सद्‌गुरुनदियों के लिए आयोजित की गई नदी अभियान यात्रा वैसे तो 2 अक्टूबर को एक मंजिल पर पहुंच गई, लेकिन आज के स्पॉट में सद्‌गुरु बता रहे हैं कि यह अभियान अभी खत्म नहीं हुआ हैः

ईशा टीमों को दी असंभव समय-सीमा

हालांकि नदी अभियान का विचार काफी समय से मेरे मन में था, लेकिन इसके शुरू होने से सिर्फ दो महीने पहले मैंने अपनी टीम को इसके बारे में बताया। हमारी टीम तब सबसे अच्छा काम करती है, जब आप उन्हें एक असंभव सी समयसीमा और जानलेवा कार्यक्रम तय कर दे दें। यही वो चीजें हैं, जो हमारे टीमों को आगे बढ़ाती हैं। पिछले पच्चीस सालों से ऐसा ही हो रहा है। अगर आप कुछ ऐसा तैयार करना चाहते हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ हो और वह भी एक खास स्तर पर, जिसमें कई पहलू शामिल हों, तो उसे पूरा करने में हर किसी का सिर टूटना चाहिए। क्योंकि ज्यादातर लोग अपने सिर को तोप के गोले की तरह इस्तेमाल करते हैं। इसे किसी और द्वारा चलाना पड़ता है, नहीं तो यह कहीं नहीं जाएगा। इसलिए इसे चलाया गया और रैली आगे बढ़ी।

देश में हुई अद्भुत चीज़ों में से एक है नदी अभियान

हाल ही में हमने जो हासिल किया है, वह इस देश के हाल के समय में सबसे अद्भुत चीज है। इसके पीछे जो विशुद्ध कोशिश और ऊर्जा थी, वह चेतना की शक्ति की थी। कुछ समय पहले ईशा में मैंने किसी से कहा था कि हम लोग वेबकूफों का एक ऐसा समूह हैं, जो अद्भुत चीजें कर रहा है। हमारे यहां बहुत ही कम लोग अच्छे पढ़े लिखे हैं, बाकी सब मेरी तरह ही हैं।

आज सबसे बड़ी जरूरत बड़े पैमाने पर एक आंदोलन की है, ताकि कोई भी इसे अनदेखा न कर सके। यह सिर्फ एक पर्यावरणीय कोशिश बन कर नहीं रहेगा। वे कई लोग, जो इस दौरान हमारे संपर्क में आए, उनके लिए यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया बन उठेगा।
किसी शानदार चीज को बनाने में किसी बहुत बड़ी प्रतिभा या शिक्षा की जरूरत नहीं होती। बस इसके लिए जो भी काम अपना करना चाहते हैं, उसमें पूर्ण समर्पण की जरूरत होती है। एक बार आपकी ऊर्जा एक दिशा में केंद्रित हो गईं तो फिर हर चीज आपके लिए काम करने लगती है। योगिक पद्धति में कहा जाता है कि जैसे ही आप याद्दाश्त, समझ, शिक्षाए सीमाओं या ज्ञान से परे चित्त के आयाम को छूते हैं, वैसे ही ईश्वर आपका दास हो जाता है। यह रैली उसी का प्रतीक है - इसने पूरे देश को आंदोलित कर दिया।

बुनियादी रूप से इसने यह साबित कर दिया कि यह मामला कहीं न कहीं हर व्यक्ति के मन में था, लेकिन सवाल था कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। इसके लिए एक मूर्ख की जरूरत पड़ती है, जो बिल्ली के गले में घंटी बांधे, बिना यह जाने कि यह कोई घरेलू बिल्ली है या फिर एक जंगली शेर। कई बार ऐसा हुआ है। आपको लगा कि यह तो घरेलू बिल्ली होगी, अचानक उसने दहाड़ लगाई और आपके सिर पर झपट्टा मारने की कोशिश की। कई लोगों ने मुझे चेतावनी दी कि ऐसा करके मैं अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रहा हूं। मैंने कहा, ‘मैं अपनी प्रतिष्ठा और अपनी जिंदगी दांव पर लगाने के लिए तैयार हूं, क्योंकि यह काम ज्यादा महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी नदियां हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बहती रहें।’

