मिलारेपा ने अपने जीवन में क्रोध में आकर अपनी तांत्रिक शक्तियों का दुरूपयोग किया था। इस वजह से उसे बहुत पछतावा था और वह ज्ञान की तलाश में निकल पड़ा। इस राह पर उसके गुरु मारपा ने मिलारेपा को कई तरीके से परखा और अंत में उसे दीक्षा देने के लिए तैयार हो गये।

दीक्षा से पहले शुद्ध बने मिलारेपा 

सद्‌गुरुमार्पा ने मिलारेपा से कई तरह की शारीरिक गतिविधियां करवाईं। कुछ देर के बाद मिलारेपा ने झुककर मार्पा से कहा, ‘मैं आपसे धर्म की दीक्षा चाहता हूं। मैं एक ऐसी प्रणाली, ऐसी क्रिया की तलाश में हूं, जो मुझे इसी जन्म में ज्ञानोदय दिलाए और बंधन से छुटकारा दिला दे। मैं अगले जन्म के फेर में नहीं पड़ना चाहता। मैं आपको अपना शरीर, अपना दिमाग और अपनी बोली, सब कुछ अर्पण करता हूं। कपया मुझे खाना, कपड़े और ज्ञान दें।’

यह वाकई एक खूबसूरत बात मिलारेपा ने कही थी। लोग अक्सर मार्पा के पास जाकर यह कहकर गलती करते थे कि हम आपको अपनी आत्मा देते हैं। आखिर जो आपकी है ही नहीं, उसेे देना तो बहुत ही आसान है। लेकिन जो आपके पास है, उसे देना बहुत ही मुश्किल है। अगर आप अपने गुरु को कुछ समर्पित करना चाहते हैं, तो अपने शरीर, दिमाग और बोली से बढ़कर कुछ और हो ही नहीं सकता है। इसके बाद आप अपनी राह पर होंगे।

तांत्रिक तकनीक से काम करने के लिए हर चक्र के लिए एक देवी की रचना की गई थी। इस स्त्री स्वरूप की प्राण-प्रतिश्ठा करके उसे जीवंत बनाया जाता था और अपने काम सिद्ध करने के लिए उसे बुलाया भी जा सकता था।
मिलारेपा की बात सुनने के बाद मार्पा ने उसकी ओर देखा और फिर बोले, ‘तुम अपना शरीर, दिमाग और बोली मुझे दे रहे। इसके बदले मैं तुम्हें खाना और रहने की जगह दे सकता हूं। ज्ञान के लिए तुमको किसी और को देखना होगा। या फिर मैं तुमको ज्ञान दे सकता हूं और रहने व खाने का अपना इंतजाम तुमको कहीं और से करना होगा। इच्छा तुम्हारी है।’ वह वास्तव में सौदेबाजी कर रहा था! यह सुनकर मिलारेपा ने कहा, ‘ठीक है, मुझे आपसे ज्ञान चाहिए। मैं अपने खाने और रहने का बंदोबस्त कर लूंगा।’ इतना कह कर वह बाहर भिक्षा मांगने के लिए चला गया।

मिलारेपा एक जोशीला व्यक्ति था और जो भी करता था, उसमें कुछ ज्यादा ही कर बैठता था। वह बाहर भिक्षा मांगने चला गया और वह काफी दूर निकल गया और कई बोरे गेहूं के जमा कर लाया। दरअसल, वह एक ही बार में साल भर का गेहूं जमा कर लेना चाहता था, ताकि वह मार्पा के साथ बैठकर धर्म और ज्ञान की बातें सीख सके। उसने बहुत सारा गेहूं जमा कर लिया, जिसमें से थोड़ा गेहूं बेचकर उसने खाना बनाने के लिए पारंपरिक चार मूठ वाला तांबे का एक बर्तन खरीदा।

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गेहूं के भारी बोझ के साथ वह मार्पा के घर वापस आ गया और धड़ाम की आवाज के साथ उसने गेहूं का बोरा नीचे रखा। जब मार्पा ने यह आवाज सुनी, तब वह दोपहर का खाना खा रहा था। वह खाना खाते हुए बीच में से उठकर बाहर आया और बोला, ‘लगता है कि तुम बेहद गुस्से में हो। इस गेहूं के बोरे और बर्तन की आवाज से तुमने पूरे घर को दहला दिया। लगता है कि अपने चाचा के घर की तरह तुम इस घर को भी बर्बाद कर दोगे। बस बहुत हो गया, अब निकल जाओ यहां से!’

