महिमा हॉल
अमेरिका के ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ इनर साइंसेज में स्थित महिमा 39,000 स्क्वायर फीट का हॉल है जो पश्चिम में अपनी तरह का सबसे बड़ा हॉल है। इसका निर्माण सद्गुरु ने जीवन के आध्यात्मिक आयामों के द्वार के रूप में किया है।
ईशा इंस्टीट्यूट ऑफ इनर साइंसेज, टेनेसी, यूएसए में स्थित महिमा 39,000 स्क्वायर फीट का हॉल है जो पश्चिमी गोलार्ध में अपनी तरह का सबसे बड़ा हॉल है। इसे सद्गुरु ने जीवन के आध्यात्मिक और रहस्यपूर्ण आयामों के एक द्वार के रूप में बनाया है।
सद्गुरु: महिमा का अर्थ है, कृपा। कृपा कोई ऐसी चीज नहीं है, जो आती-जाती रहती है। कृपा हर समय मौजूद होती है। यह गुरुत्वाकर्षण की तरह है। गुरुत्वाकर्षण हर समय मौजूद होता है मगर आपको उसका असर तभी पता चलता है, जब आप पहले तल से नीचे गिरते हैं। इसी तरह, जब आप ऊपर की तरफ गिरते हैं, तभी आपको कृपा की शक्ति का एहसास होता है। मगर कृपा हर समय मौजूद होती है। वह यहां-वहां या कभी-कभार नहीं होती।
किसी खास स्थान को कृपा का नाम क्यों दिया गया है? क्या कृपा सिर्फ वहीं घटित होगी? मसलन, अभी आप बैठे हैं। अगर आप गिरना चाहते हैं, यह कोई गिरना नहीं होगा। लेकिन अगर आप पहाड़ पर चढ़कर गिरते हैं, तो वह वास्तव में गिरना होता है। गुरुत्वाकर्षण के बल और गिरने के असर को जानने के लिए एक खास ऊंचाई की जरूरत होती है। अगर ऊंचाई नहीं होगी, तो ज्यादातर लोग गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को नहीं जान पाएंगे। कृपा के साथ भी ऐसा ही है।
कृपा की शक्ति और असर को जानने के लिए एक खास ग्रहणशीलता की जरूरत होती है। कृपा की शक्ति को जानने के लिए आपको एक खास आयाम उत्पन्न करना पड़ता है, जो कृपा को ग्रहण करने के लिए आपके अंदर एक दरार बना देता है यानी आपको ग्रहणशील बना देता है।
वरना, सौ साल जीने के बाद भी आपको पता नहीं चलेगा कि कोई शक्ति लगातार आपके ऊपर काम कर रही है।
महिमा बहुत सूक्ष्म और सौम्य है। इसे पूरी तरह सेहत और ध्यान के मकसद से बनाया गया है। महिमा के निर्माण के पीछे मुख्य उद्देश्य मनोवैज्ञानिक संतुलन का था, क्योंकि मुझे लगता है कि पश्चिम की सबसे बड़ी समस्या यही है। वहां लोगों में मनोवैज्ञानिक संतुलन नहीं है। आम तौर पर पश्चिम का व्यक्ति पूर्व के व्यक्ति के मुकाबले जीवन की स्थितियों के ज्यादा संपर्क में आता है और उसे बेहतर शिक्षा हासिल होती है। भले ही वह शिक्षा असली मायनों में न होकर सांसारिक मायनों में हो। इसके बावजूद संतुलन की कमी के कारण पश्चिम के लोग अधिक कष्ट में होते हैं।
मेरे ख्याल से मनोवैज्ञानिक संतुलन की कमी वहां के लोगों के आध्यात्मिक विकास में एक बहुत बड़ी बाधक है।
जब हमने महिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की, तो उसके पीछे मुख्य मकसद यही था।