हम लोग तीस दिन सड़क पर थे, केवल इससे हर चीज ठीक नहीं होने जा रही। ऐसा नहीं है कि कल सुबह से ही सारी नदियां बहने लगेंगी। आज सबसे बड़ी जरूरत बड़े पैमाने पर एक आंदोलन की है, ताकि कोई भी इसे अनदेखा न कर सके। यह सिर्फ एक पर्यावरणीय कोशिश बन कर नहीं रहेगा। वे कई लोग, जो इस दौरान हमारे संपर्क में आए, उनके लिए यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया बन उठेगा। बुनियादी तौर पर यह प्रक्रिया आध्यात्मिक है। फिलहाल इसका लक्ष्य इकोलाॅजिकल है, क्योंकि जैसा कि आप जानते हैं कि गौतम बुद्ध को भी आत्म.ज्ञान की प्राप्ति एक पेड़ के नीचे ही हुई थी। मैं इसके जरिए बड़े पैमाने पर आत्म.ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया की योजना बना रहा हूं। मैं चाहता हूं कि जब वो दिन आए, तो आपके पास एक अच्छा सा पेड़ हो जिसके नीचे आप बैठ सकें।

मिस्ड कॉल से जुडी ये कोशिश 31 अक्टूबर तक जारी रहेगी

तो यह रैली कब तक जारी रहेगी? हम लोग मिस्ड काॅल से जुड़ी कोशिश 31 अक्टूबर तक जारी रखेंगे। हम लोगों ने अभी तक 12 करोड़ मिस्ड काॅल का आंकड़ा पार कर लिया है। मैंने पिछली बार जितना लक्ष्य रखा था ;तीस करोड़द्ध, यह उसका सिर्फ चालीस प्रतिशत है।

जैसे ही आप याद्दाश्त, समझ, शिक्षाए सीमाओं या ज्ञान से परे चित्त के आयाम को छूते हैं, वैसे ही ईश्वर आपका दास हो जाता है। यह रैली उसी का प्रतीक है
  इन दिनों मैं इस लक्ष्य को 60 करोड़ करने की बात कर रहा हूं। चूंकि नंबर सिस्टम की खोज हम भारतीयों ने ही की थी, इसलिए हमें यह आजादी है कि हम जिस तरह भी चाहें, इनका इस्तेमाल कर लें। जब हम सत्तर सालों में अपनी आबादी को चार गुना बढ़ा सकते हैं, तो फिर हम मिस्ड काॅल्स की संख्या क्यों नही बढ़ा सकते। यह किसी एक खास नंबर की बात नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हर नागरिक को इसमें भाग लेना चाहिए, भले ही वे अपने जीवन में कुछ भी करते हों। इसी चीज ने इस आंदोलन को यह मजबूती दी।

यह रैली सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अपने आप में अतुलनीय है, क्योंकि दुनिया में कभी भी कहीं भी इतना विशाल इकोलाॅजिकल मूवमेंट या पर्यावरण सम्बन्धी आन्दोलन नहीं देखा गया। आमतौर पर केवल कुछ छोटे-मोटे समूह पर्यावरणीय सरोकारों लिए संघर्ष करते रहते हैं। चूंकि हमने इसे एक सकारात्मक और सही नोट के साथ शुरू किया, हमने कहा कि यह एक धरना नहीं है, यह विरोध प्रदर्शन भी नहीं है, यह किसी के खिलाफ नहीं किया जा रहा, ऐसे में पूरे भारत ने इसे अपना समर्थन दिया। मीडिया ने शानदार तरीके से अपना सहयोग दिया। आजाद भारत के इतिहास में कभी किसी आयोजन को देशभर में इतनी मीडिया कवरेज नहीं मिली होगी, जितनी तीस दिनों में नदी अभियान को मिली। इसमें फिल्मों और खेल से जुड़ी़े राष्ट्रीय स्तर की हस्तियों ने भी आकर अपना समर्थन दिया। इस समर्थन ने अहम भूमिका निभाई। हम उन सभी लोगों के प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहते हैं।