इस पर मिलारेपा गिड़गिड़ाया, ‘आपने मुझसे अपना खाना लाने को कहा था, तो मैं ले आया। लेकिन यह बहुत भारी था, इसलिए रखते समय यह मुझसे संभल नहीं पाया और धम् से बोरा नीचे आ गिरा।’ मार्पा ने कहा, ‘नहीं, तुम्हारे रखने का तरीका सही नहीं था। तुम खाने को इस तरह नहीं फेंक सकते।’ इन सभी बातों का हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए। दो लोगों के बीच का फर्क इसी सम समझ में आता है कि वह कैसे बैठते हैं, कैसे खड़े होते हैं, कैसे चीजों को रखते हैं और बातों को किस तरह लेते हैं। इसलिए मार्पा ने कहा, ‘अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने बोरे को ठीक तरीके से न रखकर उसे फेंका, इसलिए तुम्हें यहां से बाहर जाना पड़ेगा। तुम यहां के लिए ठीक नहीं हो। तुम बाहर रहकर ही काम करो, मेरे खेत की जुताई करो और मेरा घर साफ करो।’

कई सालों तक मिलारेपा यही काम करता रहा।

डाकिनी देवी डाकिनी देवी

मिलारेपा को डाकिनी देवी के दर्शन हुए

अंत में एक लम्बी साधना के बाद, मारपा ने मिलारेपा को दीक्षा दे दी और उसे एक अस्थाई कारागार में कैद कर दिया। यह कारागार कुछ खास तरह का होता है। इसमें एक आदमी को बैठाकर उसके चारों तरफ दीवार बनाकर उसे बंद कर दिया जाता है। उसमें हवा आने-जाने की व्यवस्था रहती हैै, लेकिन उसमें से रोशनी नहीं आती।

जब वे वापस लौटे तो मारपा जो पहले गुरु के रूप में मिलारेपा से जुड़ा था, अब उसके शिष्य की तरह हो गया। तिब्बती संस्कृति में मिलारेपा एक चमकती हुई रोशनी बन गया।

अंदर भयानक अंधेरा होता है। दिन में एक बार खाने की थाली को अंदर खिसका दिया जाता है और जब कैदी का खाना खत्म हो जाए तो वह उस थाली को बाहर धकेल देता है। इससे केवल उसके जिंदा होने का पता चलता रहता है। इसी तरह मिलारेपा को भी थोड़े समय के लिए इस कैद में रखा गया, लेकिन कैद के तीसरे ही दिन मिलारेपा को डाकिनी देवी के दर्शन हुए।

तांत्रिक तकनीक से काम करने के लिए हर चक्र के लिए एक देवी की रचना की गई थी। इस स्त्री स्वरूप की प्राण-प्रतिष्ठा करके उसे जीवंत बनाया जाता था और अपने काम सिद्ध करने के लिए उसे बुलाया भी जा सकता था। तांत्रिक पथ पर इन ताकतों की मदद के बिना कोई इंसान कुछ सार्थक काम भी नहीं कर पाता है। डाकिनी मिलारेपा के सपने में आई और बोली- ‘मारपा ने तुम्हें अपनी शिक्षा तो दे दी है लेकिन उसने एक अहम पहलू छोड़ दिया है, जिसके बारे में खुद उसे ही नहीं पता है। जाओ और उसी से जानने की कोशिश करो। उससे पूछो कि वह जानता है कि नहीं।’ मिलारेपा कैद की दीवार तोड़कर फौरन मारपा के पास पहुंचा। मारपा ने उसे देखकर पूछा कि मैंने अभी तीन दिन पहले ही तुम्हें बंद किया था। तुम बाहर कैसे आ गए? मिलारेपा ने उसे डाकिनी के बारे में सारी बात बताते हुए कहा कि मैं नहीं जानता कि यह सच है या मेरा वहम, लेकिन ऐसा हुआ जरूर है। बस इसीलिए मुझे यह सब जानने के लिए आपके पास आना पड़ा।

मारपा के गुरु नारोपा

यह सुनते ही मारपा ने मिलारेपा के सामने सिर झुका दिया और कहा, ‘मेरे पास भी यह ज्ञान नहीं है। चलो, भारत चलते हैं। वहां मैं अपने गुरु से यह बात पूछूंगा।’ दोनों नारोपा से मिलने के लिए भारत आए। नारोपा से मिलकर मारपा ने उन्हें बताया कि डाकिनी सपने में आई थी और उसने कहा कि हमें यह खास शिक्षा नहीं मिली है। नारोपा ने ध्यान से मारपा को देखा और कहा- ‘यह घटना तुम्हारे साथ तो नहीं घट सकती है। तुम्हें यह सब कैसे पता?’ मारपा ने जवाब दिया- ‘यह घटना मेरे साथ नहीं हुई है, बल्कि मेरे एक शिष्य के साथ घटी है। यह सुनते ही नारोपा तिब्बत की ओर मुड़े और अपना सिर झुका दिया। उन्होंने कहा – ‘अंधकार में डूबे उत्तर में आखिरकार एक छोटा सा प्रकाश चमका है।’ फिर उसने मिलारेपा और मारपा दोनों को बुलाकर उन्हें जीवन में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की पूरी शिक्षा दी।

जब वे वापस लौटे तो मारपा जो पहले गुरु के रूप में मिलारेपा से जुड़ा था, अब उसके शिष्य की तरह हो गया। तिब्बती संस्कृति में मिलारेपा एक चमकती हुई रोशनी बन गया। उसने एक लंबा जीवन जिया और अपने ज्ञान को दूसर लोगों तक पहुंचाया। तिब्बती संस्कृति में पिछले कई सौ सालों के दौरान जो भी बड़ी चीजें हुई हैं, उनका आधार मिलारेपा द्वारा ही तैयार किया गया था।