मेरे मन के मधुर कोनों में,
मौजूद हैं विशाल महासागर,
जिनसे फूट रहे हैं उग्र ज्वालामुखी।
बह रही हैं बलखाती नदियाँ
एक ललित कन्या के
नम होंठों से।
लिपट रहे हैं जहरीले सांप
एक प्यार भरे आलिंगन में।
खिलते हैं हर रंग के फूल
रेगिस्तान की बेरहमी में।
एक जहरीली मकड़ी
टपकाती है शहद।
वयस्क, हँसते और खेलते हैं
बच्चों की तरह।
इंसान तय करते हैं
जीवन की दिशा, बाज़ार नहीं।
स्त्री प्रकृति गढ़ती है
हमारी सभ्यता का रुख़, युद्ध नहीं।
लोगों में गर्मजोशी है, जलवायु में नहीं।
इडली नरम है और कॉफ़ी कड़क,
मेरे मन के मधुर कोनों में…