नीला
कृष्ण के ‘नीले जादू’ के बारे में सद्गुरु की कोमल कविता पढ़ें।
ArticleJan 18, 2018
नीला
जब मैं मयूर ध्वनि से जगती हूं
मेरे कानों में सुनाई देता है, नीला
खोलकर आंखें जब देखती हूं ऊपर
दिखता है खुला आसमान – नीला ही नीला
फर्श तो था पहले ही नीला
देखो मेरी जिह्वा भी नीली
निकले रक्त भी तो वह होगा नीला
ओ केशव, सफेद पहाड़ भी हो गए हैं नीले
या यह है नीलमेघ के लिए मेरी दीवानगी
जिसने मेरी दृष्टि को कर दिया है नीला?
या तुम समा गए हो मेरे पोर-पोर में?
या बताना चाहते हो दुनिया को
कि मैं कितना तरस रही हूं तुम्हारे लिए?
अब जबकि यह छुपा नहीं है कि मैं पागल हूं इस नीले के लिए
मैं तुझमें, तुम मुझमें रहते हो ओ नीलवर्णी
अब जबकि मेरे अंतरतम का रंग छलक आया है बाहर
अब तुम बच नहीं सकते मेरे नीलवर्णी