कल्पवृक्ष : चाहो और पा लो
हम अक्सर ऐसे लोगों के बारे में सुनते हैं जिन्होंने जीवन में जो भी लक्ष्य बनाया उसे पा लिया। लेकिन सभी के साथ ऐसा नहीं होता। ऐसा क्या है जो यह तय करता है कि हम अपने जीवन में क्या पा सकते हैं?
हम अक्सर ऐसे लोगों के बारे में सुनते हैं जिन्होंने जीवन में जो भी लक्ष्य बनाया उसे पा लिया। लेकिन सभी के साथ ऐसा नहीं होता। ऐसा क्या है जो यह तय करता है कि हम अपने जीवन में क्या पा सकते हैं?
एक इंसान के रूप में जो कुछ भी हमने इस धरती पर बनाया है, उसकी रचना पहले हमारे मन में हुई। आप देख सकते हैं कि इंसान द्वारा किए गए हर काम का विचार पहले उसके मन में आया, उसके बाद ही वह चीज बाहरी दुनिया में हुई।
Subscribe
एक बार जब आपके चारों आयाम - भौतिक शरीर, मन, भावना और जीवन ऊर्जाएं एक ही दिशा में काम करने लगते हैं तो आप जिस चीज की इच्छा करते हैं, वह बिना कुछ किए ही वास्तव में आपके सामने आ जाती है। अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो आप खुद ही एक कल्पवृक्ष बन जाते हैं। लेकिन मन की समस्या यह है कि यह हर पल दिशा बदल रहा है। यह ऐसे ही है जैसे आप कहीं जाना चाहते हैं और हर दो कदम पर अपनी दिशा बदल रहे हैं। ऐसी हालत में आपके लिए मंजिल तक पहुंचने की संभावना बहुत कम हो जाती है। हां, अगर संयोग से पहुंच गए तो बात दूसरी है। दरअसल, अपने मन को व्यवस्थित करने का बुनियादी मतलब हैः काम करने की विवशतापूर्ण तरीके को सचेतन तरीके में बदलना।
आपने शायद उन लोगों के बारे में सुना होगा, जिन्होंने जिस किसी चीज की इच्छा की, वह उन्हें मिल गई। आमतौर पर ऐसा उन्हीं लोगों के साथ होता है, जिनमें अटल विश्वास होता है। मान लेते हैं कि आप एक घर बनाना चाहते हैं। अगर आप सोचना शुरू करते हैं, ’मैं एक घर बनाना चाहता हूं। इसके लिए मुझे पचास लाख रुपये की जरूरत है पर मेरी जेब में तो बस पचास रुपये ही हैं। यह संभव नहीं है।’ जिस पल आप कहते हैं ‘यह संभव नहीं है,’ उस पल आप यह भी कह रहे होते हैं कि मुझे यह नहीं चाहिए। एक तरफ तो आप इच्छा कर रहे हैं कि आपको चाहिए, और दूसरी तरफ आप कह रहे हैं कि मुझे यह नहीं चाहिए। ऐसी दुविधा में कुछ हासिल नहीं होता। ’यह संभव है या नही’ यही विचार मानवता को नष्ट कर रहा है।
जिन लोगों को किसी भगवान, किसी मंदिर या किसी अन्य चीज में भरोसा होता है, उनकी बुद्धि सरल होती है।
अगर जीवन को वैसा होना है, जैसा आप सोचते हैं, तो वह जरूर हो सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि आप कैसे सोचते हैं, कितनी गहराई से सोचते हैं, आपके विचारों में कितनी स्थिरता है। यही तय करेगा कि आपका विचार हकीकत बनता है या यह सिर्फ एक सतही विचार ही बना रह जाता है।
एक ही विकल्प है और वह है प्रतिबद्धता। जिन चीजों को आप चाहते हैं, उन्हें हासिल करने के लिए अगर आप खुद को झोंक दें, तो आपके विचार इतने गहरे हो जाते हैं कि ’यह संभव है या नहीं’ जैसा कुछ बचता ही नहीं। आपकी विचार प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आती। आप जिस दिशा में चाहते हैं, उसी दिशा में आपके विचार सहज रूप से बहने लगते हैं। एक बार जब ऐसा हो जाता है, फिर उनका साकार होना भी सहज हो जाता है।
जो चीज आपको चाहिए, उसे हासिल करने के लिए सबसे अहम बात है कि उस चीज की तस्वीर आपके मन में पूरी तरह से साफ होनी चाहिए।