ज़ेन और योग मार्ग कैसे अलग हैं एक दूसरे से?
कई बार हमें लगता है कि कितना अच्छा होता अगर हर काम बिना किसी संघर्ष या फिर बिना किसी मेहनत के ही हो जाता। लेकिन क्या ऐसी स्थिति मुमकिन है? जानते हैं योगासन और ज़ेन के तरीकों से बारे में जो हमें ऐसी स्थिति तक पहुंचाते हैं।
रूसी बैले डान्सर निजिंस्की के बारे में एक कहानी है। उसका पूरा जीवन डान्स को समर्पित था। कई पल ऐसे होते थे, जब वह ऐसी ऊंचाइयों को छू लेता था, जो एक इंसान के लिए असंभव लगती थी। चाहे किसी की मांसपेशियां अपनी ऊँची क्षमता का कितना भी प्रदर्शन क्यों न करे, फिर भी इसकी एक सीमा होती है कि कोई व्यक्ति कितना ऊंचा उछल सकता है। लेकिन कई ऐसे पल आते जब वह उस सीमा को भी पार कर जाता था। लोग अक्सर उससे पूछते थे, ‘आप यह कैसे कर लेते हैं?’ उसका जवाब था, ‘मैं ऐसा कर ही नहीं सकता। ऐसा तभी होता है, जब वहां निजिंस्की नहीं होता।’
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जब कोई व्यक्ति लगातार अपना सौ फीसदी प्रदर्शन करता है, तो एक ऐसा बिंदु आता है, जब वह सभी सीमाओं को पार करके संपूर्ण सहजता को प्राप्त कर लेता है। सहजता का मतलब यह नहीं है कि आप पड़े रहें। इसका अर्थ है, शारीरिक क्रिया की जरूरत से परे चले जाना। आप इस बिंदु तक तभी पहुंचते हैं, जब आप ख़ुद को पूरी तरह स्ट्रेच करने (डट कर काम पर लगे रहने) में सक्षम हों, और अपनी कोशिशों के शिखर पर बने रहते हैं।
ज़ेन से सहजता की स्थिति पाना
आजकल कुछ ऐसे लोग हैं जो ज़ेन विचारधारा को एक आध्यात्मिक मार्ग के तौर पर चुनना पसंद करते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि इसका मतलब कुछ नहीं करना है। वास्तव में, ज़ेन में जबर्दस्त क्रियाकलाप होता है क्योंकि यह किसी भी तरह से जीवन का त्याग नहीं है। मसलन एक ज़ेन भिक्षु को किसी जेन बगीचे में सिर्फ पत्थर सजाने में कई सप्ताह लग सकते हैं। ऐसे कार्यकलाप को करने में आप निष्क्रियता की एक अवस्था में पहुंच जाते हैं, जहां आप एक कर्ता होने के अनुभव से परे चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में आपको परे का स्वाद मिलता है। अगर आप तीव्र क्रिया के जरिए ऐसी स्थिति तक पहुंचते हैं, जैसा कि निजिंस्की और कई दूसरे लोगों ने किया, तो उस पल को हमेशा चमत्कार के रूप में आप याद करेंगे।
योगासन से सहजता की स्थिति पाना
लेकिन यदि आप निष्क्रियता की तीव्रता के जरिए इस स्थिति तक पहुंचते हैं, तो इसे योगासन कहते हैं और इस स्थिति को लंबे समय तक कायम रखा जा सकता है। ध्यान का मूल तत्व यह है कि आप खुद को सर्वोच्च तीव्रता तक ले जाएं, जहां कुछ समय के बाद प्रयास नहीं रह जाता। फिर ध्यान कोई काम नहीं, बल्कि तीव्रता का एक स्वाभाविक नतीजा होता है। आप बस हो सकते हैं। अस्तित्व के इन पूर्ण रूप से गैर-बाध्यकारी(बिना विवशता की) स्थितियों में ही एक व्यक्ति ब्रह्मांडीय संभावना के रूप में विकसित हो सकता है।
अगर हम समाज और व्यक्ति के रूप में ऐसे विकास के लिए सही माहौल बनाए बिना इसी तरह हर पल को गुजर जाने देंगे, तो हम एक जबर्दस्त संभावना को नष्ट कर देंगे। स्वर्ग और उसके सुखों की ऐसी बचकाना बातें इसलिए की जाती हैं क्योंकि इंसान होने की विशालता को अब तक खोजा नहीं गया है। जब आपकी इंसानियत चरम पर पहुंच कर लबालब भर जाती है, तो दिव्यता पीछे-पीछे आकर आपकी दास बन जाएगी। उसके पास कोई और विकल्प नहीं होगा।