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मेरा क्या होगा” का विचार छोड़ने से पड़ा फर्क

सबसे बड़ी बात तो यह कि देशभर में आपलोग ईशा के जो स्वयंसेवी हैं, आपलोग बहुत क्रेजी हैं। यह एक अच्छी खूबी है। अगर आपके पास एक पागल दिल नहीं होगा तो आप कब्जियत की जिदंगी से मर जाएंगे।

यह रैली सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अपने आप में अतुलनीय है, क्योंकि दुनिया में कभी भी कहीं भी इतना विशाल इकोलाॅजिकल मूवमेंट या पर्यावरण सम्बन्धी आन्दोलन नहीं देखा गया।
अगर जीवन में बहुत थोड़ा हुआ तो यह एक तरह की कब्जियत है। आपके जीवन में बहुत कुछ होने की संभावना थी, लेकिन बहुत थोड़ा हुआ तो यह कब्जियत भरी जिंदगी है। जीवन इस बारे में नहीं है कि आपके पास क्या है और क्या नहीं। जीवन यह भी नहीं है कि आप क्या इकठ्ठा कर पाए और क्या हासिल नहीं कर पाए, आपने क्या पहना, आप कहां रहे या आपने कौन सी गाड़ी चलाई। असली जीवन तो आपके अनुभवों की गहराई में है। अगर आप इन भौतिक चीजों को इकठ्ठा करने में उस जीवन की गहराई का बलिदान करते जाते हैं, तो सवाल उठता है कि जीवन के अंत में आप इस गोदाम को लेकर कहां जाएंगे? आप अपने जीवन व मृत्यु से केवल एक ही असली दौलत लेकर जा पाएंगे और वह है- अनुभवों की गहराई।

अगर आपके जीवन में केवल कोई चीज है तो वह जीवन ही है। बाकी सारी चीजें, हर वो चीज जो आपके विचारों और भावनाओं में आती है, वे सब कल्पनाएं हैं। अनुभवों की गहराई ही काम करेगी और आपको जीवन के एक बिलकुल अलग आयाम पर ले जाएगी। आप एक परिपक्व जिदंगी हो जाते हैं। देशभर के कई स्वयंसेवियों के लिए यह एक महीना उनके जीवन का सबसे गहनतम अनुभव देने वाला रहा। मेरे लिए किसी और चीज की अपेक्षा यह सबसे महत्वपूर्ण चीज रही। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि हजारों लोगों का जीवन और अनुभव पहले की अपेक्षा कहीं अधिक गहरे हो उठे। उनके जीवन में यह गहनता इसलिए आ पाई, क्योंकि कुछ समय के लिए जाने या अनजाने वे लोग ‘मेरा क्या होगा?’ को भूल गए।

