पारंपरिक कला में आधुनिकता का बेजोड़ संगम
खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है, यह आजादी का प्रतीक है और हमें भारत की समृद्ध विरासत और परंपरा की जड़ों की ओर वापस ले जाता है। उस खादी को जब आधुनिक शिल्प-कौशल और फैशन के नए मानदंडों से जोड़ दिया जाए तो कितना खूबसूरत नतीजा निकल सकता है- आइए देखते हैं
खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है, यह आजादी का प्रतीक है और हमें भारत की समृद्ध विरासत और परंपरा की जड़ों की ओर वापस ले जाता है। उस खादी को जब आधुनिक शिल्प-कौशल और फैशन के नए मानदंडों से जोड़ दिया जाए तो कितना खूबसूरत नतीजा निकल सकता है- आइए देखते हैं
खादी एक ऐसा वस्त्र है, जो जीवन शैली को दर्शाता है। यह हाथ से काता गया और हाथ से बुना गया कपड़ा होता है, जो मूल रूप से सूती, सिल्क या ऊनी हो सकता है। खादी पहनकर हम न सिर्फ अच्छे दिखते हैं, बल्कि अच्छा महसूस भी करते हैं। महात्मा गांधी ने इसे भारत का गौरव बना दिया था। खादी सिर्फ एक कपड़ा नहीं है, यह आजादी का प्रतीक है और हमें भारत की समृद्ध विरासत और परंपरा की जड़ों की ओर वापस ले जाता है। इसे लेकर गांधीजी का दृष्टिकोण स्पष्ट था, “यदि हमारे अंदर ‘खादी-भावना’ है, तो हमें जीवन के हर पहलू में सरलता को अपनाना होगा। खादी-भावना का अर्थ है अपार धैर्य, उतना ही अटूट भरोसा और धरती के हर मनुष्य के साथ सहानुभूति।”
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पारंपरिक चरखे पर कच्चे रेशे से धागा बनाया जाता है। इसका आकर्षण इसकी बुनावट और खुरदरी फिनिशिंग में है जो अपने आप में प्रकृति के साथ एक नजदीकी संबंध स्थापित करता है। इसमें एक खास गुण है, जो आपको सर्दियों में गरम और गर्मियों में ठंडा रखता है। आज के समय में बुनकरों के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण माहौल है, इसलिए हाथ से बुने कपड़ों को नया रूप देने और बाजार की प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिए डिजाइनर अपनी टेक्सटाइल और डिजाइन कौशलों को सामने ला रहे हैं।
युवा डिजाइनर दंपति, भारतीय शिल्प व डिजाइन संस्थान, जयपुर के अमृत सूदन साहा और उनकी पत्नी संतोष साहा, जो कोलकाता की बिड़ला कला अकादमी की छात्रा रही हैं, साथ में एससाहा ब्रांड ले कर आए हैं, जिसमें हैंडलूम के कपड़ों का बेहतरीन मिश्रण दिखाई देता है। वे इस दृष्टि से अनूठे हैं कि उन्होंने खादी में नए प्रयोग और पैटर्न शामिल किए हैं और उन्हें सबसे बढ़िया जामदानी बुनावटों के साथ मिश्रित किया है।
उनके कपड़ों में पारंपरिक शिल्प और आधुनिक शिल्प का आकर्षक मेल होता है जिसे आप ‘एथनिक कंटेपररी लुक’ कहते हैं। उनके साड़ियों तथा स्टोलों के कलेक्शन में हर के पीछे एक कहानी है।
उन्होंने पश्चिम बंगाल के गांवों के बुनकरों की मदद करते हुए शुरुआत में गमछों और कपड़ों के थानों की बुनाई से शुरुआत की। आज उनकी टीम में करीब 45 अत्यंत प्रतिभावान हैंडलूम बुनकर पारंपरिक हैंडलूम का सौंदर्य वापस ला रहे हैं। सूती तथा सिल्क पर शुद्ध जरी के साथ जामदानी तकनीक वाली बुनावट का इस्तेमाल किया जाता है। जामदानी की उत्पत्ति मुगल काल से मानी जाती है। इनकी खादी जामदानी फैशनेबल और समृद्ध है। इनमें सिल्क या सूती के बेस कपड़े पर विषम शेड में ज्यामितीय, आकृतीय और फूलदार नमूने बुने गए हैं।
खादी जामदानी बनाने की प्रक्रिया को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा गया है। सूत बनाना और करघे पर बुनाई। करघे पर ही कपड़ों में डिजाइन बनाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में शटल आगे-पीछे करते हुए नमूने बनाए जाते हैं, जिस तरह सुई को कपड़े में डालते-निकालते हुए डिजाइन बनाए जाते हैं। 450 काउंट खादी पर बुनाई और खादी को दूसरे सूतों जैसे ऊन, सन और अरी सिल्क के साथ मिलाकर कपड़ा तैयार करने जैसे प्रयोग इनकी विशेषताएं रही हैं। प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करना पर्यावरण के अनुकूल तकनीक तो है ही साथ ही ऐसे रंगो का इस्तेमाल उनके पारंपरिक कपड़ों को आधुनिक रूप देता है।
उन्होंने शिल्प समुदाय को बढ़ावा देने के लिए अपनी संस्था एससाहा वर्क्स स्थापित की थी। उनका उद्देश्य स्थानीय शिल्प कौशल को प्रोत्साहित और संरक्षित करने के लिए डिजाइनरों और कारीगरों के समूहों के बीच सामंजस्य बनाना था। कपड़े के साथ उनके अनूठे प्रयोग डिजाइन साड़ियों और स्टोल के उनके कलेक्शन को सम्मोहक बनाता है। उनका कलेक्शन हैंड्स ऑफ ग्रेस प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया जाएगा।
हैंड्स ऑफ ग्रेस वर्कशॉप
यह कला और शिल्प की कार्यशाला (वर्कशॉप) प्रतिभागियों को कला के विभिन्न पहलुओं को सीखने में मदद करेगा। 3 दिन के इस वर्कशॉप में प्रतिदिन 2 घंटे की समय-अवधि होगी। कुल 6 घंटे के इस गतिविधि के बाद प्रतिभागी इस काबिल हो पाएंगे कि वो खुद अपनी कला और कौशल को तलाशें, तराशें और निखारें। इस वर्कशॉप्स के आयोजन का विवरण इस प्रकार है:-
20 से 22 फरवरी और 24 से 26 फरवरी
प्रात: 9.30 बजे से 11.30 बजे तक तथा सायं 3 बजे से 5 बजे तक
किसी भी विशेष जानकारी के लिए संपर्क करें -प्रीती मेहता -09821016666, चंद्रप्रभा -9443709905