मॉनसून: बदली बरसी

अहा, कितना सुंदर वरदान!
झुलसी, सूखी धरती
है स्वागत करती
कुछ ऐसे
मिल गया हो जैसे
खोया कोई प्रेमी
तुम्हारा आना नहीं कभी जल्दी

जीव जगत के मौन धर कर
उत्सव देखो मना रहे हैं
मूसलाधार वर्षा तांडव करती
फिर भी कोई विरोध नहीं है
सब शीश श्रद्धा से झुका रहे हैं।
शोकाकुल नहीं उनपर कोई
बाढ़ जिनको बहा ले गई
क्योंकि बच गए विनाश से उस
जो चढ़ अकाल के पीठ पे आती।
दैव दया ले बूंदे उतरी
धरती माँ के गर्भ मे गहरी
बीजें पड़ी जो सो रही थीं
उर्जा पाकर पैर पसारी

नही किसी ग्रंथी के रस में
है कोई ऐसी प्रेरक क्षमता
जिसने बदल दिया हो
उस बीज को अंकुर में

तुम्हारा आना नहीं कभी जल्दी

  

Love & Grace

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