वर्ना तो जो लोग यह सोचते हैं कि वे कुछ बेहद महत्वपूर्ण कर रहे हैं, वे पूरी तरह से कब्जियत भरे नजर आते हैं। अगर आप जीवन से जुड़े सबसे गंभीर मसलों का सामना खुश होकर करना नहीं जानते तो यह जीवन आपके दिल पर भारी बोझ बन कर जम जाएगा। यह आपके दिल पर इतना बड़ा व भारी बोझ होगा कि आप जीते जी मरा हुआ महसूस करेंगे। बहुत सारे लोग अपने साथ यही कर रहे हैं। इसीलिए वे लोग किसी पब, बार या रेस्टोरेंट में जाकर थोड़ा तनावरहित होने की कोशिश करते हैं। बाकी समय तो वे खुद को दफनाने में लगे रहते हैं। मैं चाहता हूं कि आप हर पल आजादी से सांस लेने का आनंद जान सकें। अगर आप आनंद को जानना चाहते हैं तो आपको बस इतना ही करना होगा कि आपको बस इस ख्याल को छोड़ना होगा- ‘मेरा क्या होगा?’ मैं आपको बताता हूं कि आपका क्या होगा, हम एक दिन आपको या तो जला देंगे या दफना देंगे। लेकिन उससे पहले सवाल है कि आपका जीवन-अनुभव कितना गहरा है? बस यही सब कुछ है। यह गहराई उन क्रियाकलापों से नहीं आती, जो आप करते हैं। गहराई तब आती है, जब आप कुछ ऐसा रचते हैं, जो आपसे भी बड़ी हो जाए।

नदी - जीवन का एक जबरदस्त रूप

सिर्फ देशभर में एक रैली करने से ही ऐसा नहीं होता। ऐसा आपके द्वारा किए गए हर एक काम से हो सकता है। अगर आप इस सोच के साथ हर काम करेंगे कि आप जो भी करते हैं, वह आपके अस्तित्व और आपके जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है तो आपका जीवन बेहद गहन हो उठेगा।

अगर आप जीवन से जुड़े सबसे गंभीर मसलों का सामना खुश होकर करना नहीं जानते तो यह जीवन आपके दिल पर भारी बोझ बन कर जम जाएगा। 
अगर जीवन उतना गहन हो गया तो आप एक परामानव की तरह काम करेंगे। आप परामानव की तरह इसलिए काम नहीं करेंगे कि आप परामानव बन गए हैं, बल्कि इसलिए करेंगे कि आप कब्जियत से छुटकारा पा गए हैं। मैं खासतौर पर एक भद्दा उदाहरण दे रहा हूं, क्योंकि लोग सुंदर चीजों की अनदेखी कर देते हैं। फूल व चांद जैसी चीजों पर लोगों का ध्यान नहीं जाता, लेकिन चेहरे पर थोड़ा सा भी मैला लग जाए तो वे तुरंत सजग हो जाते हैं। तो उन्हें सजग बनाने के लिए कई बार उन पर गंदगी फेंकनी होगी। अगर आपको कब्ज की समस्या है और फिर अचानक आपको दस्त लग जाए तो आपको यकीन नहीं होगा कि आपके भीतर इतना मल भरा हुआ है। इसी तरह से अगर आप अपना जीवन ’मेरा क्या होगा, मेरा क्या होगा’ जैसे विचार से लगातार दूषित करते रहेंगे और फिर यह ख्याल आपसे ले लिया जाए तो अचानक आपको बहुत राहत महसूस होगी।

आज दुनिया को सबसे ज्यादा यह चीज बर्बाद कर रही है कि अगर कोई इंसान ऐसा कोई काम करता है, जो किसी चीज को बर्बाद करता हो, तो उसे ऐसा करता देख बाकी सब भी सोचते हैं, ‘अगर वे ऐसा कर रहे हैं तो, मैं भी यह कर सकता हूं। केवल मैं ही ऐसा नहीं हूं, जो नकारात्मक चीजें कर रहा हो।’ इस तरह से हमने नदी के रूप में बहने वाले जीवन के एक अति महान रूप को बर्बाद कर दिया। अगर आपको समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या कह रहा हूं तो आप एक नाव लीजिए और हो सके तो उस नाव से इलाहाबाद से काशी तक की यात्रा कीजिए। बस नदी का अनुभव कीजिए, और देखिए कि जीवन का ये रूप कितना जबरदस्त है। यह अनुभव आपके जीवन का सबसे बड़ा अनुभव होगा। हमने अपनी इस सोच के चलते कि ‘जब दूसरे ऐसा कर रहे हैं तो मैं भी यह कर सकता हूं’, इतने महान जीवन.रूप को बेहद निचले स्तर पर ले आए हैं। हर व्यक्ति जो भी छोटी-छोटी नकारात्मक चीजें कर रहा है, वो आखिरकार एक विनाश का रूप ले लेतीं हैं।

