क्या बड़ों की आज्ञा का पालन जरुरी है?
हम बचपन से सुनते और मानते आ रहे हैं कि अपने बड़ों की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। तो फिर नई सोच, नई खोज, नई परंपरा कैसे पनपेगी? तो आखिर क्या करना चाहिए?
हम बचपन से सुनते और मानते आ रहे हैं कि अपने बड़ों की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए। तो फिर नई सोच, नई खोज, नई परंपरा कैसे विकसित होगी? तो फिर हमें क्या करना चाहिए?
अगली पीढ़ी संभावनाओं से भरपूर होनी चाहिए
अपने बड़ों की आज्ञा का पालन करना – इसे अक्सर एक पारंपरिक मूल्य के रूप में देखा और पेश किया जाता है। मैं कहूँगा कि बिना कोई सवाल किये आज्ञा मानना, समाज और संस्कृति को पतन की ओर ले जाता है।
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खुद को प्रेम और आदर के योग्य बनाना होगा
वे लोग, जो अपने प्रभुत्व या अधिकार जमाने वाले स्वभाव के कारण अपने बच्चों से जरुरी प्रेम और स्नेह नहीं हासिल कर पाते, वे आज्ञा-पालन की माँग करते हैं। हमें खुद को प्रेम, स्नेह और आदर के योग्य बनाना होता है। ख़ास कर के माता-पिता और बच्चों के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है। जिस पल आप बच्चों से आज्ञाकारी होने की माँग करेंगे, आप प्रभुत्व या अधिकार ज़माना शुरू कर देंगे। अगर आप प्रभुत्व जमाने लगेंगे, तो आपको कभी पसंद नहीं किया जाएगा। अगर आपसी रिश्तों में नापसंदगी आ जाती है, तो वह रिश्ता बदसूरत हो जाता है। अधिकार जमाने के रवैये से समाज और संस्कृति ठहर सी जाती है, और कुछ समय बाद मिटने लगती है। एक समाज सिर्फ तभी विकसित हो सकता है, जब युवा पीढ़ी कुछ ऐसा करें, जो माता-पिता ने कभी सोचा भी न हो।
पुरानी रीतियाँ तोड़ दे, या उनका पालन करें?
तो फिर, क्या हमें पुराने नियमों और नीतियों का पालन करना चाहिए या कुछ नया करना चाहिए? इस तरह की कोई बंदिश नहीं होनी चाहिए कि पुरानी रीतियों को जबरदस्ती तोड़ना ही है, न ही इस बात की बंदिश होनी चाहिए कि चीज़ों को पुराने रीति रिवाजों के अनुसार ही करना है।
किसी ढाँचे के टूटने के लिए जरुरी नहीं कि समाज में भारी उथल-पुथल हो। हमारे सोचने के तरीकों में भी क्रांति आ सकती है। हमें लगातार यह देखते रहने की जरुरत है कि हम जीवन के हर पहलू को कैसे और बेहतर तरीके से कर सकते हैं - सबसे सरल और बुनियादी पहलुओं से लेकर महत्वपूर्ण पहलुओं तक। अगर आप बैठने, सांस लेने, खाने और शरीर की देखभाल करने के सबसे अच्छे तरीकों की खोज कर रहे हैं, तो आप योग करना शुरू कर देंगे। मतलब, आप अपनी शारीरिक और मानसिक खुशहाली तक वैज्ञानिक तरीके से पहुंचना चाहेंगे। सत्य ऐसी चीज़ है, जिसका आप अनुभव करते हैं। अगर आप उसका आविष्कार करेंगे, तो वह झूठ कहलाएगा। अगर आप किसी भी काम को करने के सबसे अच्छे तरीके की ईमानदारी से खोज करेंगे, तो आप एक विज्ञान तक पहुँच जाएंगे। वरना, आप उस काम के बारे में एक फ़िलोसोफी बनाने लगेंगे। हो सकता है पुरानी फिलोसोफिस एक समय में तर्कसंगत या उचित रही हों। एक समय पर जो एक फ़िलोसोफी थी, वो समय के बीतने के साथ रीति, फिर नियम, विश्वास और आखिर में धर्म बन गया। इसकी जगह हमें हर चीज़ को अपनी बुद्धि से परखना चाहिए। पर क्या हम हर चीज़ का अंतिम समाधान खोज पाएंगे? शायद नहीं। क्योंकि वास्तविकताएं बदल रही हैं।
आनंद से समाधान विकसित होंगे
एक मौलिक दृष्टिकोण जिसे हम अपना सकते हैं, वो ये है – कि आज हमारे पास इस बात के काफी वैज्ञानिक और मेडिकल प्रमाण मौजूद हैं कि आपका शरीर और आपका दिमाग सबसे बेहतर सिर्फ तभी काम करते हैं, जब आप आनंद में होते हैं।
अगर आप आनंदित हैं, तो आप चीजों को उनके वास्तविक रूप में देख सकते हैं और हर दिन बेहतर समाधान खोज सकते हैं। अगर आपके बोध को पूर्वाग्रह से भरी राय ने ढंक दिया है, तो आप समाधान की खोज कैसे करेंगे? जब आप आनंदित होते हैं, तो आपको समाधान मिलते हैं। आनंद में लचीलापन होता है। और लचीलेपन से समाधान विकसित होते हैं।