लोग हमेशा इस मुद्दे पर बंटे हुए होते हैं कि जीतने के लिए खेला जाना चाहिए या खेल की भावना से। कुछ लोग ईमानदारी से खेलने के पक्ष में होते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो मानते हैं कि जीतने के लिए कोई भी तरीका जायज है। और हां, ऐसे लोग भी होते हैं जो व्यक्तिगत फायदों के लिए हारने के लिए भी खेलते हैं। लेकिन क्या खेल में छल करना जायज है? इस सवाल के जवाब में सद्‌गुरु का कहना है... 

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 सद्‌गुरु:

नियमों का समूह ही खेल को बनाता है। अगर आप फुटबॉल के मैदान में जाकर गेंद उठाकर भाग जाना चाहते हैं, तो आपको तो रगबी खेलना चाहिए। आपको फुटबॉल नहीं खेलना चाहिए। आप जिस पल नियम तोड़ते हैं, आप खेल की बुनियाद को तोड़ते हैं। इसलिए यह जीतने या हारने की बात नहीं है, आप खेल को ही नष्ट कर रहे हैं।
मेरी नजर में यह मुद्दा छल करने या छल नहीं करने का नहीं है। मैं इस पर इस नजरिए से नहीं सोचता। हमें यह समझने की जरूरत है कि एक खेल कुछ खास नियमों के कारण ही खेल बनता है। मेरा मतलब है कि कुछ खास तरह के नियमों की वजह से कोई खेल फुटबॉल बन जाता है, कुछ दूसरे तरह के नियमों की वजह से कोई खेल थ्रोबॉल बन जाता है, इसी तरह से कुछ और तरह के नियम किसी खेल को क्रिकेट बनाते हैं। तो नियमों का समूह ही खेल को बनाता है। अगर आप फुटबॉल के मैदान में जाकर गेंद उठाकर भाग जाना चाहते हैं, तो आपको तो रगबी खेलना चाहिए था। आपको फुटबॉल नहीं खेलना चाहिए। आप जिस पल नियम तोड़ते हैं, आप खेल की बुनियाद को तोड़ते हैं। इसलिए यह जीतने या हारने की बात नहीं है, आप खेल को ही नष्ट कर रहे हैं। आप खेल को पूरी तरह बरबाद कर देंगे। अगर फुटबॉल के खेल में कोई एक बार गेंद को छू सकता है, तो मैं हर समय उसे छूता रहूंगा। मैं हाथ से गेंद को उठाकर गोल में डाल दूंगा। मैं अलग से एक गेंद ले जाऊंगा, जिसे आप नहीं देख सकते और उसे गोल में डाल दूंगा। अगर यही सब करना है, फिर हम कोई खेल खेलें ही क्यों?

खेल को कुछ खास नियमों के साथ ही बनाया जाता है। जब आप कहते हैं, ‘मैं नियम तोड़ना चाहता हूं,’ तो आप कह रहे होते हैं, ‘मैं खेल को बरबाद करना चाहता हूं।’ आपको खेल से कोई प्यार नहीं है। खेल में ऐसे लोगों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।