यह मत सोचिए कि जब हर कोई मिस्ड कॉल कर रहा है तो मेरी मिस्ड काॅल की कोई जरूरत ही नहीं है। बहुत से लोगों के साथ यह एक बड़ी समस्या है कि अगर वे कोई चीज हासिल करना चाहते हैं तो वे बहुत बड़े बन जाते हैं, वे अपने अधिकारों का दावा करने लगते हैं। लेकिन बारी जब उनके कुछ देने की आती है तो वे बहुत छोटे और विनम्र बन जाते हैं- ‘आखिर इसमें मैं क्या कर सकता हूं?’ लेकिन अगर आप इसी को उल्टा कर दें तो जीवन बड़े नाटकीय ढंग से अपने आप बदल जाएगा। नदी अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक नदियां बह रही हैं। इसके लिए समर्पित लोग चाहिए।

नदी अभियान का अगला चरण

रैली का अगला चरण है कि देश की सरकारों के काम करने के लिए माहौल बनाया जाए। कल ही हमने भारत की नदियों को पुनर्जीवित करने से जुड़े नीति-प्रस्ताव का मसौदा प्रधानमंत्री को सौंपा।  

बहुत से लोगों के साथ यह एक बड़ी समस्या है कि अगर वे कोई चीज हासिल करना चाहते हैं तो वे बहुत बड़े बन जाते हैं, वे अपने अधिकारों का दावा करने लगते हैं। लेकिन बारी जब उनके कुछ देने की आती है तो वे बहुत छोटे और विनम्र बन जाते हैं  
यह बहुत अच्छी तरह से तैयार किया गया एक शानदार दस्तावेज है, जिसमें कई उदाहरणों के माध्यम से दर्शाया गया है कि दुनियाभर में कैसे अलग-अलग मिट्टी और अलग-अजल जलवायु में कई नदियों को पुनर्जीवित किया गया, और भारत में यह काम कैसे किया जा सकता है, इसके पीछे का पूरा विज्ञान क्या है, आदि। इस प्रस्ताव को सरकार द्वारा पूरे सम्मान व उत्साह के साथ लिया गया। लेकिन इस उद्देश्य को जमीन पर उतारने के लिए बहुत कुछ करना होगा। जब तक कि हम इसे पूरे दम-खम के साथ आगे नहीं बढ़ाएंगे तो यह आगे ठंडे बस्ते में चला जाएगा। सरकार के पास हर दिन हजारों काम हैं।

आप सब लोगों को अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। हर दिन आप जितना भी बोलते हैं या संदेश भेजते हैं, उसका दस प्रतिशत नदियों के बारे में होना चाहिए। आप कहेंगे ‘लेकिन सद्‌गुरु मेरे दोस्त सोचेंगे कि यह तो मूर्ख है, मोटी बुद्धि है।’ यहां मैं कहूंगा कि अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप बेवकूफी करेंगे। अगर आप यह नहीं समझते कि नदियां हमारे लिए जीवन का आधार हैं तो आप मोटी बुद्धि हैं। यह तो उस लोककथा जैसी बात हो गई कि एक आदमी एक पेड़ की उसी डाल को काट रहा था, जिस पर वह बैठा था। अगर वह उसे काटने में सफल होता है तो वह गिरेगा ही। हम लोग आज ठीक उसी स्थिति में हैं। अगर हमने अभी इस दिशा में कदम नहीं उठाया तो हम लोग केवल तभी बच पाएंगे, जब हमारी अर्थव्यवस्था और हम जो भी कर रहे हैं, वह सब फेल नहीं हो जाता। क्या यह पूरी तरह से पागलपन नहीं है?

