जो लोग किसी वजह से अकेले ही अपने बच्चे की परवरिश कर रहे हैं उन लोगों के मन में हमेशा उहापोह की हालत बनी रहती है कि बच्चे की जिंदगी में आई कमी को पूरा करने के लिए दूसरी शादी करें या नहीं? एक ऐसे ही सवाल का दो टूक जवाब दे रहे हैं सद्‌गुरु।

प्रिय सद्‌गुरु, मैं तलाकशुदा हूं। मेरा छह साल का एक बेटा है। अकसर मुझे अपने भीतर बहुत खालीपन महसूस होता है। मुझे प्यार की इतनी कमी महसूस होती है कि मुझे लगता है दोबारा शादी कर लेनी चाहिए, और फिर मेरा बेटा मुझसे हरदम पूछता रहता है कि घर में उसके लिए पिता क्यों नहीं हैं। मैं बड़ी उलझन में हूं...कृपया मेरी मदद कीजिए।

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सबसे पहले हम बच्चों के बारे में कुछ सामान्य बातें कर लें। आज के जमाने में शादी के बाद बच्चा बस यूं ही अपने आप नहीं हो जाता। एक समय था जब और कोई रास्ता नहीं होता था। अगर आपने शादी कर ली, तो बच्चे होते रहते थे। लेकिन आज के जमाने में बच्चा अपने आप नहीं हो जाता। आम तौर पर उसकी योजना बनाई जाती है। आपको यह समझना होगा कि बच्चा होने का मतलब है एक इक्कीस साल का प्रोजेक्ट। अगर आपका बच्चा बहुत होशियार और सक्षम है, तो समझ लीजिए पंद्रह-सोलह साल का प्रोजेक्ट। इसलिए जब आप बच्चा पैदा करने का फैसला करते हैं, तो आपको कम-से-कम पंद्रह साल के एक प्रोजेक्ट के लिए तैयार रहना होगा। अगर आपमें ऐसा संकल्प नहीं है, तो आपको इसमें नहीं कूदना चाहिए; यह जरूरी नहीं है, क्योंकि कोई बच्चा आपके पेट पर दस्तक दे कर ये तो नहीं कह रहा कि, “मुझे पैदा करो।” अगर आपको यकीन नहीं हो कि आप इस तरह इतने साल तक उस बच्चे को सहारा दे पाएंगे, तो आपको बच्चा पैदा करने का दुस्साहस नहीं करना चाहिए।

यह सोचना कि एक और शादी आपके बच्चे की जिंदगी संवार देगी, एक बहुत ही गलत खयाल है। मैं नहीं कह रहा कि दूसरी शादी उसकी जिंदगी नहीं संवारेगी, संभव है संवार दे। लेकिन. . . 
यह सोचना कि एक और शादी आपके बच्चे की जिंदगी संवार देगी, एक बहुत ही गलत खयाल है। मैं नहीं कह रहा कि दूसरी शादी उसकी जिंदगी नहीं संवारेगी, संभव है संवार दे। लेकिन यह सोचना कि ‘बच्चे के असली पिता के साथ नहीं जमी, अगर मैं कोई दूसरा आदमी ले आऊं तो सब-कुछ ठीक हो जाएगा’ एक बेहद खतरनाक खयाल है। मेरे खयाल से ऐसी शादियां दस फीसदी ही चल पाती हैं। नब्बे फीसदी मामलों में इनसे समाधान कम निकलते हैं और मुश्किलें ज्यादा पैदा होती हैं। मैं नहीं पूछ रहा कि आपने अपनी शादी क्यों तोड़ दी, यह आपका अपना फैसला है। अगर आपने अपनी शादी तोड़ने का फैसला कर लिया, तो आपको खुद इस काबिल बनना होगा कि अपने बच्चे के लिए हर तरह से मां और बाप दोनों की भूमिका अदा कर सकें। लेकिन चूंकि आपके भीतर किसी और चीज की लालसा है, इसलिए आपके साथ-साथ आपके बच्चे में भी वही लालसा आ जाती है। कृपया अपने बच्चों की ऐसी असहाय-सी परवरिश मत दीजिए कि वे हमेशा किसी ऐसे इंसान की चाह करते रहें जो उनकी जिंदगी में है ही नहीं।

आपका लड़का शायद आठ साल का है। वह आपके साथ कितना वक्त बिताना चाहता है? शायद बहुत ही थोड़ा। वह अपनी दुनिया में खोया रहता है – बशर्ते आपने उसे इतना बेसहारा न बना दिया हो कि उसे हमेशा आपसे चिपके रहना पड़ता हो। वरना उसके पास खुद करने को बहुत कुछ है। जिंदगी की यही रीति है। बच्चों की अपनी खुद की दुनिया होती है। बस आपको नजर रखनी होती है कि वे कोई गलत काम न कर बैठें। जरूरी नहीं कि वे हर चीज आपके साथ ही करें।

इसलिए अगर आप दोबारा शादी करना चाहती हैं – तो यह आपके ऊपर है। यह ऐसा फैसला है जो आपको खुद करना होगा। इसका बच्चे से कोई सरोकार नहीं। बच्चे की ऐसी परवरिश कीजिए कि उसे न तो आपकी जरूरत हो न उसके पिता की। वह अपने आप में मस्‍त रहे। उसे बस आपके सहारे और देखभाल की जरूरत है, और कुछ नहीं। आप जो कुछ भी करेंगी, उसका कोई-न-कोई नतीजा जरूर निकलेगा। अगर आप शादी नहीं करतीं, तो एक नतीजा निकलेगा और अगर शादी करती हैं तो, एक अलग तरह का नतीजा निकलेगा। एक का तजुर्बा आपको है, इसलिए शायद आप बेहतर निर्णय ले सकें – हमें नहीं मालूम। पर दोनों ही फैसलों का अपना-अपना नतीजा निकलेगा। और जरूरी नहीं कि नतीजे खुशगवार या तकलीफदेह हों। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप इनको निभाते कैसे हैं। अगर आप नतीजे को खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, तो यह एक प्रेम भरा सफर होगा, वरना यह सिर्फ एक मेहनत-भरा सफर बन कर रह जाएगा।

Love & Grace