सनातन धर्म
सद्गुरु सनातन धर्म के बारे में गलतफहमियों को दूर कर रहे हैं। वह समझा रहे हैं कि वह वास्तव में क्या है और वह कैसे मानवता के लिए खुशहाली का रास्ता बन सकता है।
सनातन धर्म
सद्गुरु: धरती पर अभी इतनी बुद्धिमानी मौजूद है कि हम यहां प्रचलित धर्म के मूल सिद्धांतों पर पुनर्विचार कर सकते हैं। धर्म एक अंदरूनी कदम है। यह बहुत अंतरंग चीज है जो एक इंसान अपने भीतर करता है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप संगठित करते हैं और सार्वजनिक स्तर पर करते हैं। यह आपके स्रृष्टा की ओर एक कदम है। अगर आप सिर्फ अपने शरीर को ध्यान से देखें, तो आप साफ-साफ देख सकते हैं कि सृष्टि का स्रोत आपके भीतर है। अपने स्रृष्टा की ओर एक कदम का मतलब है कि यह कुदरती रूप से एक अंदरूनी कदम है, जो आप सिर्फ खुद ही उठा सकते हैं। आप ढेर सारे लोगों को अपने अंदर नहीं ले जा सकते।
जरूरत इस बात की है कि एक सार्वभौमिक धर्म हो। सार्वभौमिक धर्म से मेरा मतलब सभी के लिए एक धर्म से नहीं है। मेरा मतलब हर किसी के लिए एक धर्म से है।
कुल सात अरब लोग हैं, इसलिए हमारे पास सात अरब धर्म हो सकते हैं। इसमें समस्या क्या है? जिसे एक खूबसूरत प्रक्रिया होना चाहिए था, सिर्फ संगठित होने के कारण वह कट्टरता की एक बदसूरत प्रक्रिया बन गया है।
भारतीय संस्कृति इसी आधार पर विकसित हुई। हम इसे सनातन धर्म कहते हैं जिसका मतलब है एक शाश्वत धर्म, जिसकी प्रासंगिकता हमेशा रहेगी। सिर्फ यही संस्कृति आपको इतनी आजादी देती है कि आप अपना भगवान खुद चुन सकते हैं – पुरुष देवता, स्त्री देवता, पशु देवता, वृक्ष देवता – आप जो चाहें। इसे इष्ट देवता कहते हैं, जिसका मतलब है अपना मनचाहा भगवान।
हर व्यक्ति अपने जीवन के किसी खास समय पर किस चीज से सबसे अधिक जुड़ाव महसूस करता है, वह यह सोचने के लिए आजाद है। वह अपना एक भगवान बना सकता है और उस प्रक्रिया के प्रति समर्पित हो सकता है। क्योंकि इसका संबंध भगवान से नहीं है। इसका मकसद आपको जीवन के प्रति आराधनामय और श्रद्धापूर्ण बनाने के लिए आपके अंदर एक खास गुण लाना है।
धर्म की शुरुआत ही इस वजह से हुई थी। आप वानर की पूजा करते हैं और मैं हाथी की। इसमें परेशानी क्या है? आपको वानर से प्रेम है और मुझे हाथी से, इसमें कोई बुराई नहीं है। अगर कल हम अपने भगवान आपस में बदलना चाहें, तो हम ऐसा भी कर सकते हैं। इस संस्कृति में यह आजादी दी गई थी। इसीलिए इसे सनातन धर्म कहा गया क्योंकि यह रूढ़ नहीं है, आप इसे बदल सकते हैं। आप साकार ईश्वर की भी पूजा कर सकते हैं और निराकार की भी। यहां तक कि आप बिना ईश्वर के भी पूजा कर सकते हैं। आप जो तरीका चाहें, चुन सकते हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने आस-पास के जीवन के प्रति श्रद्धा और आदर रखें और जीवन के हर उस पहलू के आगे सिर झुकाएं, जो आपका पोषण करता है, जो अभी आपके अस्तित्व का आधार है। अगर हर कोई अपना धर्म खुद चुन सके और उसका धर्म किसी और के द्वारा संगठित न हो – सिर्फ तभी आपको गहरे धार्मिक लोग न कि कट्टर लोग, देखने को मिलेंगे।