता है इंसान को
साजो-सामान का ढेर।
- सद्गुरु