ऐसा हम सिर्फ भारत में ही नहीं कर रहे, पूरी दुनिया में भी यही हो रहा है। लेकिन विनाश का पहला झटका भारत को लगेगा, क्योंकि हमारे यहां एक सीमित जगह पर आबादी का बड़ा दबाव है। दुनिया भी इस समस्या का सामना करेगी, लेकिन कुछ देश बेहतर तरीके से संयोजित है, उन्होंने अपने लिए दीवारें बना ली हैं। इसलिए नदी अभियान को जारी रहना चाहिए। मैं चाहता हूं कि आप सब इस पर अपनी प्रतिक्रिया दें और सोशल मीडिया पर रैली के लिए सक्रिय रहें। अगर आप रोज ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम हफ्ते में एक बार ऐसा जरूर कीजिए।

आप जब कोई नकारात्मक चीज देखते हैं तो आप या तो उसका हिस्सा बन सकते हैं या फिर आप उससे परे निकल सकते हैं। जीवन के हर पल में यह बात आप पर ही निर्भर करती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जीवन की किन परिस्थितियों के बीच खड़े हुए हैं, लेकिन तब भी आपके सामने तीन विकल्प होते हैं। या तो आप उस मौके का इस्तेमाल कर अपनी तरक्की करें या फिर आप इसके इस्तेमाल से अपने लिए कुछ भी न कर पाएं या फिर आप खुद को हर चीज से बाहर रखें। लेकिन बिना शामिल हुए जीवन का अनुभव ही नहीं होगा। जीवन का गहन अनुभव होने के लिए उसमें भागीदारी अनियंत्रित और बिना सोची समझी होनी चाहिए। सोची समझी भागीदारी आपके जीने का ख्याल तो रख लेगी, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर आप जी किसके लिए रहे हैं? मरना तो आपको वैसे भी है। तो क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप जीवन में शामिल हो कर जुड़ें और जितना संभव हो सके, गहराई के साथ जीवन का अनुभव लें।

ईशा को राज्यों में पर्याप्त विस्तृत मॉडल तैयार करने होंगे

हमारी कोशिश का अगला कदम इस प्रस्ताव को एक नीति में बदलवाना होगा। सबसे बड़ी और अच्छी बात यह हुई कि इस रैली के लिए तमाम राजनैतिक दल एक साथ आकर खड़े हो गए। हमने कम से कम यह एक बाधा तो पार कर ली है।

मैं चाहता हूं कि आप सब इस पर अपनी प्रतिक्रिया दें और सोशल मीडिया पर रैली के लिए सक्रिय रहें। अगर आप रोज ऐसा नहीं कर सकते तो कम से कम हफ्ते में एक बार ऐसा जरूर कीजिए।
अब बाकी है - विधायीका की चुनौतियां, कानूनी चुनौतियां, तकनीकी चुनौतियां, प्रशासनिक चुनौतियां, इसे लागू करने की जटिलताएं, जिन्हें विस्तार से देखे जाने की जरूरत है। हमंे उम्मीद है कि ये सारी चुनौतियां अगले कुछ महीनों में दूर हो जाएंगी। लेकिन जमीनी स्तर हमंें ऐसे लोगों की जरूरत है, जो इसका नेतृत्व कर सकें। कई राज्यों की हमसे अपेक्षा है कि हम नदियों के आस.पास इससे जुड़ा आर्थिक माॅड्यूल तैयार करने में भी उनकी मदद करें, जहां हम किसानों को बता सकें कि आज हम जो पारंपरिक खेती कर रहे हैं, उसकी अपेक्षा पेड़ लगाना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद है।

