इस बार के स्पॉट मे सद्‌गुरु हमें कविता के माध्यम से बता रहे हैं, कि किस तरह आज के समाज में भौतिकवाद मानव चेतना पर हावी हो रहा है। वे कह रहे हैं कि यही वक़्त है जीवन को व्यापार और लेन देन की जड़ता से बचाने का और जीवन में चैतन्य की तृप्ति लाने का...

यह पल है जागने का...

कुछ छ्ली-कपटियों के बीच

रहते हैं बहुत से महान संत

भौतिकवादियों के पुरातन तर्कों के

आक्रामक और प्रबल प्रवाह से पीड़ित

सहते रहते हैं संत व मनीषी

अपकीर्ति और अवमानना।

योगियों और रहस्यवादियों को

करना होगा सामना

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उपहास और उत्पीड़न का

क्योंकि

व्यापारिक शक्तियाँ हो रही हैं प्रबल

और कर रही हैं

उत्कृष्ट मानव मन का क्षय

और बदल रही हैं उसे

लेन-देन के एक बाजार में।

जीवन की सूक्ष्म और कोमल सुगंध

हार सकती है

व्यापार व भ्रष्टाचार की भोंडी रखैल से।

मानवता के लिये

अब वक्त नहीं है प्रतीक्षा का

यह पल है जागने का

चेतना का सूक्ष्म प्रभाव बढ़ाने का।

उपभोग की मूर्छित जड़ता से निकलकर

चैतन्य जीवन की तृप्ति पाने का।

सस्ती सुरा के सीमित उन्माद से

प्रचंड दिव्यता की व्यापक उन्माद तक जाने का।

कुछ एक की धूर्तता से निकल कर

असीम के अतिहर्ष तक जाने का।

Love & Grace