सद्‌गुरुइस बार के स्पॉट में सद्‌गुरु गुढीपाडवा और उगादी के महत्व के बारे में बता रहे हैं। वे बता रहे हैं कि आने वाले तीन हफ़्तों में सूर्य की ऊर्जा मानव चेतना और ऊर्जा पर जबरदस्त प्रभाव डालेगी, और सूर्य ऊर्जा से खुद को भर लेने का यही समय है।

गुढीपाडवा या उगादी - क्या है इस दिन का महत्व?

भारत के कई हिस्सों में नव संवत्सर का पहला दिन नए साल व बसंत की शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है। यह उस ग्रिगोरियन या अ्रंग्रेजी कैलेंडर की तरह नहीं है, जो ऋतुओं या मौसमों से जुडा़ हुआ नहीं हो।

अगर आप अपनी चेतना का स्तर उठाना चाहते हैं तो सूर्य के साथ आपका संबंध बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।
नए साल का पहला दिन उगादि, युगादि या गुढीपाडवा जैसे नामों से जाना जाता है। इस दिन पृथ्वी और सूर्य के सम्बन्ध में सूर्य एक अनूठी स्थिति में होता है - इसी स्थिति की वजह से यह त्यौहार मनाया जाता है। इस धरती और उसके जीवों पर सूर्य के प्रभाव को कहीं से भी नकारा नहीं जा सकता। यहां तक कि हमारे बुनियादी जीवन के लिए भी यह बहुत जरूरी है। अगर आप अपनी चेतना का स्तर उठाना चाहते हैं तो सूर्य के साथ आपका संबंध बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। ध्यान करने या अपनी सीमाओं से परे जाने के लिए आपका सूर्य या पृथ्वी की गतिशीलता के बारे में जानना जरूरी नहीं है। लेकिन अगर आप अपनी चेतना को बढ़ाते हैं तो आपको सौर ग्रहों की गति के बारे में खुद ब खुद पता चलने लगता है।

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कुछ चीज़ों के लिए अनुकूल वातावरण चाहिए

हालांकि मैंने अपने जीवन में कभी भी कोई चीज की प्लानिंग उस तरह से नहीं की, लेकिन मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं हमेशा सही दिन पर ही घटित हुईं।

इसी तरह से इंसान कुछ हद तक ग्रहों व तारों की गति के विपरीत खड़ा हो सकता है। लेकिन कोई भी इस प्रक्रिया के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकता।
कुछ चीजों को सामने आने के लिए एक सहायक माहौल की जरूरत होती है। मेरे लिए यह सहायक माहौल अपने आप कुछ उसी तरह बना, जैसे वसंत में फूल अपने आप खिलते हैं। वसंत में फूल इसलिए नहीं खिलते, क्योंकि उस समय खिलना उनका मकसद होता है। वे खिलते है, क्योंकि तब उनके खिलने के लिए अनुकूल माहौल होता है। पौधों की कुछ प्रजातियां इतनी मजबूत व तगड़ी होती हैं कि उनमें सर्दियों में ही फूल आ जाते हैं। इसी तरह से इंसान कुछ हद तक ग्रहों व तारों की गति के विपरीत खड़ा हो सकता है। लेकिन कोई भी इस प्रक्रिया के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त नहीं हो सकता। सौर मंडल उस कुम्हार के चाक की तरह है, जिसने इस इंसानी सिस्टम को बनाया है।

माला के 108 मनकों का विज्ञान

जैसा कि आदियोगी ने हजारों साल पहले बताया था - कि कई तरीके से मानव सिस्टम शारीरिक व तंत्रिका तंत्र के साथ-साथ समझने, जानने व अनुभव करने के एक खास तरह के चरम स्तर पर पहुँच चुका है।