अगले कुछ सालों में हमें सोलह राज्यों में कम से कम बारह सौ ऐसे लोगों की जरूरत है, जो इन चीजों को साकार करने के लिए पूर्णकालिक तौर पर काम कर सकें। हमें फौरन कुछ सौ ऐसे लोगों की जरूरत है, जो जमीनी स्तर पर काम करने के लिए पूरी तरह से समर्पित हों। कुछ राज्यों में तो नीति पास हुए बिना भी यह काम ऐसे ही हो जाएगा। कुछ राज्यों में इसे लेकर दिक्कत आएगी। कुछ राज्यों में यह एक पहाड़ चढ़ने जैसा लक्ष्य होगा। लेकिन अगले पांच सालों में अगर हमने सफल व पर्याप्त विस्तृत माॅड्यूल तैयार कर दिए तो हम अपना काम पूरा कर देंगे। उसके बाद यह इस देश और यहां के लोगों पर निर्भर होगा कि वे इस अभियान को कहां तक ले जाना चाहेंगे।

इसे शुरू करने के लिए हमें युवा लोगों की जरूरत है। अगर आप इस इकलौते विचार ‘मेरा क्या होगा’ को छोड़ देेंगे तो जीवन एक महीन धारा से प्रबल प्रवाह बन उठेगा। अगर आप अपने से बड़ी कोई चीज करते हैं तो केवल तभी आपको एक परिपूर्णता का अहसास होता है। अगर आप अपने से छोटी चीजें करते हैं तो जीवन बिना रसायनों के संभव नहीं होगा। फिर जब तक आप नशा या ऐसा ही कुछ और न करें तो आप न तो हंस पाएंगे, न गा पाएंगे और न ही नाच पाएंगे। पूरी दुनिया इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। बहुत सारे लोगों ने रैली को साकार करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश व मेहनत की है, चाहें वो बड़ी हस्तियां हो, खिलाड़ी हों, फिल्मी कलाकार हों, राजनेता हों, स्वयंसेवी हों, आश्रम के निवासी हों या फिर ब्रह्मचारी। उनमें से कई लोग तो रोज ऐसे काम कर रहे हैं मानो वह उनकी जिंदगी का आखिरी दिन हो। जीवन जीने का यही सही तरीका है। मैं चाहता हूं कि आप अपने जीवन को विस्तार देने के लिए जितना और जैसे संभव हो, इस रैली का इस्तेमाल कीजिए। नदियों के साथ-साथ आपका जीवन भी प्रवाहित होना चाहिए। लेकिन इसके लिए आपको अपनी सोच ‘मेरा क्या होगा’ के बिना आना होगा।

बहुत से लोग ऐसे कई काम करते हैं, जो उन्हें करना अच्छा नहीं लगता, फिर भी वे अपना फर्ज समझ कर उसे करते हैं और फिर अपनी पूरी जिंदगी परेशान होते रहते हैं। जबकि बुद्धिमान लोग वो काम करते हैं, जो उन्हें पसंद होता है, और वे कुछ हद तक अपने जीवन का आनंद लेते हैं। लेकिन जो जीनियस होते हैं, वे उस काम को खुशी-खुशी करना सीख लेते हैं, जिसे किए जाने की जरूरत होती है। तभी आपकी प्रतिभा खिल जाती है। लेकिन जब आपके काम आपके बारे में नहीं होतेए तो फिर आप जीवन को अनगिनत तरीके से देखने लगते हैं। मुझे लोगों को इस रैली के कई पहलुओं और दूसरी चीजों के बारे में बताना ही नहीं पड़ा, यह अपने आप हुआ। ये सब इसलिए नहीं हुआ, क्योंकि मैंने अपनी इच्छाएं दुनिया के ऊपर थोपीं, बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि मैंने इस अस्तित्व की इच्छा को पूरा किया है। इसे किए जाने की जरूरत हैए और जो लोग इसे अपनी पूरी क्षमता के साथ करेंगे उन्हें तृप्ति मिलेगी।

मैं आपके साथ हूं।

Love & Grace