जब मैं स्थिर खड़ा होता हूँ,
जीवन-श्वास का गर्जन
भर जाता है मेरे फेफड़ों में
और समा जाता है हर कोशिका में।
यह सिर्फ जीवन-रेखा नहीं
बल्कि एक सीढ़ी है परे तक जाने की
यह रास्ता हमें देता है अनुमति
ग्रंथियों, चिपचिपे स्रावों और गैस से बने शरीर के
अपने ही रचे संसार से ऊपर उठने की।
और मन का जाल
जो है एक मकड़ी के
महीन जटिल जाल की तरह,
जो फंसाती है सभी पास आने वालों को
लेकिन वो खुद कभी
नहीं निकल सकती बाहर
अपने ही जाल से।
स्थिरता में
यह साधारण श्वास ही
बन जाती है सीढ़ी
अनंत तक जाने की।