शिखर

मेरी कविता

नहीं है मेरी कोशिशों का नतीजा

यह तो है स्वाभाविक परिणाम

मैं जैसा हूँ - उसका।

 

मैं हूँ कुछ ऐसा

जैसे हो तर्क की एक सूखी टहनी

जो लद गयी हो फूलों से।

जब एक हरा-भरा पौधा –

भर जाता है अपने ही फूलों से

तब खो सकता है वह

अपने ही उल्लास में।

पर जब फूट पड़ते हैं

एक सूखी टहनी से पुष्प-कुंज

तो नहीं कर सकता उसे

कोई नज़रंदाज।

है ऐसी ही यह सृष्टि

रिक्तता का एक विशाल बंजर क्षेत्र

जिसमें खिले हुए हैं - विविध जीवन

नहीं इरादतन,

बल्कि है एक स्वाभाविक नतीजा

एक गहन संरक्षण का

जो फूट पड़ा है

एक अकल्पनीय सौंदर्य और

शानदार ऊर्जा के रूप में।

 

यह सब जन्मा है

जीवन-विहीन से लगने वाले

अंतरिक्ष से, रिक्तता से।

 

नहीं हुआ हूँ मैं विकसित

शिक्षा, शिष्टता या सभ्यता से

मैं हूँ बस एक सहज शिखर।

Love & Grace