वे सभी भू-भाग, जहाँ मैं घूमता हूँ,
वे सभी लोग, जिनसे मैं मिलता हूँ
उनमें घुल-मिल जाता हूँ।
जीवन छलकता है
आनंद और प्यार में,
कीचड़ में और कमल में
ख़ूबसूरती में और प्रचुरता में।
नमन करता हूँ मैं इस पावन मिट्टी को,
इसकी समृद्धि के लिए,
जीवों की विविधता और संभावनाओं के लिए,
संबंधों की मिठास, और दमघोंटू बंधन के लिए।
आपका और मेरा,
और अनगिनत जो आज मौजूद हैं,
जो हमसे पहले रहे हैं,
और वे सब भी, जो हमारे बाद होंगे।
इस अबाध जीवन-धारा की
स्रोत सिर्फ मिट्टी ही है।
- सद्गुरु