इसीलिए अपने यहां पारंपरिक तौर पर पूजा की माला में 108 मनके होते हैं, किसी भी मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है और किसी पवित्र या ऊर्जित स्थान की 108 परिक्रमाएं लगाई जाती हैं।
हालांकि मानव चेतना के विकास की संभावना है। अब मानव शरीर में आगे विकास तभी होगा, जब इस सौर मंडल में कोई बड़ा सा नाटकीय बदलाव हो। इस धरती के मौजूदा भौतिक नियम मानव शरीर या संरचना में अब और किसी बदलाव की इजाजत नहीं देते। मानव शरीर में मौजूद 114 चक्रों में से दो चक्र उसके शारीरिक संरचना के बाहर स्थित हैं। इन बचे हुए 112 चक्रों में से 108 चक्रों को आपको सक्रिय करना होगा, जबकि बचे हुए चार चक्र उसके बाद अपने आप सक्रिय हो जाएंगे। वास्तव में आपको 108 चक्रों पर ही काम करना है। इसीलिए अपने यहां पारंपरिक तौर पर पूजा की माला में 108 मनके होते हैं, किसी भी मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है और किसी पवित्र या ऊर्जित स्थान की 108 परिक्रमाएं लगाई जाती हैं। उसकी वजह है कि अगर आप मानव सिस्टम पर पूरी तरह से महारत हासिल करना चाहते हैं तो आपको 108 चीजें करनी होती हैं।

पृथ्वी सूर्य के आस-पास माला के मनकों की तरह गुजरती है

यही चीज हमारे सौर्य मंडल में भी बड़ी खूबसूरती से दिखती है। सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास का 108 गुणा होता है।

पृथ्वी की कक्षा को साल के 108 पदों में बंटा गया है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए खुद को सूर्य के चारों तरफ 108 मनकों के रूप में संयोजित करती है।
सूर्य व पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास का 108 गुना है। इसी तरह से पृथ्वी और चांद के बीच की दूरी भी चांद के व्यास का 108 गुना है। पृथ्वी की कक्षा को साल के 108 पदों में बंटा गया है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए खुद को सूर्य के चारों तरफ 108 मनकों के रूप में संयोजित करती है। उसी के हिसाब से जो माला आप पहनते हैं, उसमें 108 मनके होते हैं। भारतीय संस्कृति में जीवन के अनेक पहलू सौर मंडल व मानव सिस्टम के आपसी संबंधों की समझ व जानकारी पर आधारित होते हैं। कैसे उनका प्रभाव, हमारे सिस्टम पर पड़ता है, कैसे हम रोज-रोज व पल-पल होने वाली इस गतिशीलता के चलते हो रहे बदलावों का इस्तेमाल कर सकते हैं, इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर भारतीय संस्कृति को गढ़ा गया है।

अगले तीन हफ़्तों का पूरा इस्तेमाल करें

आधुनिक तकनीक के इस दौर में आप सिर्फ अपने मोबाइल फोन, टीवी या अपने कंप्यूटर से चिपके न रहें।

आने वाले तीन हफ्तों में सूर्य मानव चेतना व ऊर्जा पर जबरदस्त असर डालने जा रहा है।
आप बाहर निकलिए और वातावरण में हो रहे बदलावों और उनके अनुसार अपने भीतर हो रहे बदलावों को महसूस कीजिए। पौधे से लेकर जीवों और इंसानों तक, जीवन का कोई भी रूप केवल तभी संपूर्ण रूप से खिल सकेगा, जब वह पूरी तरह से प्रकृति के साथ तालमेल में होगा। आने वाले तीन हफ्तों में सूर्य मानव चेतना व ऊर्जा पर जबरदस्त असर डालने जा रहा है। ईशा में हमारे पास यह सुविधा है कि हम इंसान को वह जबरदस्त संभावना उपलब्ध करा सकें, जो आदियोगी ने मानवता को दी है। हमें अपनी व दुनिया में अपने आसपास मौजूद लोगों की चेतना को ऊपर उठाने के लिए अपने समय व प्राकृतिक प्रभावों का सर्वोत्तम इस्तेमाल करना चाहिए।