आदियोगी और ध्यानलिंग में क्या अंतर है?
सद्गुरु आदियोगी आलयम और ध्यानलिंग के बीच के अंतर को समझा रहे हैं।
आदियोगी तथा ध्यानलिंग के अंतर पर सद्गुरु के विचार
प्रश्न: सद्गुरु, आदियोगी और ध्यानलिंग क्या अंतर है? आदियोगी में शिव के किस पक्ष को उजागर किया गया है?
सद्गुरु: आप ध्यानलिंग की तुलना ध्यानलिंग किसी भी दूसरी चीज़ से नहीं कर सकते।इस ग्रह पर उसके समान कुछ दूसरा है ही नहीं। मैं अपने जीवन में हज़ारों ऐसी चीज़ें (आदियोगी लिंग की रचना) कर सकता हूँ, पर मैं अपने जीवन में एक और ध्यानलिंग कभी नहीं रच सकूँगा। यह अपने-आप में एक अलग आयाम है। तार्किक सोच में, हो सकता है कि दोनों में बहुत अंतर न हो क्योंकि दोनों में ही सात चक्र हैं। सभी के भीतर सात चक्र होते हैं। आदियोगी में भी सात ही हैं, किंतु आप उसे एक नहीं मान सकते। आदियोगी कुछ ख़ास करेंगे। आप उससे कोई काम करवा सकते हैं। आप ध्यानलिंग से कोई काम नहीं करवा सकते। वह तो बस वहाँ उपस्थित है। तो क्या यह आदियोगी अधिक उपयोगी है? हम्म, अगर आप एक विशेष रूप में देखें, तो ऐसा ही है पर अगर जीवन को उपयोगिता के लिहाज़ से देखेंगे तो आप इसे गँवा देंगे।
आप जानते हैं, महाभारत में एक प्यारी सी स्थिति आई थी। एक समय आया, जब सभी को युद्ध में किसी एक पक्ष का साथ देना था। जब कृष्ण की बारी आई तो उन्होंने कहा, "या तो मुझे चुनें या मेरी सेना को चुन लें जिसमें दस हज़ार सैनिक थे" दुर्योधन ने अपने लिए सेना चुन ली। पांडवों ने कृष्ण को अपने लिए चुना। और कृष्ण ने पहले ही कह दिया, ”मैं युद्ध नहीं करूँगा। मैं बस वहाँ उपस्थित रहूँगा।“ पांडव बोले, ”इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि नतीजा क्या होगा। हमें तो बस इतना पता है कि हमें आपका साथ चाहिए।“ दुर्योधन ने सोचा, ”इन मूर्खों का तो मूर्खता बनाने का इतिहास रहा है और यह इनके जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता होगी। युद्ध में लड़ने जा रहे हैं और युद्ध करने वाली बलशाली सेना की बजाए, ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना मूर्खता ही तो कहलाएगा, जो युद्ध तक नहीं करना चाहता। यह तो मूर्खता की चरम सीमा है।“ पर देखो, इसी बात से कितना अंतर पड़ा। यह जीवन भी बस ऐसा ही है।
आदियोगी को एक निश्चित उद्देश्य के लिए रचा गया है। वह अपना उद्देश्य बहुत अच्छे तरीके़ से निभाएगा। ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा किसी एक निश्चित उद्देश्य के लिए नहीं हुई। वह तो बस ब्रह्माण्ड की तरह उपस्थित है, भले किसी कीट, पक्षी, पशु, वृक्ष, पौधे या खरपतवार आदि के पास कोई उद्देश्य हो सकता है, परंतु ब्रह्माण्ड या सर्जक के पास कोई उद्देश्य नहीं होता तो आप सर्जक की तुलना में एक कीट को चुन सकते हैं क्योंकि वह अधिक उपयोगी है। अगर आप उपयोग के तर्क का इस्तेमल करते हैं, तो आप बुनियादी बात नहीं समझ पाएंगे, जीवन की परम प्रकृति से आपका नाता टूट जाएगा।
ध्यानलिंग के लिए कोई प्रतियोगता नहीं। वह कभी दौड़ का हिस्सा नहीं होगा। जैसा कि मैंने बताया, अगर हमारे पास धन, संसाधन और सहयोग हो, तो हम हज़ारों आदियोगी तैयार कर सकते हैं। दरअसल आज, अगर हम चाहते, तो हम आसानी से एक बार में दस या उससे भी अधिक आदियोगी तैयार कर सकते थे। हमारे पास पर्याप्त ऊर्जा थी, आप सभी मौजूद थे। आप दस हज़ार लोग हैं; प्रति हज़ार लोगों के समूह के लिए, हम एक आदियोगी तो बना ही सकते थे। पर ध्यानलिंग के साथ ऐसा नहीं है। ऐसा दोबारा नहीं हो सकता; इसका सवाल ही पैदा नहीं होता। सचमुच, मैं ऐसा नहीं कर सकता। मुझे तो इस ग्रह पर इस समय ऐसा कोई नहीं दिखता, जो ऐसा कर सकता हो।